जिस अपराध में हो उम्रकैद तक की सज़ा ,उस अपराध के आरोपी को नहीं दिया जा सकता है नेकचलनी या प्रोबेशन का लाभ-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-04-02 05:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नेकचलनी या प्रोबेशन का लाभ उस आरोपी को नहीं दिया जा सकता है,जो ऐसे अपराध में दोषी पाया गया हो,जिसमें उम्रकैद तक की सजा हो।

जस्टिस एल.नागेश्वर राॅव व जस्टिस एम.आर शाह की खंडपीठ इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। इस अपील में प्रोबेशन आॅफ आफेंडर एक्ट के सेक्शन 4 का लाभ देने की मांग करते हुए कहा गया था कि मामले में घटना लगभग साढ़े 23 साल पुरानी है। ऐसे में इस स्टेज पर आरोपी को जेल भेजने से कोई फायदा नहीं होने वाला है।

पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था,जिसमें कंपाउंडिंग दाॅ आफेंस यानि माफ कर देने का आदेश दिया गया था और केस वापिस भेज दिया था। जिसके बाद हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया था।

इस मामले में घटना 19 नवम्बर 1985 की है। निचली अदालत ने आरोपी को दोषी करार देते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 326 आर/डब्ल्यू धारा 149 के तहत पांच साल कैद की सजा,धारा 325 आर/डब्ल्यू धारा 149 के तहत दो साल कैद की सजा,भारतीय दंड संहिता की धारा 148 के तहत छह माह कैद की सजा और धारा 323 आर/डब्ल्यू 149 के तहत तीन माह कैद की सजा दी थी।

शिकायतकर्ता व राज्य की तरफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि-इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के तहत किए गए अपराध में उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। बेंच ने कहा िकइस धारा के तहत हुए अपराध को न तो सीआरपीसी की धारा 360 के तहत माफी दी जा सकती है और न ही प्रोबेशन एक्ट की धारा 4 के तहत।

जब इस कोर्ट ने इस मामले को फिर से हाईकोर्ट के पास भेजा था,उस समय कुछ टिप्पणी की थी,परंतु हाईकोर्ट ने उन टिप्पणियों पर ध्यान नहीं दिया और निर्धारित कानून के तहत एक्ट को लागू नहीं किया।

हालांकि कोर्ट ने इन तथ्यों को ध्यान में रखा कि घटना को इतने साल हो चुके है। आरोपियों की उम्र व उसके स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए उनको कोर्ट की कार्रवाई खत्म होने तक कोर्ट में खड़े रहने की सजा दी। वहीं मुआवजे की राशि को 75 हजार रुपए से बढ़ाकर पांच लाख रुपए कर दिया। 


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