हाईकोर्ट को सीनियर डेजिग्नेशन के लिए ट्रायल कोर्ट और ट्रिब्यूनल में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों पर विचार करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-05-13 13:11 GMT

सीनियर डेजिग्नेशन के लिए अंक आधारित प्रणाली खारिज करने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ट्रायल और जिला कोर्ट तथा विशेष ट्रिब्यूनल में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित करने पर विचार किया जाना चाहिए।

जस्टिस अभय ओक, जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि उनकी भूमिका हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की भूमिका से “किसी भी तरह से कमतर” नहीं है और यह समावेशन डेजिग्नेशन प्रक्रिया में विविधता सुनिश्चित करने का एक अनिवार्य हिस्सा है।

न्यायालय ने कहा,

“जब हम विविधता की बात करते हैं तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाईकोर्ट ऐसा तंत्र विकसित करें, जिसके द्वारा हमारे ट्रायल और जिला कोर्ट में और विशेष ट्रिब्यूनल में प्रैक्टिस करने वाले बार के सदस्यों को डेजिग्नेशन के लिए विचार किया जाए, क्योंकि उनकी भूमिका इस न्यायालय और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की भूमिका से किसी भी तरह से कमतर नहीं है।”

न्यायालय ने सुझाव दिया कि हाईकोर्ट ऐसे वकीलों के आवेदनों पर विचार करते समय प्रिंसिपल जिला जजों या ट्रिब्यूनल के प्रमुखों के विचार ले सकते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में संबंधित जिले के संरक्षक या प्रशासनिक जजों के विचार उपलब्ध होंगे।

न्यायालय ने डेजिग्नेशन प्रक्रिया में अधिक समावेशिता और विविधता की आवश्यकता पर सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों से सहमति व्यक्त की।

न्यायालय ने कहा,

"इंदिरा जयसिंह बिल्कुल सही हैं, जब उन्होंने स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया कि पदनाम कुछ चुनिंदा लोगों का एकाधिकार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि विविधता बहुत महत्वपूर्ण है। बार के सभी सदस्य जो विभिन्न वर्गों से संबंधित हैं, उन्हें डेजिग्नेशन के मामले में समान अवसर मिलना चाहिए। पहली पीढ़ी के वकीलों को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि सीनियर डेजिग्नेशन प्रक्रिया वस्तुनिष्ठ रूप से निष्पक्ष और निर्देशित होनी चाहिए। इस उद्देश्य के लिए हर साल कम से कम एक बार डेजिग्नेशन प्रक्रिया अवश्य आयोजित की जानी चाहिए। पात्रता मानदंड के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि न्यूनतम आय की शर्त नहीं लगाई जानी चाहिए, क्योंकि यह प्रक्रिया को गैर-समावेशी बना देगी।

न्यायालय ने नोट किया कि आय उन कई कारकों में से एक है, जिन पर विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, इसने न्यूनतम दस वर्षों की प्रैक्टिस की आवश्यकता बरकरार रखी, जिसमें कहा गया कि बार में खड़े होने का मूल्यांकन केवल तभी किया जा सकता है, जब किसी वकील ने उचित रूप से लंबे समय तक प्रैक्टिस की हो।

न्यायालय ने जयसिंह की इस दलील को भी दर्ज किया कि सीनियर वकीलों द्वारा अलग-अलग गाउन पहनने की प्रैक्टिस का एडवोकेट एक्ट में कोई आधार नहीं है। इसलिए इसे बंद कर दिया जाना चाहिए।

हालांकि, न्यायालय ने सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन की प्रक्रिया के अपने नियम बनाते समय इस मुद्दे पर निर्णय हाईकोर्ट पर छोड़ दिया।

केस टाइटल- जितेन्द्र @ कल्ला बनाम राज्य (सरकार) एनसीटी दिल्ली और अन्य।

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