हरियाणा शराब लाइसेंस नियम: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वित्तीय आयुक्त यह निर्णय नहीं कर सकता कि राज्य में कितने लाइसेंस जारी किए जाएँगे

Update: 2019-02-16 11:43 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा शराब लाइसेंस नियम, 1970 के नियम 24(i-eeee) को यह कहते हुए ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया है कि यह पंजाब आबकारी अधिनियम, 1914 के अनुरूप नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति केएम जोसफ़ की पीठ ने बहुमत से अपने फ़ैसले में यह कहा कि वित्तीय आयुक्त यह निर्णय नहीं कर सकता कि पूरे राज्य में कितने लाइसेंस जारी किए जाएँगे। धारा 6, 13(a) और 58(2)(e) के तहत यह अधिकार पूरी तरह से राज्य सरकार के पास है।

न्यायमूर्ति केएम जोसफ़ ने इस फ़ैसले से असहमत होते हुए अलग फ़ैसला सुनाया और कहा कि वित्तीय आयुक्त को यह अधिकार है।

संशोधित नियम को अब ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया जा चुका है। पूरे राज्य में अब विदेशी शराब जिसकी बोतलबंदी देश के बाहर होती है और उसे देश में आयात किया जाता है, के लिए एकल L-1BF लाइसेंस जारी किया जाएगा

यह फ़ैसला International Spirits And Wines Association Of India की अपील पर सुनाया गया जिसका यह मानना था कि वित्तीय आयुक्त को अधिनियम की उपरोक्त धाराओं के तहत यह अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने असोसीएशन की याचिका रद्द कर दी थी।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा ने बहुमत के लिए लिखे अपने फ़ैसले में कहा, "…हमारी राय में यह कहना कि वित्तीय आयुक्त को शराब की बिक्री के विनियमन …का अधिकार है और इसे लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया से ही अंजाम दिया जा सकता है और वित्तीय आयुक्त को यह अधिकार है…हमारी राय में यह न केवल अनुचित है बल्कि नहीं टिकने वाला है…"

इस तरह पीठ ने याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि वित्तीय अधिकारी को लाइसेंस देने से संबंधित इन नियमों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने संशोधन को ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया और उसे निरस्त कर दिया।


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