विधवा हिंदू महिला का मामला-अगर बिना वसीयत किए हो जाती है मौत,तो महिला की वंशागत या पैतृक तौर पर मिली संपत्ति हो जाएगी बेटे व बेटी को हस्तांतरित-बाॅम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

- हिंदू उत्तराधिकारी एक्ट 1956 के सेक्शन 14 के प्रावधानों के अनुसार माना जाता है कि वादी व प्रतिवादी की मां का संपत्ति पर पूरा अधिकार था,जो कि पहले सीमित अधिकार माना जाता था। -हिंदू उत्तराधिकारी एक्ट के अनुसार किसी महिला की मौत हो जाने के बाद उसकी पैतृक संपत्ति में उसके पति,बेटों व बेटी का अधिकार है।

Update: 2019-04-15 04:30 GMT

बाॅम्बे हाईकोर्ट ने पिछले दिनों उस व्यक्ति को राहत देने से इंकार कर दिया है,जिसने कहा था कि उसके माता-पिता की मौत के बाद उनकी पैतृक संपत्ति पर उसका अकेले का अधिकार है। कोर्ट ने इस व्यक्ति की बहन के पक्ष में फैसला दिया है,जिसने कहा था कि उसका भी संपत्ति में हिस्सा है।

याचिकाकर्ता जगन्नाथ उंद्रे की एक बड़ी बहन यमुनाबाई है। उसकी बहन ने केस दायर कर मांग की थी कि पैतृक संपत्ति में उसका भी हिस्सा है। इस केस को निचली अदालत ने खारिज कर दिया,परंतु पूने के जिला जज की कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया।

जस्टिस संदीप के शिंदे ने उंद्रे की अपील पर सुनवाई करते हुए माना कि अपीलेट जिला कोर्ट का आदेश सही था और उसने निचली अदालत के फैसले को पलट कर कुछ गलत नहीं किया। कोर्ट ने माना कि एक विधवा हिंदू महिला की पैतृक संपत्ति हिंदू उत्तराधिकारी एक्ट के तहत बेटा व बेटी,दोनों को मिलेगी।

क्या था मामला

वमान उंद्रे की मौत 15 अप्रैल 1944 को हो गई थी। उसके पीछे पत्नी शांताबाई,बेटी यमुनाबाई(वादी) व बेटा जगन्नाथ (प्रतिवादी) रह गए थे। वमान की मौत के बाद संपत्ति पर अधिकार के रिकार्ड के मामले में जगन्नाथ का अकेले का नाम था। परंतु उस समय वह नाबालिग था,इसलिए उसकी मां का नाम वास्तविक गार्जियन के तौर पर लिख दिया गया। शांताबाई करीब 65 साल की उम्र में मानसिक तौर पर बीमार हो गई और उसने 1972 में घर छोड़ दिया। उसकी बेटी की तरफ से केस दायर करने से पहले ही शांताबाई की मौत हो गई। ऐसे में वमान उंद्रे के उत्तराधिकारी के तौर पर वादी व प्रतिवादी ही रह गए।

फैसला

प्रतिवादी के वकील उत्कर्ष देसाई ने दलील दी कि वमान उंद्रे की मौत 1944 में हुई थी। उस समय के उत्तराधिकारी कानून के अनुसार घर के पुरूष सदस्य को ही पैतृक संपत्ति मिल सकती थी। इसलिए दाखिलखारिज के रिकार्ड में सिर्फ उसके मुविक्कल का नाम लिखकर सही किया गया है।

कोर्ट ने संपत्ति में हिंदू महिला के अधिकार से संबंधित बने एक्ट 1937 व हिंदू उत्तराधिकारी एक्ट 1956 को देखने के बाद कहा कि-

हिंदू महिला संपत्ति में अधिकार एक्ट 1937 के सेक्शन तीन के सब-सेक्शन दो के अनुसार अगर कोई हिंदू,जिस पर हिंदू कानून लागू होते है,मर जाता है और उसकी मौत के समय उसका हिंदू परिवार की संयुक्त संपत्ति में हिस्सा था,तो उसकी मौत के बाद यह हिस्सा उसकी पत्नी का माना जाएगा। हालांकि इस संपत्ति में उसकी पत्नी के हिस्से की कुछ सीमाएं है। कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू महिला की संपत्ति चाहे वह उसे एक्ट बनने से पहले मिली हो या उसके बाद,वह संपत्ति पूरी तरह उसकी मानी जाएगी और वहीं उसकी मालकिन है। वह उस संपत्ति की एक सीमित मालकिन नहीं है।

कोर्ट ने निष्कर्ष देते हुए कहा कि अपीलेट कोर्ट ने मामले के तथ्यों व कानून को सही तरीके से लिखा है।

इसलिए हिंदू उत्तराधिकारी एक्ट 1956 के सेक्शन 14 के प्रावधानों के अनुसार माना जाता है कि वादी व प्रतिवादी की मां का संपत्ति पर पूरा अधिकार था,जो कि पहले सीमित अधिकार माना जाता था।

इस मामले में इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि वादी व प्रतिवादी की मां की मौत 1956 में हो गई थी। ऐसे में हिंदू उत्तराधिकारी एक्ट 1956 के अनुसार उसकी मां का संपत्ति में जो हिस्सा था,उस पर इसी एक्ट के नियम लागू होंगे। इस एक्ट के नियमों के अनुसार उस सपंति पर मृतका के बेटों,बेटी व पति का अधिकार है। इसलिए इस मामले में दायर अपील को खारिज किया जाता है।


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