(17 ए पीसी एक्ट) सरकारी कर्मचारी के खिलाफ पूछताछ/ जांच शुरू करने से पहले सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्यः राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामले में लोक सेवकों के खिलाफ जांच के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक है। किसी निजी शिकायत के आधार पर ऐसी जांच नहीं कराई जा सकती है।
जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, "... भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत लोक सेवकों के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले सरकार की अनुमति आवश्यक है और ऐसी अनुमति के बिना प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की जा सकती है। ऐसे मामलों में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो लोक सेवकों पर तो मुकदमा नहीं ही चला सकता है, निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी प्राथमिकी... पूरी तरह से अवैध है और कानून की प्रक्रिया की दुरुपयोग है।
भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम, 1988 की धारा 17A में कहा गया है कि किसी लोकसेवक द्वारा सरकारी कार्य या कर्तव्यों के निर्वहन के तहत लिए गए निर्णय या अनुशंसा के संबंध में हुए कथित अपराध के मामले में "संबंधित सरकार की पूर्व अनुमति के बिना", अधिनियम के तहत किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ या जांच नहीं की जा सकती है।
मामले में, याचिकाकर्ता राजस्व अधिकारी थे, जिन पर कैलाश चंद्र अग्रवाल और नंद बिहारी भूमि को फर्जी बिक्री की सुविधा का आरोप था। जिसके बाद, लोकसेवकों के साथ ही दो निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई थी और जांच की गई।
कोर्ट में दायर याचिका में उन्होंने एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। उनके वकील का तर्क था कि चूंकि जांच अधिकारी सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवकों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों की जांच कर रहे हैं, इसलिए एफआईआर को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
तर्क से सहमत होते हुए पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिल कुमार सिंह व अन्य बनाम एमके अयप्पा व अन्य AIR 2014, SC (Supp) 1801, मामले में दी गई राय पर ध्यान दिया, जिसके तहत डिवीजन बेंच ने ऐसे ही एक विवाद की जांच की थी और निर्धारित किया कि धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत कोई मजिस्ट्रेट पुलिस को किसी लोकसेवक के खिलाफ मंजूरी के अभाव में भ्रष्टाचार की शिकायत के मामले मुकदमा चलाने का निर्देश नहीं दे सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा, "... लोक सेवकों पर इस अभियोग में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। निजी व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है, यानी याचिकाकर्ता कैलाश चंद्र अग्रवाल और नंद बिहारी के खिलाफ एफआईआर पूरी तरह से अवैध हैं और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
मामले का विवरण
केस टाइटल: छोटा राम और अन्य बनाम राज्य सरकार
केस नं : Crl Misc (Pet) No 953/2018
कोरम: जस्टिस संदीप मेहता
प्रतिनिधित्व: अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह और राजेंद्र प्रसाद (याचिकाकर्ता के लिए) साथ में वरिष्ठ अधिवक्ता जीआर पुनिया; पीपी महिपाल बिश्नोई और एडवोकेट धीरेंद्र सिंह (प्रतिवादी के लिए)
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