गवाह अपने दोस्त की हत्या देख सो गया? सुप्रीम कोर्ट ने दो दशक बाद हत्या के मामले में दोषी को बरी किया

Update: 2023-03-23 14:32 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हत्या के एक मामले में एकमात्र चश्मदीद की गवाही में कई खामियों को देखते हुए सजा रद्द कर दी।

नरेंद्रसिंह केशुभाई जाला की अपील पर जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने यह फैसला दिया, जिसे 2003 में राम नामक व्यक्ति की हत्या के दोष में गुजरात की एक ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

गुजरात हाईकोर्ट ने भी सजा की पुष्टि की थी, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

मामला

मृतक के दोस्त नीरव बिपिनभाई पटेल ने हत्या का चश्मदीद होने का दावा किया था।

मामले में नीरव का अभियोजन गवाह 3 (पीडब्‍लू 3) के रूप में परीक्षण किया गया था। उसने अपनी गवाही में बताया था कि वह और मृतक एक सड़क के पास बैठे थे, जब अभियुक्त एक अन्य व्यक्ति के साथ मोटरसाइकिल पर आया और मृतक पर गोली चला दी। पीडब्‍लू 3 ने बताया कि मृतक ने आरोपी से पूछा था कि वह उसके उधार ल‌िए पैसे कब देगा, जिसके बाद उसने गोली चला दी थी।

ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने पीडब्लू 3 की गवाही को स्वीकार कर लिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे भरोसमंद नहीं पाया।

कोर्ट ने कहा, हमले के बाद हमलावर मौके से भाग गए, और पीडब्लू 3 भी अपने घायल दोस्त का खून बहता छोड़कर वहां से भाग गया। उसने कहा था कि वह डर गया था और अपने चाचा को घटना के बारे में बताने गया था। चाचा ने बदले में उसे घर जाकर सोने को कहा। वह राम के घर अगले दिन गया था और घटना के बारे में उसकी मां और बहन को जानकारी दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पीडब्‍लू 3 के आचरण को अप्राकृतिक और अविश्वसनीय पाया, खासकर जब उसने अपने दोस्त को घायल छोड दिया और घर जाकर सो गया। कोर्ट ने उसके डरे हुए होने की दलील को भी स्वीकार नहीं किया, क्योंकि पुलिस मुख्यालय घटनास्थल से 3-4 मिनट की पैदल दूरी पर था।

फैसला, जिसे जस्टिस संजय करोल ने लिखा, में कहा गया,

"गवाह वयस्क, परिपक्व और दुनियावी रूप से समझदार है। उसकी उम्र 24 साल है। वह एक किराने की दुकान चलाता है। वह अनपढ़ नहीं है, फिर भी उसने अपने दोस्त की जान बचाने के लिए भी कुछ नहीं करने का फैसला किया। उसका स्पष्टीकरण कि वह घर गया और सो गया, भरोसे के लायक नहीं है, क्योंकि घटना उसकी उपस्थिति में और बस्ती के करीब हुई, विशेष रूप से पुलिस मुख्यालय से सिर्फ 3-4 मिनट की पैदल दूरी पर, जहां चौबीसों घंटे कांस्टेबल तैनात रहते हैं।

उसने अपने दोस्त को मौके पर ही बुरी तरह लहूलुहान छोड़ दिया। उसने कोई मदद नहीं मांगी और घटना की सूचना मृतक के परिवार के सदस्यों तुरंत नहीं दी, जिनके घर वह अगले दिन लगभग 8:00-9:00 बजे गया था। सो जाना, अपने दोस्त को मरते हुए देखना और फिर तुरंत अस्पताल न जाना बिलकुल अस्वाभाविक है। साथ ही उसने घटना की जानकारी अपने माता-पिता को भी नहीं दी। जब पुलिस ने उससे पूछताछ की तब जाकर उसने अभियुक्त का नाम बताया।"

इस संदर्भ में उन मिसालों का हवाला दिया गया, जिनमें माना गया है कि गवाह का अप्राकृतिक आचरण विश्वसनीयता पर संदेह करने का आधार हो सकता है।

बेंच ने स्वतंत्र गवाह पीडब्‍लू 6 की गवाही पर भी संदेह जताया, जिसने दावा किया कि वह मृतक को अस्पताल ले गया था और उसके पिता को घटना की सूचना दी थी। उसने अपनी गवाही में बताया था कि जोर-जोर से चीखने की आवाज सुनकर वह मौके पर पहुंचा था, जहां उसने देखा ‌था कि मृतक सड़क पर पड़ा हुआ है। फिर उसने एक ऑटोरिक्शा मंगवाया, जिसमें पीड़ित को अस्पताल ले जाया गया। ऑटोरिक्शा चालक की भी जांच नहीं की गई थी। इस गवाह ने भी स्वीकार किया कि उसने गोली चलने की कोई आवाज नहीं सुनी थी।

पीठ ने कहा कि गवाही में अन्य विसंगतियां भी थीं।

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के इकबालिया बयान को छोड़कर, उसके साथ हथियार के लिंक को भी साबित नहीं कर पाया। न्यायालय ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि वह अपराध करने में इस्तेमाल हथियार के उपयोग को स्थापित करे। ऐसा नहीं कर पाना न्याय की विफलता का कारण बन सकता है।

यह पाया गया कि हाईकोर्ट ने सबूतों की स्वतंत्र समीक्षा के बिना दोषसिद्धि की पुष्टि की थी। उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया गया।

केस टाइटल: नरेंद्रसिंह केशुभाई जाला बनाम गुजरात राज्य

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 226


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