'कोई टिप्पणी सिर्फ इसलिए सत्य नहीं है क्योंकि वह छपी हुई है,न ही इस आधार पर झूठी हो सकती है क्योंकि वह आॅनलाइन है-बाॅम्बे हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

किसी पर निष्पक्ष टिप्पणी करना,जो न्यायोयित हो,कोई मानहानि नहीं है। इसे अगर अलग नजरिये से देखे तोः राजा के पास कपड़े नहीं है,यह कहना कोई मानहानि नहीं है। न ही यह मानहानि हो सकती है-जस्टिस जी.एस पटेल

Update: 2019-05-08 05:09 GMT

पिछले दिनों ही बाॅम्बे हाईकोर्ट ने लोढ़ा डेवलपर्स द्वारा पत्रकार कृष्णाराज राॅव व एक दंपत्ति,जिसने लोढ़ा प्राॅपटी डिओरो,न्यू कफफे परेडे,वाडाला में दो फलैट खरीदे थे,के खिलाफ मानहानि का आरोप लगाते हुए दायर किए गए नोटिस आॅफ मोशन यानि प्रस्ताव सूचना का निपटारा कर दिया है।

  • लोढ़ा ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादियों ने उनकी मानहानि की है। इसलिए कोर्ट उन पर रोक लगा दे ताकि वह उनके किसी भी निर्माण के खिलाफ कुछ भी न कह सके। विशेषतौर पर डिओरो के निर्माण की गुणवत्ता के बारे में कहने से रोका जाए।
    कोर्ट ने इस विवाद का सार बताया जो इस प्रकार है-
    ''डिओरो नामक इमारत पर इस मामले में सवाल उठाया गया था,जो इस बिल्डर का प्रचलित फैशन है क्योंकि यह अपनी सभी इमारतों के इटेलियन नाम रखता है। इस तरह के नाम रखना न तो गलत है और न ही कोई दुर्घटनावश ऐसा किया जाता है। अच्छी सामाग्री प्रयोग करने का वादा करते हुए एक अच्छे जीवन स्तर का वादा किया जाता है तो इस केस का मुख्य विवाद का विषय है। यह याचिकाकर्ता द्वारा किए गए वादों का केस है। एक प्रतिवादी का कहना है कि याचिकाकर्ता ने अपने वादे पूरे नहीं किए और न ही कर रहा है।''
    क्या था मामला
    प्रतिवादी कृष्णाराज एक तहकीकात करने वाला पत्रकार है,जिसने पहले भी लोढ़ा के खिलाफ लिखा था और उनकी संपत्तियों के निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे। वर्ष 2011 से 2012 के बीच में प्रतिवादी शिल्पी थारड व उसके पति अमित जयसिंह ने वाडाला स्थित डिओरो इमारत में दो फलैट खरीदे। उन्होंने इन दोनों फलैट व क्लब की मेंबरशीप के लिए लोढ़ा को करीब छह करोड़ रुपए का भुगतान किया। उनको इन फलैट की पोजेशन वर्ष 2015 में देनी थी,परंतु ऐसा नहीं किया गया। जिससे उनको हानि हुई। बाद में उन पर जबरन पोजेशन थोप दी गई और उनको उनके फलैट देखने तक भी नहीं दिए गए। उनसे जबरन कुछ पेपर पर साइन ले लिए गए। उनका दावा है कि निर्माण कार्य में कई तरह की कमियां है। उन्होंने पाया कि जून 2018 के मानसून में लीकेज यानि पानी रिसना शुरू हो गया। इसी तरह अन्य फलैट के खरीददारों को भी परेशानी उठानी पड़ी। उन्होंने लोढ़ा के साथ इन मामलों को सुलझाने की कोशिश की परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद सितम्बर 2018 में थारड ने पत्रकार राॅव से संपर्क किया,जिसे वह लोढ़ा प्रोजेक्ट के बारे में पहले लिखी गई खबरों के कारण जानती थी।
    राॅव व थारड ने सितम्बर व अक्टूबर 2018 में साइट का मुआयना किया। उन्होंने वहां से फोटो ली और विडियो भी बनाई। जिसके बाद राॅव ने अपने ब्लाॅग में एक लेख लिया और लोढ़ा को पहले ही इसकी एक काॅपी भेज दी थी,परंतु उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। राॅव ने अपने ब्लाॅग '' बहादुर पैदल यात्री''पर फोटो व विडियो भी अपलोड कर दिए।
    राॅव के आरोप
    राॅव ने लोढ़ा डिवलेपर्स के खिलाफ कई आरोप लगाए,जिनमें से कुछ इस प्रकार है-
    • उसने आरोप लगाया कि डिओरो इमारत की पूरे बेसमेंट के लिए ओक्यूपेंसी सर्टिफिकेट नहीं लिया गया है।फायर बिग्रेड व एमएमआरडीए ने इसका निरीक्षण भी नहीं किया और इसे सर्टिफाई नहीं किया है। इतना ही नहीं तीन बेसमेंट की अनुमति लेकर चार का निर्माण कर दिया गया।
    • राॅव ने अपने ब्लाॅग में लिखा है कि लोढ़ा को पूरा वित्तिय ढ़ांचा फलैट के असल कारपेट एरिया के बारे में गलत बयान पर आधारित है। इतना ही नहीं निर्माण के फेज या स्टेज और पूरा होने की तारीख के बारे में भी गलत सूचनाएं दी गई है। उसने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे फलैट के एरिया में बालकनी का एरिया भी शामिल है। जबकि वैसा कारपेट एरिया के आधार पर लिया गया है जबकि लोढ़ा को पता था कि यह गलत है।

    कोर्ट का आदेश 

    लोढ़ा ने इस मामले में 17 जनवरी 2019 को केस दायर किया था,जिसमें मानहानि का आरोप लगाया गया। उसने बताया कि थारड एक ब्लैकमेलर है और उससे पैसा ऐंठना चाहती है। जस्टिस पटेल ने कहा कि-
    ''यह दिखाने का प्रयास किया गया कि सभी बातों का पालन किया गया और छोटा-मोटा काम बाकी है,जो कि असामान्य नहीं है और उसे पूरा कर दिया जाएगा। इसलिए जो लेख प्रकाशित किया गया है वो पूरी तरह पैसा ऐंठने के लिए था। क्योंकि उनकी मांग पूरी नहीं की गई इसलिए लेख प्रकाशित कर दिया। लोढ़ा ने अपने आप को एक निर्दोष पीड़ित बताया।''
    कोर्ट ने कहा कि-
    ''एक उद्देश्यपूर्ण पड़ताल के बाद पाया गया है कि राॅव ने जो बात कही है वो उसके अपने विचार है। निष्पक्ष टिप्पणी और दलील है,जो कुछ तथ्यों पर आधारित है।ऐसे में कोई आदेश देने या उससे पूछने का मतलब नहीं बनता है अगर उसने स्वेच्छा से यह बयान दिए है तो।''
    जहां तक लोढ़ा द्वारा कारपेट एरिया के बारे में अपने ग्राहकों को भ्रमित करने का मामला है तो उसे बारे में कोर्ट ने कहा कि-
    ''हो सकता है लोढ़ा 'धोखाधडी़' शब्द के प्रयोग को पसंद करे या न करे। कोर्ट इस मामले को बढ़ावा नहीं देना चाहती है। परंतु अगर अनुबंध में भी इस कारपेट एरिया के बारे में गलत सूचना दर्ज है तो निश्चित तौर पर यह सूचना लोढ़ा द्वारा अपने ग्राहकों के समक्ष रखी गई है। तो फिर अन्य के साथ एक तूफान आ सकता है। जो कि ज्यादा कठिन होने वाला है। ऐसे में की गई टिप्पणी प्रथम दृष्टया मानहानि करने वाली नहीं है। किसी पर निष्पक्ष टिप्पणी करना,जो न्यायोयित हो,कोई मानहानि नहीं है। इसे अगर अलग नजरिये से देखे तोः राजा के पास कपड़े नहीं है,यह कहना कोई मानहानि नहीं है। न ही यह मानहानि हो सकती है।
इसलिए इस मामले में दायर केस का निपटारा किया जा रहा है और उस रोक को भी हटाया जा रहा है जिसके तहत प्रतिवादियों को लोढ़ा व उसके प्रोजेक्ट पर टिप्पणी करने से रोका गया था।

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