सुप्रीम कोर्ट ने "व्हाई आई किल्ड गांधी" मूवी स्ट्रीमिंग पर प्रतिबंध लगाने की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

Update: 2022-01-31 11:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर 30 जनवरी को ओटीटी प्लेटफॉर्म 'लाइमलाइट' पर रिलीज होने वाली फिल्म "व्हाई आई किल्ड गांधी" की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली एक रिट याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने याचिकाकर्ता को अपने आदेश में हाईकोर्ट जाने की छूट देते हुए कहा,

"अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका केवल तभी दायर की जा सकती है जब मौलिक अधिकार के उल्लंघन का सवाल हो। याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ प्रतीत होता है। हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता एक नागरिक है और चिंता का एक गंभीर कारण हो सकता है। याचिकाकर्ता को अनुच्छेद 226 के तहत  हाईकोर्उट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट विचार नहीं करेगा।"

कोर्ट रूम एक्सचेंज

जब मामले को सुनवाई के लिए बुलाया गया तो याचिकाकर्ता (सिकंदर भेल) की ओर से पेश अधिवक्ता अनुज भंडारी ने प्रस्तुत किया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म "लाइमलाइट" पर रिलीज हुई पूरी फिल्म में गांधी को "नपुंसक" और "हारा हुआ जुवारी" कहा गया।

प्रस्तुत वकील ने कहा,

"मूवी व्हाई आई किल्ड गांधी रविवार को रिलीज हुई थी। फिल्म में गांधी को "नपुंसक" कहा गया। गांधी पर चुटकुले बनाए जा रहे हैं और पूरे कोर्ट रूम को गांधी पर हंसते हुए दिखाया गया। गांधी को "हारा हुआ जुवारी" कहा गया है।

यह टिप्पणी करते हुए कि यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस समय पीठ की पीठासीन जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने वकील से पूछा कि उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया?

जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा,

"यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है। आपने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया है?"

पीठ के सवाल का जवाब देते हुए वकील ने कहा कि फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया। उन्होंने आगे कहा कि फिल्म कल ही अपलोड की गई है और इसे बटन के क्लिक से हटाया जा सकता है।

ट्रेलर के कुछ अंशों का जिक्र करते हुए वकील ने कहा,

"वे राष्ट्रपिता की छवि खराब कर रहे हैं। मेरी भावनाओं को और पूरे देश की भावनाओं को आहत किया जा रहा है।"

जब पीठ ने वकील को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा तो वकील ने कहा,

"इसे पूरे देश में प्रसारित किया जा रहा है। एक हाईकोर्ट इससे निपटने में सक्षम नहीं होगा, क्योंकि हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र उस जगह के संबंध में केवल इसके साथ है।"

याचिका पर विचार नहीं करने की इच्छा व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा,

"आपने मंत्रालय को एक पक्षकार बनाया है और आपने निर्देशक को भी पक्षकार बनाया है।"

याचिका का विवरण

याचिका में यह तर्क दिया गया कि यदि उक्त फिल्म की रिलीज और प्रदर्शन को नहीं रोका गया तो इससे राष्ट्रपिता की छवि अपूरणीय रूप से खराब होगी और सार्वजनिक अशांति, घृणा और वैमनस्य पैदा होगा।

याचिका में कहा गया,

"यदि उक्त फिल्म की रिलीज और प्रदर्शन को रोका नहीं गया तो यह राष्ट्रपिता की छवि को अपूरणीय रूप से खराब करेगा और सार्वजनिक अशांति, घृणा और वैमनस्य पैदा करेगा। फिल्म का उद्देश्य सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करना, नफरत फैलाना और शांति भंग करना है।"

याचिकाकर्ता ने फिल्म "व्हाई आई किल्ड गांधी" और इससे जुड़ी सभी सामग्री की रिलीज, प्रकाशन या प्रदर्शनी को तत्काल प्रभाव से रोकने की मांग की थी।

इस तथ्य से व्यथित कि फिल्मों को बिना किसी प्रतिबंध, विनियमन या निंदा के ओटीटी प्लेटफार्मों पर सार्वजनिक रूप से देखने के लिए प्रदर्शित किया जा रहा है। बहल ने ओटीटी प्लेटफार्मों के प्रभावी विनियमन की भी मांग की थी।

याचिका में कहा गया कि फिल्म "व्हाई आई किल्ड गांधी" महात्मा गांधी की छवि खराब करने और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने का एक प्रयास है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, फिल्म के दो मिनट 20 सेकंड के लंबे ट्रेलर में भारत के विभाजन और पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार के लिए महात्मा गांधी को दोषी ठहराने का प्रयास किया गया और इस तरह महात्मा की हत्या को सही ठहराने का प्रयास किया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि फिल्म को सीबीएफसी ने मंजूरी नहीं दी थी और वह सीधे ओटीटी रिलीज के लिए जा रही थी।

यह रिट याचिका अधिवक्ता अनुज भंडारी के माध्यम से दायर की गई।

केस शीर्षक: सिकंदर बहल बनाम भारत संघ| डब्ल्यूपी (सी) 56/2022

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