जमानत देते समय कारण बताना आवश्यक है, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया है कि बिना कोई कारण बताए और आधार बताए जमानत नहीं दी जा सकती भले ही प्रथम दृष्टया प्रकृति में उसे जमानत देना उचित और सही लगता हो।
हत्या के मामले में जमानत देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने यह कहा:
"हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए पूर्ण साक्ष्य के लिए जमानत देते समय या खारिज करते समय श्रेणीबद्ध खोज दी जाए क्योंकि उस स्तर पर बचाव पक्ष द्वारा भी जमानत आवेदन में अभियोजन पक्ष द्वारा दायर सामग्री के आलोक में प्रासंगिक तथ्य दिए जाते हैं जिन पर विचार के समय अदालत को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।"
उच्च न्यायालय के आदेश को इस प्रकार पढ़ें:
इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और मामले के गुणों पर कोई राय व्यक्त किए बिना हमें यह जमानत के लिए एक उपयुक्त मामला लगता है।
(रिहाई के लिए शर्तों के बाद)
इस आदेश को देखते हुए पीठ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभियुक्तों को जमानत देने पर विचार करते हुए न तो उच्चतम न्यायालय द्वारा तय किए गए कानून और ना ही अभियोजन पक्ष द्वारा दाखिल की गई सामग्री/दी गयी दलील पर उच्च न्यायालय द्वारा ध्यान दिया गया।
पीठ ने कहा:
हमारे विचार में उच्च न्यायालय ने उक्त आदेश को पारित करने में न्यायिक त्रुटि की है, क्योंकि आदेश को पारित करते समय उच्च न्यायालय ने कोई कारण नहीं बताया, चाहे वह किसी भी आधार पर हो, भले ही यह मामला एक प्रथम दृष्ट्या प्रकृति का हो, जो उत्तरदाताओं को जमानत देने के लिए उचित और सही माना जाता है।