'आपके पास विज्ञापनों के लिए फंड है, लेकिन RRTS प्रोजेक्ट के लिए नहीं?' : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पिछले तीन सालों में विज्ञापन के लिए इस्तेमाल किए गए फंड का ब्योरा मांगा

Update: 2023-07-03 10:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल किए गए फंड का ब्योरा देने को कहा। कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की डिवीजन बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी।

दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बजटीय बाधाओं की वजह से वो रीजनल रैपिड ट्रांसिट सिस्टम यानी RRTS प्रोजेक्ट के लिए फंड देने में सक्षम नहीं है। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि हमें 2 हफ्ते की भीतर बताइए कि आपने पिछले 3 साल में विज्ञापनों पर कितना खर्च किया है।

कोर्ट को बताया गया कि दिल्ली सरकार इस प्रोजेक्ट, खासकर दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर के लिए फंड देने में सक्षम नहीं है। इस संबंध में नियुक्त कमिशन को मामला भेजने की मांग की गई ताकि कोई निर्णय लिया जा सके।

मामले में उपस्थित वकीलों में से एक ने कहा कि दिल्ली सरकार ने भी इसी तरह का रुख अपनाया है और दिल्ली-मेरठ कॉरिडोर के लिए फंड जारी नहीं किया है।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा,

“दिसंबर, 2020 में डीजी ने खुद NCRTC को इसके बारे में सूचित कर दिया था। उन्होंने ये बताया था कि वो फंड देने में सक्षम नहीं हैं।“

जस्टिस कौल ने पूछा, "क्यों?"

वकील ने जवाब दिया,

“फंड की कमी के कारण। ये कैबिनेट का निर्णय है।”

जस्टिस कौल ने संकेत दिया कि अगर आवश्यक हुआ, तो कोर्ट विज्ञापन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फंड को प्रोजेक्ट में लगाने के लिए आदेश दे सकता है।

आगे कहा, "आइए देखें कि आप कितना फंड खर्च कर रहे हैं। हम कहेंगे- विज्ञापन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला सारा फंड डायवर्ट कर दिया जाएगा। क्या आप इस तरह का आदेश चाहते हैं?"

राज्य के वकील ने इस पर कहा, हमने साल 2020 में ही बता दिया था कि हमारे पास फंड नहीं है। कोविड के कारण स्थिति और खराब हो गई है। केंद्र की तरफ से दिया जाना वाला जीएसटी मुआवजा भी पिछले वित्तीय वर्ष से बंद कर दिया गया है।

आगे कहा, "ये 5000 करोड़ रुपये से अधिक है।"

जस्टिस कौल ने कहा,

''क्या इसकी एक ही बार में जरूरत है? आइए देखें कि आप अन्य चीजों पर कितना खर्च करते हैं। ये एक डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है। हालांकि वित्तीय पहलू हम राज्य सरकार पर छोड़ते हैं, लेकिन इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए जब आप कहते हैं कि कोई फंड नहीं है तो हम जानना चाहते हैं कि आपने विज्ञापन पर कितना खर्च किया है। प्रोजेक्ट बनाना भी एक विज्ञापन है कि आप कुछ कर रहे हैं।”

केस टाइटल: एमसी मेहता बनाम यूओआई और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) संख्या 13029/1985 जनहित याचिका

Tags:    

Similar News