'अन्याय का एक स्पष्ट मामला': केरल हाईकोर्ट ने डाकघर को घरेलू सहायिका की जमा राशि पूरे ब्याज के साथ देने का निर्देश दिया, पांच हजार जुर्माना भी लगाया

Update: 2022-03-24 16:56 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को डाकघर के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह एक महीने के भीतर सावधि जमा योजना के अंतर्गत एक घरेलू सहायिका द्वारा जमा की गई राशि को निकासी की तिथि तक पूर्ण ब्याज के साथ दे।

हाईकोर्ट ने यह निर्देश देते हुए कहा कि,

''गरीब पुरुष या महिला द्वारा पैसे बचाने का मतलब बीएमडब्ल्यू कार खरीदना या आलीशान इमारत खरीदना या शानदार जीवन जीना नहीं है। (यह) उसके छोटे-छोटे सपनों को पूरा करने के लिए है।''

इसे अन्याय का एक मामला मानते हुए जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने अधिकारियों पर मुकदमे की लागत के रूप में पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है और कहा कि संवैधानिक अदालत ऐसी स्थितियों में मूक दर्शक नहीं हो सकती है।

''ऐसी स्थिति में, मेरे अनुसार, याचिकाकर्ता को ब्याज से वंचित करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह अन्याय का एक स्पष्ट मामला है।''

एक निरक्षर गरीब घरेलू सहायिका ने 2012 में 2 साल की डाकघर सावधि जमा योजना में 20,000 रुपये जमा करवाए थे। चूंकि उसे यह नहीं पता था कि परिपक्वता पर, जमा का नवीनीकरण करवाया जाना था, इसलिए याचिकाकर्ता ने वर्ष 2014 में परिपक्वता पर इसका नवीनीकरण नहीं करवाया।

उसकी समझ यह थी कि ब्याज हर साल लगेगा, इसलिए उसने 2021 तक ब्याज सहित राशि निकालने का इंतजार किया। हालांकि, जब उसने 2021 में अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्होंने दावा की गई राशि के संवितरण तक पूर्ण ब्याज देने के उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया क्योंकि जमा का नवीनीकरण नहीं करवाया गया था।

इससे व्यथित होकर उसने पोस्टमास्टर को एक अभ्यावेदन भेजा, परंतु उसे भी खारिज कर दिया गया।

बाद में एक कानूनी नोटिस के माध्यम से, उसने तर्क दिया कि डाकघर सावधि जमा (संशोधन) नियम, 2014 में, केंद्र सरकार ने कुछ संशोधन किए थे जिनके अनुसार याचिकाकर्ता राशि की निकासी तक पूर्ण ब्याज पाने की हकदार है।

हालांकि, प्रतिवादियों ने इस पर भी विचार नहीं किया। तदनुसार, उसने एडवोकेट अजीत जॉय के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख किया।

वकील ने तर्क दिया कि संशोधित नियम याचिकाकर्ता की जमा राशि की परिपक्वता तिथि से ठीक पहले 2014 में अस्तित्व में आए। इस आधार पर, यह तर्क दिया गया कि वह आज भी ब्याज की हकदार है, भले ही जमा का समय-समय पर नवीनीकरण न करवाया गया हो।

हालांकि, सरकारी वकील विद्या कुरियाकोस, एएसजीआई पी.विजयकुमार और एएसजीआई एस.मनु ने तर्क दिया कि संशोधित नियम कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले डाकघरों पर लागू था और जहां उन्होंने राशि जमा की थी, वह डाकघर इस प्लेटफॉर्म पर माइग्रेट नहीं हुआ था।

जस्टिस एन. नागरेश जिन्होंने मामले को स्वीकार किया और जस्टिस कुन्हीकृष्णन जिन्होंने इस मामले को सुना, वह गहरी सहानुभूति रखते हुए इस बात से चकित थे कि राज्य ने इस मामले में नियमों के सख्त पालन का रुख अपनाया है।

कोर्ट ने प्रतिवादी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि संबंधित डाकघर वर्ष 2015 में सीबीएस प्लेटफॉर्म पर माइग्रेट हुआ था और इसलिए याचिकाकर्ता के मामले में पीओएसबी मैनुअल वॉल्यूम-I नियम लागू होते हैं।

''मैं इससे सहमत नहीं हो सकता। सिर्फ इसलिए कि मुत्तदा डाकघर कोर बैंकिंग सॉल्यूशन प्लेटफॉर्म पर माइग्रेट नहीं हुआ था, याचिकाकर्ता को Ext.P7 संशोधित नियमों का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।''

जस्टिस कुन्हीकृष्णन ने कहा कि प्लेटफॉर्म पर माइग्रेट होना कुछ डाकघरों के आंतरिक बुनियादी ढांचे से जुड़ा मामला था। कोर्ट ने कहा कि एक गरीब जमाकर्ता को इसकी वजह से परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।

कोर्ट ने इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार के भेदभाव और उल्लंघन का स्पष्ट मामला पाया और कहा,

''मेरे अनुसार, इस मामले में याचिकाकर्ता उसके द्वारा जमा की गई राशि पर नवीकरण की तारीख से उसके वितरित होने तक 2 साल की सावधि जमा के लिए उपलब्ध दर पर ब्याज राशि पाने की हकदार है।''

एकल पीठ ने याचिका को अनुमति देते हुए यह भी कहा कि याचिकाकर्ता लागत के रूप में 5,000 रुपये की राशि पाने की हकदार है।

केस का शीर्षक- सरोजा बनाम पोस्टमास्टर व अन्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केरला) 141

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