क्या सुनवाई शुरू होने के बाद शिकायत में संशोधन के आवेदन की अनुमति दी जा सकती है? पढ़िए क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-02-20 06:56 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में स्पष्ट किया कि सुनवाई शुरू होने के बाद कब और किस आधार पर दलील में संशोधन की अनुमति के लिए आवेदन दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदर की पीठ ने कहा कि इस तरह के आवेदन पर ग़ौर करते हुए कोर्ट को यह तजवीज़ करनी है कि ऐसा करना उचित है या अनुचित और यह कि ऐसा करने से दूसरे पक्ष के ख़िलाफ़ कहीं ऐसा भेदभाव तो नहीं होता है जिसकी पैसे से भरपाई नहीं हो सकती।

कोर्ट M. Revanna vs. Anjanamma मामले पर ग़ौर कर रहा था जिसमें वादी ने सुनवाई शुरू होने के बहुत बाद में शिकायत में संशोधन के लिए सीसीपी के आदेश VI और नियम 17 के तहत आवेदन किया। उन्होंने अपने आवेदन में कहा कि बँटवारा 1972 में हो चुका है और वे अब इस मामले को आगे नहीं ले जाना चाहते।

पीठ ने शिकायत में संशोधन के बारे में निर्धारित क़ानून का उल्लेख करते हुए कहा,"संशोधन की अनुमति उस स्थिति में नहीं दी जा सकती है अगर कोर्ट को लगता है कि इसके द्वारा पूरी तरह अलग, नया और अस्थिर मामला बनाया जा रहा है या फिर इससे मामले का मौलिक चरित्र बदल जाएगा। सीसीपी के आदेश VI और नियम 17 के तहत सुनवाई शुरू होने के बाद संशोधन की अनुमति है बशर्ते कोर्ट यह निष्कर्ष रूप में कहती है कि पूरे प्रयासों के बावजूद पक्ष सुनवाई शुरू होने से पहले यह मुद्दा उठाने की स्थिति में नहीं था। ये प्रावधान किसी भी अवस्था में संशोधन की अनुमति देने के विशेषाधिकार पर पाबंदी लगाता है। इसलिए सुनवाई शुरू होने के बाद संशोधन चाहने वाले व्यक्ति की यह ज़िम्मेदारी है कि वह यह साबित करे कि उचित प्रयासों के बावजूद वह इस मामले को सुनवाई शुरू होने से पहले उठा नहीं पाया था। एक बात तो तय है कि हर परिस्थिति में संशोधन अधिकार नहीं है। वैसे सामान्यतः मुक़दमों की संख्या नहीं बढ़ाने के लिए इस तरह के संशोधन की अनुमति दे दी जाती है पर इसके लिए कोर्ट को यह देखना होता है कि संशोधन का आवेदन उचित है कि नहीं और इससे कहीं दूसरे पक्ष के ख़िलाफ़ ऐसा भेदभाव तो नहीं होता जिसकी भरपाई पैसे से नहीं हो पाए।"

वर्तमान मामले में कोर्ट ने कहा कि शिकायत में संशोधन के लिए तत्काल आवेदन करने में न केवल अब देर हो गई है बल्कि यह उचित भी नहीं है और अगर इसकी अनुमति दी गई इससे मामले की प्रकृति और इसका चरित्र बदल जाएगा और प्रतिवादी के ख़िलाफ़ भेदभाव की स्थिति बनेगी। कोर्ट ने कहा कि अभी अगर संशोधन की अनुमति दी गई तो इसका मतलब होगा वादी को यह कहना कि वह शिकायत में दर्ज अपने उस बयान को वापस ले ले कि बँटवारा पहले नहीं हुआ था। 


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