रेलवे दुर्घटना के 44 साल बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मृतक की मां को 51 हजार रुपये का मुआवजा बरकरार रखा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में 44 साल पुरानी एक रेलवे दुर्घटना में मारे गए 24 वर्षीय युवक की मां को 51,000 रुपये का मुआवजे देने का निर्णय बरकरार रखा। दुर्घटना एक ट्रक और ट्रेन इंजन की टक्कर के कारण हुई थी।
जस्टिस पीके चव्हाण ने कहा कि दुर्घटना रेलवे कर्मचारियों की लापरवाही के कारण हुई थी।
उन्होंने कहा,
“यह स्पष्ट रूप से अपीलकर्ताओं के कर्मचारियों की ओर से लापरवाही का कार्य है क्योंकि साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि स्विचमैन और गेटमैन के साथ-साथ संबंधित रेलवे स्टेशन के बीच कोई उचित संचार मौजूद नहीं था। अगर उचित संचार मौजूद होता, तो इंजन के गुजरने के बारे में गेटमैन को पहले से सूचना मिल जाती।”
अदालत ने मध्य रेलवे और यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया, जिन्हें मृतक की मां को मुआवजा देने के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग उत्तरदायी पाया गया था।
24 जनवरी 1979 को मृतक महबूब एक खेत से गन्ना ले जा रहे ट्रक में क्लीनर के रूप में यात्रा कर रहा था। नासिक रोड और ओढ़ा रेलवे स्टेशन के बीच स्थित एक रेलवे लेवल क्रॉसिंग गेट को पार करते समय ट्रक विपरीत दिशा में जा रहे एक रेल इंजन से टकरा गया। दो साल बाद महबूब की चोटों के कारण मौत हो गई।
उनकी मां उमरावबी ने आरोप लगाया कि यह हादसा रेलवे कर्मचारियों की लापरवाही के कारण हुआ। उन्होंने दावा किया कि लेवन क्रॉसिंग गेट पर रेलवे कर्मचारियों द्वारा यातायात, विशेषकर ट्रक चालक को आने वाली ट्रेन के बारे में चेतावनी देने के लिए कोई संकेत नहीं दिया गया था। उन्होंने आगे तर्क दिया कि रेलवे इंजन लापरवाही से चलाया जा रहा था। उन्होंनें दलील दी कि गेटकीपर को गुजरती ट्रेन के बारे में सूचित नहीं किया गया था और उसने इंजन ड्राइवर को गेट पर पहुंचने से पहले रुकने का चेतावनीपूर्ण आदेश नहीं दिया था।
मध्य रेलवे ने वादी के दावों का खंडन किया। यह तर्क दिया गया कि दुर्घटना ट्रक चालक की लापरवाही के कारण हुई, जो गेटकीपर के निवारक संकेतों के बावजूद रेलवे समपार फाटक में घुस गया। यह भी तर्क दिया गया कि ट्रक चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
सिविल कोर्ट ने माना कि उमरावबी 51,000 रुपये के मुआवजे की हकदार थी। जिसके बाद वर्तमान अपील दायर की गई।
ट्रायल कोर्ट के समक्ष, दुर्घटना के समय डिवीजनल इंजीनियर सदानंद राजे ने गवाही दी कि जिस रेलवे मार्ग पर दुर्घटना हुई, वह एक सुपर-फास्ट ट्रैक था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ओढ़ा में क्रॉसिंग गेट पर कोई सिग्नल नहीं दिया गया था और ट्रेन चालकों को इस बात का कोई संकेत नहीं था कि गेट खुला है या बंद है। उन्होंने आगे पुष्टि की कि इंजन में टेंडर के अंत में हेडलाइट नहीं थी और दो में से केवल एक बफर लाइट काम कर रही थी।
राजे ने आगे स्वीकार किया कि लेवल क्रॉसिंग पर किसी भी रुकावट की स्थिति में गेटकीपर को लाल बत्ती का सिग्नल दिखाना पड़ता है, जिससे पता चलता है कि लाइन साफ नहीं है और दुर्घटना के समय गेटमैन ने रेलवे इंजन को ऐसा कोई सिग्नल नहीं दिखाया।
घटना के समय नासिक रोड केबिन में ड्यूटी पर तैनात स्विचमैन पांडुरंग किसान काले ने गवाही दी कि उन्होंने ट्रेन इंजन के पायलट को लाइन क्लीयरेंस नहीं दिया था।
दुर्घटना के समय क्रॉसिंग पर मौजूद गेटमैन रामचन्द्र नाना बर्वे ने गवाही दी कि उनका नासिक रोड केबिन से टेलीफोन पर संपर्क था और उन्हें सूचित किया गया था कि कोई ट्रेन नहीं आ रही है। उसने गेट का एक तरफ का हिस्सा खोला, लेकिन जब ट्रेन आई तो वह चिल्लाया और ट्रक ड्राइवर को लाल लालटेन दिखाकर रुकने का इशारा किया। हालांकि ट्रक नहीं रुका और हादसा हो गया।
हाईकोर्ट ने पाया कि इंजन चालक ने न तो सीटी बजाई और न ही कोई सिग्नल दिया, ये दोनों ही लेवल क्रॉसिंग पार करने से पहले आवश्यक सुरक्षा उपाय थे। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर ट्रैक पर कोई रुकावट हो तो लाल बत्ती का सिग्नल दिखाना गेटमैन का भी उतना ही दायित्व है।
हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि परीक्षण के दौरान प्रस्तुत साक्ष्य स्विचमैन और गेटमैन के साथ-साथ संबंधित रेलवे स्टेशन के बीच उचित संचार की कमी का संकेत देते हैं। एचसी ने कहा कि इंजन चालक और गेटमैन द्वारा कई अनिवार्य निर्देशों का पालन नहीं किया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ताओं ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि जब गेटमैन को इसकी उपस्थिति के बारे में पता नहीं था तो इंजन अचानक क्यों आ गया।
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की कि यूनियन ऑफ इंडिया और मध्य रेलवे मृतक की मां को मुआवजा देने के लिए संयुक्त रूप से और अलग-अलग उत्तरदायी थे।