.. और गुरुवार को फैसला देकर जस्टिस मुरलीधर ने कहा, ये दिल्ली हाईकोर्ट में मेरा अंतिम न्यायिक कार्य, वकीलों ने कहा, आप हमारी प्रेरणा

Update: 2020-02-27 05:06 GMT

बुधवार देर रात केंद्र सरकार द्वारा तबादले के नोटिफिकेशन के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर गुरुवार की सुबह जस्टिस वी कामेश्वर राव के साथ अदालत में बैठे और फैसला सुनाया।

इस दौरान जस्टिस मुरलीधर ने कहा, " ये इस अदालत में मेरा अंतिम न्यायिक कार्य है।" इस दौरान अदालत में बहुत सारे वकील थे। एक वकील ने कहा कि जस्टिस मुरलीधर सभी की प्रेरणा हैं। इसके बाद जस्टिस मुरलीधर वहां से उठ कर चले गए।

दरअसल जस्टिस मुरलीधर ने पहले मंगलवार देर रात दिल्ली हिंसा की सुनवाई की और उसके बाद बुधवार को फिर से मामले की सुनवाई कर दिल्ली पुलिस पर बड़े सवाल उठाए थे। इसके बाद मामले की सुनवाई गुरुवार के लिए तय की थी लेकिन देर रात ही उनके पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में तबादले का नोटिफिकेशन जारी हो गया।

दरअसल 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मुरलीधर को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इसका विरोध किया था और एक दिन काम भी नहीं किया था।

जस्टिस मुरलीधर ने वर्ष 1984 में चेन्नई में कानून का अभ्यास शुरू किया। तीन साल बाद, 1987 में, वह सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय आ गए। वह सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के वकील के रूप में सक्रिय थे और बाद में दो कार्यकालों के लिए इसके सदस्य भी रहे। उन्हें जनहित के कई मामलों में और दोषियों को मृत्युदंड देने वाले मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था। उनके निशुल्क कार्य में भोपाल गैस आपदा के पीड़ितों और नर्मदा पर बांधों से विस्थापित लोगों के मामले शामिल थे।

उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और भारत के चुनाव आयोग के लिए भी परामर्श दिया और विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य रहे। मई 2006 में, उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 2003 में, उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी से सम्मानित किया गया।दिल्ली उच्च न्यायालय में जज के तौर पर

वह कई महत्वपूर्ण बेंचों में रहे हैं, जिसमें 2010 की फुल कोर्ट में भी शामिल थे जिसने सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति को आरटीआई में घोषित करने के पक्ष में फैसला सुनाया था। वह हाईकोर्ट की उस पीठ का एक हिस्सा थे जिसने 2009 में नाज फाउंडेशन मामले में समलैंगिकता को वैध बनाया था।उन्होंने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जिसने हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) के सदस्यों और 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया था। 

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