अतिरिक्त अपराध जोड़ने के बाद आरोपी को गिरफतार करने के लिए जांच अधिकारी या प्राधिकरण को उस कोर्ट से आदेश लेना होगा,जिसने जमानत दी थी-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-07-17 11:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि जिस मामले में आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है, अगर उसमें कुछ और अपराध जोड़े जाते है तो जांच अधिकारी या जांच करने वाले प्राधिकरण को उस कोर्ट से आरोपी को गिरफ्तार करने की अनुमति लेनी होगी, जिसने आरोपी को जमानत दी थी।

दरअसल जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस के. एम. जोसफ की पीठ इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट के आदेश में यह मुद्दा निकलकर आया था कि एक आपराधिक मामले में जब आरोपी को जमानत दी जा चुकी है और उसके बाद उसमें कुछ अन्य धाराएं जोड़ दी जाती हैं, तो क्या यह जरूरी है कि आरोपी को पहले दी गई जमानत को रद्द कर दिया जाना चाहिए ताकि आरोपी को कस्टडी में लिया जा सके?

कोर्ट ने यह माना कि जिस व्यक्ति को पहले ही जमानत दी जा चुकी है, उसे गंभीर व गैर-संज्ञेय अपराध लगाने के बाद गिरफ्तार किया जा सकता है और हिरासत में रखा जा सकता है, जिसके लिए हमेशा पहले दी गई जमानत को रद्द करने के आदेश की आवश्यकता नहीं है।

पूर्व में दिए गए कुछ फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाला है-
-आरोपी आत्मसमर्पण कर सकता है और नए लगाए संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए फिर से जमानत अर्जी दायर कर सकता है। अगर उसे जमानत नहीं दी जाती है तो ऐसी सूरत में आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकता है।

-जांच एजेंसी सीआरपीसी की धारा 437(5) या 439 (2) के तहत कोर्ट से आरोपी को गिरफ्तार करने और उसकी हिरासत का आदेश ले सकती है।

- कोर्ट सीआरपीसी की धारा 437 (5) या 439 (2) के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए आरोपी को दी गई जमानत को रद्द करते हुए उसे हिरासत में लेने का निर्देश दे सकती है। कोर्ट धारा 437 (5) व इसी तरह धारा 439 (2) के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अतिरिक्त गंभीर व गैर-संज्ञेय अपराध लगाए जाने के बाद उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने या हिरासत में लेने का निर्देश दे सकती है, जिसे पहले जमानत दी जा चुकी है। ऐसा करने के लिए हमेशा पहले दी गई जमानत को रद्द करने के आदेश की आवश्यकता नहीं है।

- ऐसे मामले में, जहां पर आरोपी को पहले ही जमानत दी जा चुकी है, जांच अधिकारी या जांच करने वाला प्राधिकरण अतिरिक्त अपराध या अपराधों को जोड़ने के बाद आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए आगे नहीं कर सकता है, परंतु इस तरह के अतिरिक्त अपराध या अपराधों में आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए, जांच अधिकारी को उस कोर्ट से आरोपी को गिरफ्तार करने का आदेश लेना होगा, जिस कोर्ट ने आरोपी को जमानत दी थी।

संज्ञान लेने के बाद रिमांड-सीआरपीसी: 167(2) या 309(2)?
दूसरा मुद्दा, जिस पर पीठ ने विचार किया, वो यह था कि जब किसी मामले में कोर्ट पहले ही संज्ञान ले चुकी है तो क्या उसके बाद सीआरपीसी की धारा 167 के तहत मिले अधिकारों का प्रयोग किया जा सकता है या आरोपी को सिर्फ सीआरपीसी की धारा 309(2) के तहत ही रिमांड पर भेजा जा सकता है?

पीठ ने इस स्थिति को निम्नलिखित तरीके से संक्षेप में प्रस्तुत किया-

जब तक कोर्ट द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता है, तब तक जांच के दौरान आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत रिमांड पर भेजा जा सकता है।

हालांकि संज्ञान लेने के बाद भी जब आरोपी को फिर से आगे की जांच के लिए गिरफ्तार किया जाता है तो ऐसी स्थिति में भी आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत रिमांड पर भेजा जा सकता है।

जब संज्ञान लिया जा चुका है और संज्ञान लेने के समय आरोपी हिरासत में था या जब उसके संबंध में जांच या सुनवाई चल रही थी, तो उसे सिर्फ सीआरपीसी की धारा 309 (2) के तहत न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है।


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