कोर्ट रोज़गार के लिए अर्हता और आवश्यक योग्यता का निर्धारण नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-05-12 13:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक हाईकोर्ट न्यायिक समीक्षा के अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस बात का निर्णय नहीं कर सकता कि नियोक्ता के लिए क्या बेहतर है और इस बारे में विज्ञापन की सरल भाषा के विपरीत उसकी स्थिति की व्याख्याया नहीं कर सकता है।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने इस बारे में बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले को निरस्त करते हुए कहा कि किसी पद पर नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता के निर्धारण का काम नियोक्ता का है।

हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग के एक विज्ञापन की व्याख्या की थी और कहा था कि ऐसे उम्मीदवार जिनको औषधियों के शोध एवं विकास में निर्धारित वर्षों का अनुभव है उसे भी सहायक आयुक्त (औषधि) और औषधि निरीक्षकों के पद पर नियुक्ति नियुक्त किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि किसी पद के लिए योग्यता क्या होनी चाहिए नियोक्ता की ज़रूरतों और काम की प्रकृति के हिसाब से इसका सबसे बेहतर निर्णय नियोक्ता ही कर सकता है। कोर्ट ने कहा,

"नियोक्ता अतिरिक्त या वांछित योग्यता का निर्धारण कर सकता है और इसमें अपनी वरीयता का उल्लेख भी कर सकता है। अदालत अर्हता की स्थितियों का निर्धारण नहीं कर सकती है और वांछित योग्यता के मुद्दे की पड़ताल कि वह विज्ञापन को दुबारा सुधारने और उसकी व्याख्या के बाद आवश्यक अर्हता के बराबर है कि इसको देखने का तो काम ही उसका नहीं है। समानता का प्रश्न भी न्यायिक समीक्षा के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। अगर विज्ञापन की भाषा और उसके नियम स्पष्ट हैं, तो इसके बारे में कोर्ट कोई निर्णय नहीं कर सकता। अगर विज्ञापन में कोई अस्पष्टता है या यह किसी नियम या क़ानून के विपरीत है तो उस स्थिति में इस मामले को उचित आदेश के बाद नियुक्तिकर्ता अथॉरिटी को भेजा जाएगा कि वह क़ानून के अनुसार सारा कार्य करे।"

इस संदर्भ में, पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का सहायक आयुक्त (औषधि) और औषधि निरीक्षकों के लिए विज्ञापन की शर्तों की व्याख्या को सही नहीं ठहराया जा सकता है। विज्ञापन में जिस शब्द "प्रेफ़्रेन्स" का प्रयोग किया गया है उसकी इस तरह से व्याख्या नहीं की जा सकती है कि इसका अर्थ यह निकले कि कोई भी व्यक्ति जिसे किसी जाँच और शोध प्रयोगशाला में उपयुक्त अनुभव है तो उसे आवश्यक योग्यता है और इस पद नियुक्ति में वरीयता पाने का अधिकार उसको है, कोर्ट ने कहा।


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