गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए टीकाकरण: सुप्रीम कोर्ट ने डीसीपीसीआर की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया

Update: 2021-09-20 06:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए COVID टीकाकरण का मुद्दा उठाने वाली एक रिट याचिका पर नोटिस जारी किया।

डीसीपीसीआर (जो एक वैधानिक निकाय है) की ओर से पेश अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ को सूचित किया कि इस साल मई में याचिका दायर करने के बाद, यून‌ियन ऑफ इं‌डिया ने गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं के टीकाकरण के लिए परिचालन दिशानिर्देश जारी किए हैं। ग्रोवर ने हालांकि कहा कि सरकार की ओर से कुछ चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है।

ग्रोवर ने कहा, "चूंकि हम एक ऐसे वायरस का सामना कर हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं, यह समझने के लिए वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है कि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा निरंतर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए रजिस्ट्री बनाने की आवश्यकता है।"

डीसीपीसीआर द्वारा उठाई गई चिंताओं के आलोक में, पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया, और परिचालन दिशानिर्देशों के संबंध में भारत के सॉलिसिटर जनरल की सहायता मांगी। याचिका को 2 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया जाएगा।

पीठ ने आदेश में कहा, "डीसीपीसीआर ने अनुच्छेद 32 के तहत याचिका स्थापित की है। डीसीपीसीआर की ओर से पेश सुश्री ग्रोवर ने बताया याचिका मई 2021 में दूसरी COVID लहर के दरमियान स्थापित की गई थी और बाद में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए यून‌ियन ऑफ इं‌डिया द्वारा परिचालन दिशानिर्देश तैयार किए गए।

फिर भी याचिकाकर्ता को कुछ चिंता है जिस पर सरकार द्वारा उचित ध्यान दिया जा सकता है। यून‌ियन ऑफ इं‌डिया को नोटिस जारी करें। विद्वान सॉलिसिटर जनरल को उस नीति पर अदालत की सहायता करने की आवश्यकता होती है, जिसे तैयार किया गया है और लागू दिशानिर्देश, जिन्हें तैयार किया जाना है।"

याचिका में कहा गया है, "स्वास्थ्य का अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है। महिलाओं और बच्चों, और विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य की रक्षा राज्य का संवैधानिक दायित्व है, क्योंकि यह सीधे तौर पर नवजात की भलाई और स्वास्‍थ्य को प्रभावित करता है। टीकाकरण स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के इस उद्देश्य को आगे बढ़ाएगा क्योंकि यह प्रतिरक्षा को बढ़ावा देगा और इस महामारी के खिलाफ प्रतिरोध प्रदान करेगा और इसलिए किसी भी वर्ग के व्यक्तियों को मनमाने आधार पर बाहर नहीं किया जाना चाहिए।"

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड प्रतीक चड्ढा के माध्यम से दायर याचिका में महिलाओं को टीकाकरण के दुष्प्रभावों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं पर टीकाकरण के प्रभावों के बारे में शिक्षित करने और टीका लेने से पहले सूचित सहमति सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा सामग्री और मानक संचालन प्रोटोकॉल विकसित करने के निर्देश भी मांगे गए थे।

गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पंजीकृत करने के लिए एक रजिस्ट्री बनाने, साथ ही यह देखने के लिए कि टीका गर्भवती महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव तो डालत रहा है, एक सतत निगरानी तंत्र के बनाने की मांग की गई थी।

डीसीपीसीआर द्वारा दायर याचिका में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को संक्रमण से बचाने के लिए अलग-अलग टीकाकरण केंद्र स्थापित करने की भी मांग की गई थी।

याचिका में कहा गया था, "चिकित्सकीय और विशेषज्ञ सलाह के आलोक में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के टीकाकरण के लिए, जैसा कि FOGSI ने दस्तावेजीकृत किया है और परामर्शों में पता चला, प्रतिवादी की 14 जनवरी 2021 की सलाह अब चिकित्सकीय रूप से मान्य या संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को टीकाकरण से बाहर करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है, क्योंकि यह अनुचित वर्गीकरण है और इस प्रकार एक मनमानी और भेदभावपूर्ण सलाह है, जो महिलाओं के एक वर्ग को टीकाकरण से वंचित करके उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन करती है। इससे नवजात बच्चों के जीवन और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को और खतरा होता है..."

इसके अलावा, याचिका में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को खुद को पीडब्लू/एलएम के रूप में वर्गीकृत/पहचान करने और टीकाकरण के लिए स्लॉट प्रदान करते समय प्राथमिकता देने के लिए कोविन पोर्टल पर एक विकल्प बनाने की भी मांग की गई थी।

केस शीर्षक : दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग बनाम यून‌ियन ऑफ इं‌डिया

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