सिर्फ़ इसलिए अग्रिम ज़मानत नहीं दिया जा सकता क्योंकि गिरफ़्तारी से आवेदक की प्रतिष्ठा धूमिल होगी : गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2019-02-13 07:58 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड और उनके पति जावेद आनंद को उनके सबरंग ट्रस्ट के ₹1.4 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी में दर्ज मामले में अग्रिम ज़मानत दे दी है।

ज़मानत देते हुए जस्टिस जेबी परदीवाला ने कहा कि ज़मानत दिए जाने के समय ज़मानत लेने वाले की प्रतिष्ठा पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा, "समाज में आवेदक की प्रतिष्ठा और उसके प्रतिष्ठित पत्रकार होने और सामाजिक कार्यकर्ता होने का उसके राशियों के हेरफेर से संबंधित आपराधिक आरोपों से कोई लेना देना नहीं है।

अग्रिम ज़मानत देना एक अहम मामला है और अपवादस्वरूप कुछ मामलों में इस पर ग़ौर किया जा सकता है जब यह लगता है कि आवेदक को झूठा फँसाया जा रहा है या उसके ख़िलाफ़ तुच्छ आधार पर जानबूझकर मामला गढ़ा जा रहा है ताकि उसकी प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया जा सके…"

कोर्ट ने कहा कि अग्रिम ज़मानत सिर्फ़ इसलिए नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि गिरफ़्तार होने से आवेदक की प्रतिष्ठा ख़तरे में पड़ जाएगी और इस पर ही ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने इसके बाद आवेदनकर्ताओं का स्वीकार कर लिया और इन्हें 15 फ़रवरी को जाँच अधिकारी के सामने पेश होने को कहा। इन दोनों को आवश्यक शर्तों के साथ अग्रिम ज़मानत दे दी।

इन दोनों के ख़िलाफ़ गत वर्ष 30 मार्च को एक एफआईआर दर्ज कराया गया था।यह एफआईआर रईस खान पठान नामक व्यक्ति ने दर्ज कराया जो तीस्ता सीतलवाड के सहयोगी रह चुके हैं। उन्होंने इस शिकायत में आरोप लगाया है कि गोधरा कांड के बाद 2002 में भड़की हिंसा में कुछ लोगों को झूठी गवाही देने के लिए राशियों का दुरुपयोग किया गया था।

इससे पहले गुजरात पुलिस ने अपने एक बयान में कहा था कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत 2010 और 2013 के बीच उन्हें ₹1.4 करोड़ रुपए दिए थे। पुलिस ने आरोप लगाया था कि इन दंपतियों ने इस राशि का दुरुपयोग किया जिसके कारण इनके ख़िलाफ़ आईपीकी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।

इन लोगों ने निचली अदालत से अग्रिम ज़मानत नहीं मिलने के बाद मई में हाईकोर्ट में अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया था।

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