हत्या के लिए दूसरी बार दोषी ठहराए जाने पर कब मौत की सज़ा दी जा सकती है? पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हत्या के आरोपी एक व्यक्ति की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया। इस व्यक्ति पर एक महिला पर एसिड डालकर उसको मार देने का आरोप था।
न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि हत्या के लिए दूसरी बार दोषी ठहराए जाने पर मौत की सज़ा तभी दी जा सकती है जब दोनों ही मामलों में कोई पैटर्न दिखाई देता हो।
पीठ ने आरोपी को सज़ा दिए जाने को जायज़ ठहराया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में मौत की सज़ा दिए जाने का कोई विशेष कारण नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने जो अपराध किया है, उसमें विशेष तरह की नृशंसता भी नहीं दिखाई देती है, जिसको 'विरलों में भी विरल' (rarest of rare) मामला कहा जाए।
पीठ ने कहा कि आरोपी ने यह अपराध तब किया जब वह किसी अन्य मामले में ज़मानत पर था, जिसमें उसे हत्या का दोषी माना गया था और उसकी सज़ा को सही माना गया है। कोर्ट ने कहा कि सामान्य रूप से इससे उसको मौत की सज़ा दी जानी चाहिए।
"यह निस्सन्देह मुश्किल है कि इस बात को नज़रंदाज़ किया जाए, पर हमने पाया है कि इस मामले विशेष के तथ्यों के आधार पर सज़ा देना ज़्यादा उचित लगता है। निस्संदेह, अगर दोनों मामलों में कोई पैटर्न दिखता है, तो दूसरी हत्या के आरोप में मौत की सज़ा दी जा सकती है। पर इस मामले में ऐसा नहीं लगता है। पहले जो घटना हुई है वह इस मामले की परिस्थितियों से बिलकुल असंबद्ध हैं," पीठ ने कहा।
"अपीलकर्ता पर एक सह-आरोपी किरण नर्स के साथ मिलकर लक्ष्मीनारायण ऊर्फ़ लक्ष्मण सिंह की 27.07.1994 और 28.07.1994 की रात के बीच हत्या करने का आरोप है। दूसरा मामला 21.07.2013 को हुआ और पिछला मामला, वर्तमान घटना के लगभग एक दशक पहले का है," कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने आरोपी की मौत की सज़ा को बदलते हुए कहा, "मामले की परिस्थितियों और जिस तरह का एसिड चुना गया था, उसको देखते हुए यह नहीं लगता है कि मृतक महिला की निर्मम हत्या की आरोपी की योजना थी। बहुत सारे अन्य मामलों की तरह इसमें भी, शायद इरादा मृतक महिला को गहरी चोट पहुँचाने या उसको बदरूप करने का था; इस मामले में हमला ऐसा गंभीर हुआ, जिसकी कोई पूर्व योजना नहीं थी और इसी वजह से इस महिला की मौत हो गई। ऐसा सम्भव है कि आरोपी ने मृतक महिला को गंभीर रूप से चोट पहुँचाने का सोचा था, न कि उसकी हत्या करने का। हमने ऊपर जो भी कहा है, उसका अर्थ यह नहीं है कि अपीलकर्ता ने जो किया है, उसको कमतर आँका जाए बल्कि हम यह बताना चाहते हैं कि वर्तमान मामले में कोई विशेष कारण नहीं है कि आरोपी को मौत की सज़ा दी जाए।"
पीठ ने इस तरह, अपीलकर्ता की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया।