बच्चे को गोद देने या गर्भपात में करे चुनाव-बाॅम्बे हाईकोर्ट ने कहा दुष्कर्म पीड़िता से,वह चाहती है गर्भपात करवाना [आर्डर पढ़े]

’’अगर वह बच्चे को अपनना नहीं चाहती है तो उसके पास किशोर न्याय अधिनियम के नियमों के तहत बच्चे को गोद देने का विकल्प भी है।’’

Update: 2019-06-23 15:08 GMT

बाॅम्बे हाईकोर्ट ने हालांकि एक दुष्कर्म की पीड़िता को खुद के जोखिम पर गर्भपात करवाने की अनुमति दे दी है। साथ ही उसे यह बात भी याद दिलाई है कि उसके पास बच्चे को किसी को गोद देने का विकल्प भी मौजूद है।

क्या है यह पूरा मामला?
एक लड़की ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए यह कहा था कि उसके प्रेमी ने उससे शादी का वादा करके उसका यौन उत्पीड़न किया और उसे धोखा दिया। उसने अदालत को यह भी बताया कि वह आरोपी की इस करतूत के कारण अपनी पूरी जिदंगी बिन-ब्याही मां का कलंक नहीं झेलना चाहती है। इसलिए वह अपना गर्भपात करवाना चाहती है,जबकि उसके गर्भ में इस समय 20 सप्ताह से ज्यादा का बच्चा है।

अदालत ने गर्भपात की अनुमति देते हुए रखे अपने विचार
जस्टिस पी. एन. देशमुख और जस्टिस पुष्पा वी. गणेदीवाला की पीठ ने लड़की की मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद यह पाया कि याचिकाकर्ता का केस मेडिकल टर्मिनेशन आॅफ प्रेग्रेंसी एक्ट यानि गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति अधिनियम की धारा 3 के तहत निर्धारित दायरे में आता है।

कोर्ट ने कहा कि, "भारत में बिन-ब्याही मां बनना एक सामाजिक कलंक माना जाता है, जो कि गंभीर प्रकृति का है। इसलिए वह इस तरह के कलंक को अपने ऊपर जिदंगीभर के लिए नहीं लगवाना चाहती है। हमारा यह मानना है कि यह न तो याचिकाककर्ता के लिए फायदेमंद होगा न ही उसके पेट में चल रहे बच्चे के लिए। अगर याचिकाकर्ता को इस बच्चे को जन्म देने के संबंध में उसकी मर्जी को नकार दिया गया तो आज के सामाजिक परिवेश को देखते हुए हम भविष्य की उन परेशानियों को समझ सकते है जो याचिकाकर्ता को अपनी पूरी जिदंगी व शादीशुदा जीवन में झेलनी पड़ सकती है। जबकि यह उसके जीवन, स्वतंत्रता व मानवीय गरिमा के मौलिक अधिकार का मूल है।''

अदालत का सुझाव
लेकिन इसी के साथ कोर्ट ने इस लड़की को एक सुझाव भी दिया। कोर्ट ने उसको चेताते हुए कहा कि उसे किसी एक्सपर्ट गायनोक्लोजिस्ट से सलाह-मशविरा कर लेना चाहिए और इस तरह के गर्भपात से उसके स्वास्थ्य व भविष्य में गर्भधारण करने पर पड़ने वाले प्रभाव को भी जान लेना चाहिए।

पीठ ने कहा कि-
''अगर वह बच्चे को नहीं अपनाना चाहती है तो उसके पास किशोर न्याय अधिनियम के नियमों के तहत इस बच्चे को किसी को गोद देने का विकल्प भी मौजूद है। केंद्रीय एजेंसी सीएआरए के तहत बनाई गई प्रक्रिया के तहत उसका नाम गोपनीय रखा जाएगा और उसे व बच्चे को आपस में कभी मिलने नहीं दिया जाएगा। इतना ही नहीं बच्चे के जैविक माता-पिता का नाम भी हमेशा गोपीय रखा जाएगा और बच्चे को इस बारे में कभी नहीं बताया जाएगा। उसके पास यह दोनों विकल्प मौजूद है।''

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