सुप्रीम कोर्ट ने लगाई छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश पर रोक,परिजनों की मर्जी के खिलाफ शादी करने वाली महिला की मनोरोग जांच का दिया था आदेश [आर्डर पढ़े]
'हादिया केस'जैसे एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश पर रोक लगा दी है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उस महिला की मनोरोग जांच का आदेश दिया था जिसने अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ एक व्यक्ति से शादी कर ली थी।
महिला के पिता ने दलील दी थी कि वह एक मनोरोग मरीज है और उसका इलाज चल रहा है। जिसके आधार पर हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल ने कहा था कि तीन डाक्टरों की एक टीम महिला की मनोरोग जांच करे। इस टीम में एक मनोरोग चिकित्सक भी शामिल किया जाए और इस टीम का गठन रायपुर स्थित डाक्टर बी आर अंबेडकर मेडिकल कालेज का डीन करे। इस जांच के बाद सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट दायर की जाए।
इस आदेश को चुनौती देते हुए इस महिला ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पैटिशन यानि विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। दलील दी गई कि हाईकोर्ट ने अपना आदेश उसका पक्ष सुने बिना ही जारी कर दिया,जिससे उसके स्वायत्ता व प्रतिष्ठा के अधिकार का हनन हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम.आर शाह व जस्टिस ए.एस बोपान्ना की पीठ ने पाया कि हाईकोर्ट ने अपना आदेश महिला का पक्ष सुने बिना ही दे दिया। जबकि उसने केस में हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगते हुए अर्जी दायर की थी।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया है कि वह आज से चार सप्ताह के अंदर अपनी अर्जी हाईकोर्ट के समक्ष दायर कर दे।जब तक हाईकोर्ट उसकी अर्जी पर अपना आदेश नहीं दे देती है,तब तक हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश पर रोक जारी रहेगी।
''हाईकोर्ट को इस बात की खुली छूट है िक वह चाहे तो याचिकाकर्ता को बुलाकर उससे बात कर सकती है और असली तथ्यों या सच्चाई को जानने की कोशिश कर सकती है।''
यह याचिका वकील गौरव अग्रवाल,पल्लव मोंगिया,अभिनव गोयल व सब्यसाची भादुड़ी के जरिए दायर की गई थी।
याचिका के अनुसार क्या था मामला
एसएलपी के अनुसार याचिकाकर्ता एक हिंदू है और उसे एक मुस्लिम आदमी से प्यार हो गया। इस आदमी ने बाद में अपना धर्म बदलकर हिंदू धर्म अपना लिया। फरवरी 2018 में उन्होंने आपस में शादी कर ली। जिसके एक महीने बाद अपनी शादी भी पंजीकृत करा ली। परंतु इन सबमें उसके माता-पिता खुश नहीं थे।
उसने अपने पति के पास रहने के लिए अपना घर छोड़ दिया था,परंतु उसे जबरन वापिस घर ले आया गया। जिसके चलते उसके पति ने जुलाई 2018 में हाईकोर्ट के समक्ष हैबियस काॅरप्यस यानि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी ताकि उसको उसके घर से छुड़वाया जा सके।
उसके पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि महिला को महिलाओं के छात्रावास में भेज दिया जाए ताकि वह इस मामले पर आराम से विचार कर सके। इसके खिलाफ उसके पति ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी। वहां पर महिला ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती है( परंतु इस एसएलपी के अनुसार महिला का कहना है िकवह बयान उसने दबाव में आकर दिया था)। महिला के इस बयान के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि वह बालिग है और अपनी मर्जी से कहीं भी रह सकती है।
जनवरी 2019 में महिला के पिता ने हाईकोर्ट में एक रिट पैटिशन दायर करते हुए पुलिस संरक्षण की मांग की और कहा कि शादी के मामले की जांच एसआईटी से करवाई जाए।
महिला ने कहा है कि उसके माता-पिता ने उसे प्रताड़ित किया है और वह उसे उसके पति के पास नहीं जाने दे रहे है। मार्च माह में उसने डायरेक्टर जनरल आॅफ पुलिस यानि पुलिस महानिदेशक को एक काॅल करके उसे छुड़ाने की गुहार लगाई,जिसके बाद एक पुलिस टीम उसके घर भेजी गई। 17 मार्च को पुलिस महिला को एक 'सखी वन स्टाॅप सेंटर' में ले गई,जहां उसने पुलिस और कार्यकारी दंडाधिकारी के समक्ष अपना बयान दिया।उसने बताया कि उसके घर में उसे प्रताड़ित किया जा रहा है। उसने बताया कि उसके माता-पिता उसे जबरन अकोला,महाराष्ट्र के मानसिक रोगियों के अस्पताल में ले गए,जिसके बाद सूरत में स्थित एक धर्मशाली/आश्रम में। जहां उसे धमकाया गया कि अगर उसने अपने पति के साथ जाने की बात कही तो उसे मार दिया जाएगा क्योंकि उसका पति पहले मुस्लिम था। उसका बयान लेने से पहले तीन डाक्टरों की एक टीम ने उसकी जांच की थी और अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वह मानसिक तौर पर बयान देने के लिए पूरी तरह फिट है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बताया कि फिर से हाईकोर्ट ने उसके मनोरोग जांच का आदेश दे दिया,जबकि राज्य सरकार की तरफ से बताया गया था कि महिला को मानसिक तौर पर एक मेडिकल टीम फिट करार दे चुकी है। 17 मार्च को तीन डाक्टरों की टीम ने उसका परीक्षण किया था।
इसी बीच उसके पति ने फिर से एक याचिका दायर कर मांग की थी कि उसकी पत्नी को उसके माता-पिता के घर से छुड़वाया जाए। हालांकि हाईकोर्ट में उसके पति को उसके साथ रहने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। साथ ही कहा था कि महिला अभी 'सखी वन स्टाॅप सेंटर' में ही रहेगी।
याचिका में बताया गया कि-''हाईकोर्ट ने उसके स्वास्थ्य के बारे में सिर्फ उसके पिता के प्रकथन पर अवैध तरीके से चिकित्सक जांच का आदेश दे दिया। इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखा गया कि याचिकाकर्ता बालिग है और उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार है। इतना ही नहीं उसे अपने पति के साथ रहने का भी अधिकार है। जबकि उसका पिता अवैध तरीके व आपराधिक दबाव के जरिए उसे उसके पति के पास जाने से रोक रहा है।''
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी हवाला दिया गया, 'हादिया केस/2018 ' भी शामिल है। इस केस में माना गया था कि एक बालिग महिला केा अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ रहने का अधिकार है।