देवता की संपत्ति बेचने का मामला-सुप्रीम कोर्ट ने किया झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को रद्द,हाईकोर्ट ने दिया था सीबीआई से जांच कराने का आदेश [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-05-07 16:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है,जिसमें हाईकोर्ट ने एक मंदिर की संपत्ति को अवैध तरीके से हस्तांतरित करने के मामले में जांच सीबीआई को सौंपी थी।

जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड़ व जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने खुद ही गलत राह चुनी है और इस मामले की जांच सीबीआई को करने का निर्देश दे दिया,जबकि यह मामला ट्रस्टी के अधिकारों से जुड़ा है,जो एक धार्मिक ट्रस्ट या देवता की संपत्ति बेचेने से संबंधित है। ऐसे में इसे सिविल विवाद का रूप दे दिया गया।
इस मामले में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया था कि देवता की संपत्ति को हस्तांतरित करते समय ट्रस्ट ने बिहार राज्य बोर्ड आॅफ रिलिजियस ट्रस्ट से अनुमति ली थी। परंतु यह अनुमति गलत तथ्य पेश करके व धोखाधड़ी से ली गई थी। चूंकि मामले में आरोपी सरकार व बोर्ड के खिलाफ थे,इसलिए हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
ट्रस्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी। इसी अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को एक धार्मिक संस्थान की संपत्ति गलत तरीके से बेचने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करने से खुद बचना चाहिए था। एक देवता की संपत्ति में अधिकार निधान दानकर्ताओं का होता है परंतु इसमें आम जनहित शामिल नहीं होता है। जबकि इस मामले में जनहित याचिका दायर कर इस मामले को उठाया गया है।
पीठ ने यह भी पाया कि हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी,जबकि इस मामले में धार्मिक ट्रस्ट के खिलाफ इस संपत्ति से संबंधित स्थानीय पुलिस स्टेशन में कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई थी। पीठ ने कहा कि-
''यह दिमाग में जरूर रखा जाना चाहिए कि संविधान की अनुसूची वीआईआई की लिस्ट-दो के तहत पब्लिक आर्डर(एंट्री-1) और पुलिस (एंट्री-2) राज्य सरकार के विषय है। इसलिए यह जांच एजेंसी राज्य की पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है कि उनके अधिकार क्षेत्र में किए जाने वाले अपराधों की जांच करें। सीबीआई को जांच तभी सौंपी जा सकती है जब विशेष परिस्थितियां हो,जैसा कि स्टेट आॅफ वेस्ट बंगाल केस में बताई गई है। उन परिस्थितियों के संतुष्ट होने के बाद ही किसी मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जा सकती है। इस अधिकार का प्रयोग साधारण तरीके से न किया जा सकता है और न करना ही चाहिए। इसके लिए अपराध की गंभीरता,जटिलता और कई बार मामले की सुस्त जांच,जिसमें खुद किसी राज्य की जांच एजेंसी के उच्च अधिकारी शामिल हो,आदि का ध्यान रखना चाहिए।''
हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि-
''सफाई देते हुए टिप्पणी की गई है कि आरोप सरकार व बोर्ड के खिलाफ लगाए गए है,जो सरकारी अधिकारी ही है,इसलिए मामले की जांच सीबीआई से करवाई जानी जरूरी है। यह सभी टिप्पणी अपुष्ट है और सरकार व बोर्ड के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। सरकार में अलग-अलग अधिकारी काम करते है और राज्यकर्मचारी के अपने स्तर पर रोक व संतुलन बने हुए है। सिर्फ राज्य सरकार के अधिकारियों ने अनुमति दी थी,इस आधार पर कोई आपराधिक केस नहीं बनता है। हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए एक देवता की संपत्ति बेचने के मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए है।

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