तत्काल किसी ऐसे सबूत के बिना सिर्फ़ उत्पीड़न का आरोप लगाना आईपीसी की धारा 306 के तहत सज़ा दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-01-20 06:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि आईपीसी की धारा 306 के तहत लाया गया कोई भी मामला, सिर्फ़ उत्पीड़न के ही आरोप पर नहीं टिक सकता। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए घटना के होने के समय, आरोपी की ओर से किये गए कोई तत्काल कार्य का सबूत होना ज़रूरी है, जिससे यह साबित हो कि आरोपी द्वारा मृतक को आत्महत्या के लिए बाध्य किया गया।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह ने Rajesh vs. State of Haryana मामले में हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ की गई अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।

हाईकोर्ट ने आरोपी राजेश को हत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया था और उसकी सज़ा को जायज़ ठहराया था। उसके बहनोई अरविंद (मृतक) ने आत्महत्या से पहले लिखे अपने नोट में लिखा था कि उसके ख़िलाफ़ दहेज माँगने का झूठा आरोप लगाया गया और उसके ख़िलाफ़ एक पंचायत हुई, जिसमें उसे आरोपी ने थप्पड़ मारा था।

वह यह उत्पीड़न बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं था और इसके चलते वह आत्महत्या जैसा क़दम उठाने पर मजबूर हुआ। उसने लिखा था कि आरोपी सहित उसके रिश्तेदार भी, उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं।

पीठ ने कहा, "…जिस व्यक्ति पर यह अपराध करने का आरोप लगा है उसके द्वारा उकसाने की कार्रवाई को अभियोजन को अवश्य ही साबित करना चाहिए और तभी उसे आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।" पीठ ने यह भी कहा कि ग़ुस्से में कही गई बातें या ग़ैर इरादतन चूक को उकसाना नहीं कहा जा सकता।

पीठ ने कहा कि सितम्बर 2001 में हुई पंचायत और थप्पड़ मारने की घटना और अरविंद द्वारा 23.02.2002 को की गई आत्महत्या के बीच कोई संबंध नहीं है। सिर्फ़ इसलिए कि उसने थप्पड़ मारा, आरोपी को इस आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता।

आरोपी द्वारा दाखिल अपील स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि आरोपी की ओर से मृतक को न तो आत्महत्या के लिए उकसाया गया और न ही उसे इसके लिए उत्साहित किया गया और इस तरह उसे इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता।


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