गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों के बाद पुलिस हिरासत नहीं हो सकती है, इस दृष्टिकोण पर फिर से विचार करने की आवश्यकता : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-04-11 04:06 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सीबीआई बनाम अनुपम जे कुलकर्णी के मामले में उसके फैसले पर, जिसमें यह कहा गया था कि गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों के बाद पुलिस हिरासत नहीं हो सकती है, इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने सीबीआई को एक आरोपी की 4 दिन की पुलिस हिरासत की अनुमति दी, जिसका रिमांड मूल रूप से एक विशेष अदालत द्वारा 16.04.02021 को 7 दिनों की अवधि के लिए दिया गया था । लेकिन, उस समय सीबीआई केवल ढाई दिनों की अवधि के लिए पूछताछ कर पाई थी, क्योंकि आरोपी को अंतरिम रूप से अस्पताल में भर्ती कराया गया था और अंततः अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

आदेश पारित करते हुए बेंच ने कहा -

"किसी भी अभियुक्त को जांच और/या अदालत की प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। किसी भी अभियुक्त को अपने आचरण से न्यायिक प्रक्रिया को विफल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता है कि हिरासत में पूछताछ/जांच का अधिकार भी जांच एजेंसी के पक्ष में सच्चाई का पता लगाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकार है, जिसे अभियुक्त ने जानबूझकर और सफलतापूर्वक विफल करने का प्रयास किया है। इसलिए, सात दिनों की शेष अवधि के लिए सीबीआई को पुलिस हिरासत में पूछताछ की अनुमति ना देकर, यह एक अभियुक्त को प्रीमियम देना होगा जो न्यायिक प्रक्रिया को विफल करने में सफल रहा है।”

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

27.11.2020 को, सीबीआई ने ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड, सीआईएसएफ, रेलवे के अधिकारियों के खिलाफ धारा 120बी पठित धारा 409 आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध करने के लिए प्राथमिकी दर्ज की। 16.04.2021 को विकास मिश्रा को गिरफ्तार कर सात दिन की सीबीआई हिरासत में भेज दिया गया।

जब वह हिरासत में थे, मिश्रा को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और सीबीआई द्वारा पूछताछ नहीं की जा सकी। 21.04.2021 को उन्हें विशेष अदालत ने अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया। इसके बाद समय-समय पर उनकी जमानत अवधि बढ़ाई जाती रही।

दिनांक 08.12.2021 को विशेष अदालत ने जमानत शर्तों को पूरा न करने के आधार पर अंतरिम जमानत रद्द कर दी। हालांकि आदेश में यह उल्लेख किया गया था कि मिश्रा को विशेष अदालत के समक्ष पेश होना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें 11.12.2021 को फिर से गिरफ्तार किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। हिरासत में रहने के दौरान वह 12.12.2021 से 08.04.2022 तक और फिर 07.05.2022 से 08.09.2022 तक अस्पताल में भर्ती रहे। इसके बाद,गिरफ्तारी की तारीख यानी 11.12.2021 से 90 दिनों की अवधि के भीतर चार्जशीट/रिपोर्ट दाखिल न करने के आधार पर मिश्रा ने धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन दायर किया। गौरतलब है कि चार्जशीट 19.07.2022 को दाखिल की गई थी। विशेष अदालत ने अर्जी खारिज कर दी। विशेष अदालत के आदेश को कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने आवेदन की अनुमति दी और उन्हें धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया। नतीजतन, सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 27.02.2023 को शीर्ष अदालत ने आरोपी से हिरासत में पूछताछ करने की जांच एजेंसी की प्रार्थना पर नोटिस जारी किया।

सबमिशन

सीबीआई की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सीबीआई को 16.04.2021 से 22.04.2021 तक पुलिस रिमांड मिला। हालांकि, इस बीच मिश्रा अस्पताल में भर्ती हो गए और उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई। इस प्रकार, 16.04.2021 को दी गई पुलिस हिरासत रिमांड का सीबीआई द्वारा प्रयोग नहीं किया जा सका। उसने अनुरोध किया कि सीबीआई को सात दिनों की शेष अवधि के लिए मिश्रा की पुलिस हिरासत में दिया जाए।

मिश्रा की ओर से सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी की तारीख से पहले 15 दिनों के बाद कोई पुलिस हिरासत नहीं दी जा सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सीबीआई के इस तर्क में कोई दम नहीं है कि 18.04.2021 को मिश्रा ने अपनी हिरासत से बचने के लिए खुद को अस्पताल में भर्ती कराया। कौल ने कहा कि 08.04.2022 से 18.04.2022 तक जब मिश्रा को एक अन्य मामले में पुलिस हिरासत में भेजा गया था, तो वर्तमान मामले में भी उनसे व्यापक पूछताछ की गई थी। इसके अलावा, जब वह अंतरिम जमानत पर थे, तब उनसे सीबीआई ने पूछताछ की थी।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्लेषण

अदालत ने कहा कि जब कोई जमानत/अंतरिम जमानत पर है, तो कोई पुलिस हिरासत नहीं हो सकती है और इसलिए वर्तमान मामले में, सीबीआई विशेष अदालत द्वारा दी गई रिमांड के पूरे सात दिनों के लिए मिश्रा से पूछताछ नहीं कर सकती है। इसने मिश्रा की अंतरिम जमानत को रद्द करते हुए विशेष अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों पर ध्यान दिया, जिसमें टिप्पणी भी शामिल है, "सटीक जांच के लिए न्यायिक हिरासत के माध्यम से अभियुक्त व्यक्ति की ज़बरदस्त भागीदारी अब आसन्न और अपरिहार्य प्रतीत होती है।"

स्वतंत्रता के दुरुपयोग और सीबीआई के साथ असहयोग से संबंधित विशेष अदालत की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि अनुपम जे कुलकर्णी के मामले में उसका फैसला, जिसमें यह कहा गया था कि गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों से अधिक पुलिस हिरासत नहीं हो सकती है, पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।

यह ध्यान में रखते हुए कि सीबीआई प्रतिवादी-आरोपी से केवल दिनांक 16.04.2021 के आदेश के अनुसार दिए गए पुलिस रिमांड की अवधि के दौरान ढाई दिन की पूछताछ कर पाई है और इसलिए सात दिनों की पुलिस रिमांड की पूरी अवधि के लिए पूछताछ के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकी, अदालत ने सीबीआई को प्रतिवादी को चार दिन के पुलिस रिमांड पर रखने की अनुमति दी।

केस विवरण- सीबीआई बनाम विकास मिश्रा @ विकाश मिश्रा| 2023 लाइवलॉ SC 283 | क्रिमिनल अपील नंबर 957 / 2023| 10 अप्रैल, 2023| जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 - धारा 167(2) - यह सच है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम अनुपम जे कुलकर्णी के मामले में, (1992) 3 एससीसी 141 में रिपोर्ट किया गया, इस न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों के बाद कोई पुलिस हिरासत नहीं हो सकती हमारी राय में, अनुपम जे कुलकर्णी (उपरोक्त) के मामले में इस न्यायालय द्वारा लिए गए दृष्टिकोण पर पुनर्विचार की आवश्यकता है- पैरा 7, 7.1

दंड प्रक्रिया संहिता 1973- किसी भी अभियुक्त को जांच और/या अदालत की प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। किसी भी अभियुक्त को अपने आचरण से न्यायिक प्रक्रिया को विफल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता है कि हिरासत में पूछताछ/जांच का अधिकार भी जांच एजेंसी के पक्ष में सच्चाई का पता लगाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकार है, जिसे अभियुक्त ने जानबूझकर और सफलतापूर्वक विफल करने का प्रयास किया है। इसलिए, सात दिनों की शेष अवधि के लिए सीबीआई को पुलिस हिरासत पूछताछ की अनुमति ना देकर, यह एक अभियुक्त को प्रीमियम देना होगा जो न्यायिक प्रक्रिया को विफल करने में सफल रहा है - पैरा 8

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