सरकारी नौकर पारिवारिक पेंशन के बारे में वसीयत नहीं बना सकता : छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-05-04 05:44 GMT

Chhattisgarh High Court

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी नौकर फ़ैमिली पेंशन के बारे में वसीयत नहीं बना सकता।

विजय कौशिक नामक एक सिपाही ने अपना सारा पेंशन से जुड़े लाभ और पेंशन अपनी दूसरी पत्नी और उससे हुए बेटे के नाम कर दिया। उसकी मौत के बाद उसकी पत्नी और उसके बेटे ने उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए आवेदन दिया। कोर्ट ने उसका आवेदन ख़ारिज कर दिया और वसीयत के आधार पर उसकी दूसरी पत्नी और उसके बेटे के दावे को सही माना।

पुनरीक्षण याचिका पर हाईकोर्ट के समक्ष मुद्दा यह निर्णय करने का था कि क्या कोई सरकारी नौकर रिटायर होने के बाद अपने पेंशन और अन्य लाभों को लेकर कोई वसीयत बना सकता है या नहीं या यह सरकार के नियमों और सेवा शर्तों के अनुसार दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के इस बारे में कतिपय फ़ैसलों को आधार बनाते हुए न्यायमूर्ति ने कहा,

• एक कर्मचारी को ऐसे भुगतानों के बारे में कोई वसीयत बनाने का अधिकार नहीं है जो उसको जीवित रहते हुए नहीं मिलने जा रहा है।
• किसी व्यक्ति को इस तरह के लाभ सेवा में होने के कारण उसकी मौत के बाद मिलता है और यह मृतक की परिसंपत्ति का हिंसा नहीं होता और इसलिए इसके बारे में वसीयत नहीं बनाई जा सकती।
• अगर योजना/सेवा नियम यह बताता है कि किसी ख़ास व्यक्ति को कोई लाभ मिल सकता है तो उस व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को इसका लाभ नहीं मिल सकता।
• अगर योजना/नियम में किसी को जीते-जी नामित करने का प्रावधान नहीं है तो इसके बारे में वसीयत नहीं बनाया जा सकता।

इन सिद्धांतों को लागू करते हुए कोर्ट ने कहा कि पहली पत्नी चूँकि मृत सरकारी नौकर की वैध पत्नी है इसलिए वह पूरे पेंशन और इससे जुड़े सारे लाभों की हक़दार है।

हालाँकि कोर्ट ने कहा कि ग्रेच्यूटी, छुट्टी के पैसे, समूह बीमा, फ़ैमिली लाभ फ़ंड, विभागीय भविष्य निधि मृत कर्मचारी की परिसंपत्ति का हिस्सा है और यह वसीयत के हिसाब से दूसरी पत्नी को मिलेगा।


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