न्यायपालिका के बहाने देरी की रणनीति को पुरस्कृत नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-07-31 16:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि वादियों द्वारा न्यायपालिका के बहाने देरी की रणनीति को पुरस्कृत नहीं किया जा सकता।

भारतीय स्टेट बैंक बनाम अतींद्र नाथ भट्टाचार्य  के मामले में कर्मचारी ने अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नियोक्ता को निर्देश दिया कि वह सजा के आदेश के साथ-साथ जुर्माना लगाने के आदेश को लागू करने से पहले कर्मचारी को नोटिस भेजे। यद्यपि नियोक्ता ने कर्मचारी को कई नोटिस दिए लेकिन उसने सुनवाई के अवसर का लाभ नहीं उठाया और इसके बजाय रिट अपील को प्राथमिकता दी।

उनके द्वारा दाखिल की गई रिट अपील को बाद में खारिज कर दिया गया लेकिन अदालत ने नियोक्ता को यह निर्देश दिया कि वह प्रतिवादी को सुनवाई का एक और अवसर दे ताकि वो नियुक्ति प्राधिकारी के समक्ष अपना पक्ष रख सके। डिवीजन बेंच द्वारा जारी इस निर्देश के खिलाफ SBI ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

इस दृष्टिकोण से असहमत होकर न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि एक बार कर्मचारी को अवसर दिए जाने के बाद वह दया के आधार पर एक और अवसर का हकदार नहीं है। पीठ ने कहा:

"डिवीजन बेंच द्वारा दिया गया एकमात्र तर्क 'न्याय की मांग' है ताकि प्रतिवादी को अपना पक्ष रखने का एक अंतिम अवसर दिया जा सके। प्रतिवादी ने अपना पक्ष सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखने का मौका खो दिया है जबकि प्राधिकरण द्वारा ऐसा करने का अवसर दिया गया। न्याय के बहाने सुनवाई का समय और अवसर फिर से नहीं दिया जा सकता। देरी की रणनीति को इस तरह से पुरस्कृत नहीं किया जा सकता है। एक बार जब प्रतिवादी सुनवाई के अवसर का लाभ उठाने में विफल रहा है तो बैंक को न्याय की खातिर एक और अवसर देने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है।"


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