ED मामले पर एसजी और सीजेआई के बीच बहस: एसजी ने कहा- ED के खिलाफ स्टोरी गढ़ रहा मीडिया, चीफ जस्टिस ने दिया यह जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके फैसले और कार्रवाई किसी भी "मीडिया की बातों" से प्रभावित नहीं होतीं। कोर्ट का यह बयान सॉलिसिटर जनरल (एसजी) द्वारा इस दलील के जवाब में आया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) के खिलाफ मीडिया में स्टोरी गढ़ी जा रही है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ED जैसी जांच एजेंसियों द्वारा अपने मुवक्किलों को दी गई कानूनी राय पर वकीलों को तलब करने के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दायर मामले की सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई शुरू होने पर चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि सीनियर वकीलों को ED द्वारा तलब किए जाने के बारे में लाइवलॉ और बार एंड बेंच में छपी खबरें पढ़कर वह स्तब्ध हैं।
एसजी तुषार मेहता ने शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया कि केंद्र स्वतः संज्ञान मामले में 'विरोधात्मक' रुख नहीं अपनाना चाहता। साथ ही एसजी ने कहा कि मीडिया द्वारा ED के खिलाफ गलत स्टोरी गढ़ी जा रही है। उन्होंने न्यायालय से ऐसे प्रत्यक्ष आख्यानों से प्रभावित न होने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा,
"यह मैं कह रहा हूं, प्रवर्तन निदेशालय नहीं, एक संस्था के विरुद्ध आख्यान गढ़ने का केंद्रित प्रयास है। माननीय जज कुछ मामलों में अतिक्रमण पाते हैं, माननीयजज स्पष्ट रूप से-"
चीफ जस्टिस ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा,
"हम कई मामलों में ऐसा पा रहे हैं, ऐसा नहीं है कि हमें (अतिक्रमण) नहीं मिल रहा है।"
एस.जी. ने जवाब दिया,
"कृपया ऐसा न करें... इंटरव्यू और यूट्यूब के आधार पर- आख्यान गढ़ा जा रहा है।"
इससे असहमत होते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायालय की कार्रवाई उसके समक्ष उपस्थित मामलों को संभालने के अनुभव से आई है।
हालांकि, चीफ जस्टिस और एस.जी. दोनों इस बात पर एकमत थे कि किसी पीठ की टिप्पणियां प्रत्येक मामले के तथ्यों पर आधारित होती हैं। चीफ जस्टिस ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे न केवल अपील दायर करने के लिए ही तर्कसंगत आदेशों के विरुद्ध भी अपील दायर कर रहा है।
चीफ जस्टिस ने कहा,
"सुविचारित आदेश पारित होने के बाद भी ED केवल अपील दायर करने के लिए ही अपील पर अपील दायर कर रहा है।"
एस.जी. ने इस बात पर पलटवार किया कि अदालतों में मामला पहुंचने से पहले ही इंटरव्यू और यूट्यूब के माध्यम से "कथा-निर्माण शुरू हो जाता है"। उन्होंने सुझाव दिया कि न्यायालय को इस मुद्दे पर भी विचार करना चाहिए कि क्या कोई वकील अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करते हुए अदालत के बाहर स्टोरी बना सकता है।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वह अपनी टिप्पणियों को किसी न्यूज या यूट्यूब इंटरव्यू के आधार पर नहीं ले रही है, जिसकी ओर एस.जी. इशारा कर रहे थे।
जस्टिस चंद्रन ने भी एस.जी. के तर्क पर आपत्ति जताई और कहा:
"आप कैसे कह सकते हैं कि ये स्टोरीज हमें प्रभावित करेंगी यदि हम उन्हें देखते ही नहीं हैं? स्टोरीज़ हर जगह चलती रहेंगी, लोग चिंतित हो सकते हैं, लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि हम उनसे प्रभावित हुए हैं।"
चीफ जस्टिस ने आगे कहा,
"क्या आपने हमारे द्वारा लिखे गए ऐसे किसी भी फैसले को देखा है, जिसमें निर्णय मामले के तथ्यों पर आधारित न हो? एक फैसला बताइए।"
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि जजों को यूट्यूब इंटरव्यू देखने का समय कम ही मिलता है।
सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि यूट्यूब चैनलों के अलावा भी कई मीडिया माध्यम हैं, जो कंटेंट निर्माण का प्रयास करते हैं।
बता दें, जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने पुलिस और जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब करने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की थी। बाद में इस मामले को सीजेआई के पास भेज दिया था, जिसके बाद यह स्वतः संज्ञान मामला दर्ज किया गया।
यह घटनाक्रम एक ऐसे मामले में हुआ, जहां गुजरात पुलिस ने एक अभियुक्त का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को तलब किया था। वकील को जारी नोटिस पर रोक लगाते हुए खंडपीठ ने कहा कि वकीलों को तलब करने से कानूनी पेशे की स्वतंत्रता कमज़ोर होगी और परिणामस्वरूप न्याय का निष्पक्ष प्रशासन प्रभावित होगा।
जस्टिस विश्वनाथन की बेंच के हस्तक्षेप के बाद 4 जुलाई को स्वतः संज्ञान मामला दर्ज किया गया।
Case : In Re : Summoning Advocates Who Give Legal Opinion or Represent Parties During Investigation of Cases and Related Issues | SMW(Cal) 2/2025