हाईकोर्ट 'तथ्यों के गंभीर विवादित प्रश्नों' पर निर्णय लेने के लिए अपने रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं कर सकते; सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि एक उच्च न्यायालय 'तथ्यों के गंभीर विवादित प्रश्नों' पर निर्णय लेने के लिए अपने रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं कर सकता है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि यह उच्च न्यायालय के लिए नहीं है कि वह परस्पर विरोधी तकनीकी रिपोर्टों का तुलनात्मक आकलन करे और तय करे कि कौन सी रिपोर्ट स्वीकार्य है।
मामला पुराने भवन की मरम्मत को लेकर मकान मालिक और किराएदार के बीच हुए विवाद से उपजा है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक किरायेदार द्वारा दायर रिट याचिका में अपने जोखिम और लागत पर आर्किटेक्ट की सहायता से एक दीवार को हटाने का काम शुरू करने की स्वतंत्रता देने का आदेश पारित किया। नगर निगम अधिनियम की धारा 354 के तहत नगर निगम द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने मकान मालिक द्वारा दायर अपील में कहा कि उच्च न्यायालय ने एक दीवार को हटाने के निर्देश में एक गंभीर त्रुटि की है, जब अन्य आर्किटेक्ट्स की राय के आधार पर तकनीकी सलाहकार समिति की एक पूर्व रिपोर्ट सहित परस्पर विरोधी रिपोर्टों में भवन को सी-1 श्रेणी का घोषित किया गया था।
पीठ ने कहा कि,
"यह अच्छी तरह से स्थापित है कि उच्च न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है, तथ्यों के विवादित प्रश्नों का निर्णय नहीं करता है। यह उच्च न्यायालय के लिए विरोधाभासी तकनीकी रिपोर्टों का तुलनात्मक मूल्यांकन करने के लिए नहीं है और यह तय करने के लिए नहीं है कि कौन-सा स्वीकार्य है।"
अदालत ने कहा कि आदेश में उच्च न्यायालय ने यह नहीं बताया कि वह कैसे संतुष्ट था कि निर्देशित तरीके से मरम्मत करके भवन की स्थिरता को बहाल किया जा सकता है। इसलिए बेंच ने अपील को मंजूर कर लिया।
केस का शीर्षक: शुभास जैन बनाम राजेश्वरी शिवम [CA 2848 of 2021]
कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम
CITATION: LL 2021 SC 335