"हम आदेश पारित नहीं करेंगे, आप इसे वापस ले लें", सुप्रीम कोर्ट ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाने के केंद्र के आवेदन को वापस लेने की अनुमति दी

Update: 2021-01-20 08:25 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली पुलिस को अनुमति दी की वह गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी करने के लिए दायर आवेदन को वापस ले ले। उल्लेखनीय है कि किसानों ने विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ गणतंत्र दिवस पर विरोध प्रदर्शन का फैसला किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "मानदंड यह है कि पुलिस तय करती है कि अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। आप देश के कार्यकारी हैं और निर्णय लेने का अधिकार है। आपके पास उचित आदेश पारित करने की शक्तियां हैं। न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हम इसे लंबित नहीं रख सकते हैं।"

यह फैसला, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ के उस फैसने के बाद आया है कि, जिसमें उन्होंने आवेदन को लंबित रखने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि दिल्ली पुलिस के पास कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कानून के तहत शक्तियां प्राप्त हैं और यह अदालत का मामला नहीं है।

18 जनवरी को, न्यायालय ने मौखिक रूप से यह माना था कि किसानों के प्रवेश पर निर्णय लेना दिल्ली पुलिस का कार्य है और न्यायालय से कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर आदेश पारित करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

सीजेआई एसए बोबेडे ने अटॉर्नी जनरल को कहा था, "दिल्ली में प्रवेश का सवाल कानून और व्यवस्था की स्थिति है, जिसे पुलिस तय करती है। हमने एजी और एसजी को पहले बता चुके हैं किसे अनुमति दी जानी चाहिए और किसे अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और कितने लोग शामिल हो सकते हैं, कानून और व्यवस्‍था के सभी मामलों का निस्तारण दिल्ली पुलिस द्वारा किया जाएगा। हम पहले प्राधिकरण नहीं हैं। आप कानून के तहत सभी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं।"

बुधवार को कृषि कानूनों के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दरमियान अटॉर्नी जनरल द्वारा आवेदन का उल्लेख किए जाने पर, सीजेआई ने कहा, "हम कह चुके हैं कि यह पुलिस को तय करना है। हम आदेश पारित नहीं करेंगे। हम आपको इस आवेदन को वापस लेने की अनुमति देंगे। आप प्राधिकरण हैं। आप तय करें।"

उल्लेखनीय है कि एजी ने कोर्ट को बताया था कि 5000 ट्रैक्टर दिल्ली में प्रवेश करने जा रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने मामले को लंबित रखने के लिए अदालत से आग्रह किया था कि वह 25 जनवरी को विचार करें कि स्थिति कैसा रूप लेती हैं।

हालांकि, तीन जजों की बेंच ने कानून के तहत दिल्ली पुलिस के अधिकार का हवाला देते हुए इस मामले पर विचार करने से इनकार कर दिया। पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा था कि यह तय करने की वह 'पहला प्राधिकरण' है कि प्रदर्शनकारी किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश दिया जा सकता है या नहीं।

दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि यह सुरक्षा एजेंसियों के संज्ञान में आया है कि "विरोध करने वाले व्यक्तियों / संगठनों के एक छोटे समूह ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर / ट्रॉली / वाहन मार्च करने की योजना बनाई है" और यह मार्च परेड को बाधित करेगा और साथ-साथ कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा करेगा, जिससे राष्ट्र की शर्मिंदगी होगी।

यह कहते हुए कि विरोध करने का अधिकार सार्वजनिक लोक व्यवस्था और जनहित के खिलाफ है, दिल्ली पुलिस ने दलील दी थी कि इस अधिकार में "राष्ट्र को विश्व स्तर पर अपमानित करने" को शामिल नहीं किया जा सकता। यह देखते हुए कि सुप्रीम कोर्ट कृषि अधिनियमों और किसानों के विरोधों की संवैधानिकता के मुद्दों पर जब्त है, आवेदन के तहत सुप्रीम कोर्ट से गणतंत्र दिवस को तय विरोध मार्च को रोकने के लिए निषेधाज्ञा पारित करने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने ने 12 जनवरी को याचिका पर नोटिस जारी किया था। सीजेआई ने बाद में टिप्पणी की ‌थी कि उन्हें केंद्र सरकार को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि स्थिति से निपटने के लिए उनके पास कानून है।

12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी और किसानों के साथ बातचीत के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति को 2 महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। कोर्ट ने कहा था कि सभी किसान यूनियन "कमेटी" के समक्ष उपस्थित होंगे, जिससे यह तय हो गया था कि यूनियनों को वार्ता में भाग लेना अनिवार्य था।

हालांकि, प्रदर्शनकारी यूनियनों ने कहा कि वे समिति के सामने पेश नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि इस कार्यान्वयन को स्‍थगित करने से "किसानों की भावनाओं को लगी ठेस" कम होगी और यह "उन्हें वापस लौटने के लिए प्रोत्साहित करेगा"।

समिति की संरचना की एक उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि सभी चार सदस्यों- बीएस मान, अशोक गुलाटी, डॉ प्रमोद कुमार जोशी और अनिल घणावत ने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन के समर्थन में खुल कर विचार प्रकट कर चुके हैं। प्रदर्शनकारी यूनियनों ने कहा कि वे एक ऐसी समिति के सामने पेश नहीं होंगे, जिसमें केवल एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य हों।

विरोध के बाद, बीएस मान ने घोषणा की ‌थी कि वह अदालत द्वारा नियुक्त समिति से हट रहे हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण विकास में, भारतीय किसान यूनियन लोकशक्ति ने एक अर्जी दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के पुनर्गठन की मांग की थी।

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