यासीन मलिक को जम्मू कोर्ट में शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-04-04 08:15 GMT
यासीन मलिक को जम्मू कोर्ट में शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 अप्रैल) को भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की हत्या और 1989 में रुबैया सईद के अपहरण से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए जम्मू कोर्ट में कश्मीरी अलगाववादी यासीन मलिक को शारीरिक रूप से पेश किए जाने के खिलाफ फैसला सुनाया। इसके बजाय, कोर्ट ने निर्देश दिया कि मलिक (जिन्होंने अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए वकील नियुक्त नहीं करने का विकल्प चुना) को तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के माध्यम से मामले में गवाहों से जिरह करने की अनुमति दी जाए।

कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने दिसंबर 2024 में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 303 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आदेश पारित किया, जिसमें मलिक के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से एक साल के लिए बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगाया गया।

इस निषेधात्मक आदेश के मद्देनजर, कोर्ट ने माना कि जम्मू कोर्ट के समक्ष उनकी शारीरिक रूप से पेशी उचित नहीं है। न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के महापंजीयक तथा दिल्ली जेल अधीक्षक की रिपोर्ट से यह भी पाया कि निचली अदालत तथा तिहाड़ जेल दोनों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा है। न्यायालय ने यह भी पाया कि BNSS की धारा 530 गवाहों की जांच के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा के उपयोग की अनुमति देती है। हाईकोर्ट ने यह भी दिशा-निर्देश तैयार किए कि आपराधिक मुकदमों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा का उपयोग किया जा सकता है।

इस पृष्ठभूमि में खंडपीठ ने मलिक को भौतिक रूप से पेश करने के निचली अदालत का आदेश खारिज कर दिया। खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर कुछ भी नहीं देखा है।

जस्टिस अभय एस ओक तथा जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही, जिसमें 1989 में भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की हत्या से संबंधित मामले में यासीन मलिक को सुनवाई के लिए उसके समक्ष पेश करने के जम्मू न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रस्तुत CBI ने कहा कि यासीन मलिक को भौतिक रूप से पेश करने के संबंध में सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं। तिहाड़ जेल से खंडपीठ के समक्ष वर्चुअली पेश हुए यासीन मलिक ने कहा कि वह "आतंकवादी" नहीं हैं और केवल "राजनीतिक नेता" हैं।

इस बिंदु पर जस्टिस ओक ने उनसे कहा कि खंडपीठ मामले की योग्यता पर निर्णय नहीं ले रही है और केवल इस मुद्दे पर विचार कर रही है कि उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाहों से क्रॉस एक्जामिनेशन करने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। मलिक ने कहा कि वह CBI की इस दलील का जवाब दे रहे हैं कि उन्हें जम्मू कोर्ट के समक्ष शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जा सकता क्योंकि वह "खतरनाक आतंकवादी" हैं।

मलिक ने कहा,

"लेकिन न की आपत्ति यह है कि मैं सुरक्षा के लिए खतरा हूं। मैं इसका जवाब दे रहा हूं। मेरे और मेरे संगठन के खिलाफ किसी भी आतंकवादी को समर्थन देने या किसी भी तरह का ठिकाना उपलब्ध कराने के लिए एक भी FIR नहीं है। मेरे खिलाफ FIR हैं लेकिन वे सभी मेरे अहिंसक राजनीतिक विरोध से संबंधित हैं।"

खंडपीठ ने कहा,

"हम इस मुद्दे पर निर्णय नहीं ले रहे हैं कि आप आतंकवादी हैं या राजनीतिक नेता।

जस्टिस ओक ने दोहराया कि एकमात्र मुद्दा यह है कि क्या आपको वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से गवाहों से क्रॉस एक्जामिनेशन करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

केस टाइटल- CBI बनाम मोहम्मद यासीन मलिक

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