'बिना नोटिस के बुलडोजर की कार्रवाई नहीं कर सकते': सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से उचित प्रक्रिया और कानून का पालन करने को कहा

Update: 2022-06-16 07:32 GMT

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही बुलडोजर की कार्रवाई को अंजाम दें।

इसके साथ ही कोर्ट राज्य को यह दिखाने के लिए तीन दिन का समय भी दिया है कि हाल ही में किए गए विध्वंस प्रक्रिया के अनुसार और नगरपालिका कानूनों के अनुपालन में कैसे थे। यह भी कहा कि कार्रवाई केवल कानून के अनुसार होगी।

जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की अवकाश पीठ जमीयत उलमा-ए-हिंद के आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और विध्वंस न किया जाए।

दिल्ली के जहांगीरपुरी में विध्वंस अभियान के खिलाफ इसकी पिछली याचिका में आवेदन दायर किए गए हैं। कोर्ट ने 21 अप्रैल को दंगा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) द्वारा शुरू किए गए विध्वंस अभियान के खिलाफ नोटिस जारी किया था और यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट सीयू सिंह ने प्रस्तुत किया कि इस तथ्य का लाभ उठाते हुए कि उत्तर प्रदेश में यथास्थिति लागू नहीं है। राज्य के अधिकारियों ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ राजनीतिक नेताओं द्वारा की गई कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद कथित रूप से हिंसक घटनाओं में शामिल व्यक्तियों की संपत्तियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई किया हा।

यह आरोप लगाया जाता है कि विध्वंस कानून के शासन और उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा बनाए गए नगरपालिका कानूनों का उल्लंघन है।

जस्टिस बोपन्ना ने शुरुआत में टिप्पणी की,

"बिना नोटिस के विध्वंस नहीं हो सकता, हम इसके प्रति सचेत हैं।"

सिंह ने बताया कि यूपी नगर नियोजन अधिनियम की धारा 27 के अनुसार कम से कम 15 दिन की अवधि का नोटिस जिम्मेदार व्यक्ति या स्वयं के मालिक को दिया जाना है।

यूपी सरकार ने आवेदनों का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में जमीयत उलमा-ए-हिंद का कोई लोकस नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि चूंकि कानूनों के उल्लंघन का आरोप है, इसलिए पीड़ित पक्ष को यह साबित करना होगा कि दंगों में शामिल होने के लिए प्रतिशोध के रूप में नोटिस जारी किए बिना इसके खिलाफ विध्वंस कार्रवाई की गई है।

जस्टिस बोपन्ना ने जवाब दिया,

"हमें इस तथ्य के प्रति सचेत रहना होगा कि जिन लोगों के घर गिराए गए हैं वे अदालत का दरवाजा खटखटाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।"

हालांकि, यूपी सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने भी प्रस्तुत किया,

"तीन उदाहरण हैं। प्रयागराज में, दंगों से बहुत पहले मई में नोटिस जारी किया गया था। 25 मई को, विध्वंस आदेश पारित किया गया था। और संपत्ति मूल्यवान है इसलिए वे ऐसे लोग नहीं हैं जो संपर्क नहीं कर सकते।"

उन्होंने हलफनामे में रिकॉर्ड डालने के लिए तीन दिन का समय मांगा।

जस्टिस बोपन्ना ने मौखिक रूप से कहा,

"इस बीच हम सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें? सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है। हमें इस बीच सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।"

आवेदक ने उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा अधिनियमित कानून के शासन और नगरपालिका कानूनों के उल्लंघन में कथित रूप से तोड़े गए घरों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के निर्देश मांगे।

एडवोकेट कबीर दीक्षित और एडवोकेट सरीम नावेद के माध्यम से दायर आवेदन में उत्तर प्रदेश राज्य को निर्देश देने की मांग की गई है कि अतिरिक्त कानूनी दंडात्मक उपाय के रूप में किसी भी आपराधिक कार्यवाही में किसी भी आरोपी की आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति के खिलाफ कानपुर जिले में कोई प्रारंभिक कार्रवाई ना की जाए।

आवेदन में कहा गया है कि कुछ दिनों पहले दो राजनीतिक नेताओं द्वारा कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी जिससे देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। दोनों राजनीतिक नेताओं की टिप्पणी के बाद, विरोध में कानपुर जिले में लोगों के एक समूह द्वारा बंद का आह्वान किया गया था।

आगे कहा गया है कि विरोध के दिन, हिंदू और मुस्लिम धार्मिक समुदाय के बीच हाथापाई हुई और दोनों समुदायों के बीच पथराव हुआ।

आवेदक ने आरोप लगाया है कि कानपुर में हुई हिंसा के बाद, कई अधिकारियों, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, उन्होंने मीडिया में कहा है कि संदिग्धों/आरोपी की संपत्तियों को जब्त और ध्वस्त कर दिया जाएगा। उन्होंने मीडिया में कहा था कि आरोपियों के मकानों को बुलडोजर से गिराया जाएगा।

सिंह ने प्रस्तुत किया,

"यह भयावह स्थिति है। हमने इससे पहले इस देश में नहीं देखा है, आपातकाल के दौरान नहीं, स्वतंत्रता पूर्व भारत में नहीं। न केवल व्यक्ति के घर, उनके माता-पिता के घर आदि को ध्वस्त किया जा रहा है। इसे गणतंत्र और कानून के शासन वाला देश में नहीं माना जा सकता है।"

खंडपीठ ने पूछा कि क्या ध्वस्त की गई संपत्तियों के खिलाफ कोई पूर्व कार्यवाही की गई थी।

सिंह ने जवाब दिया,

"ये अवैध निर्माण हैं। बुलडोजर लाकर घरों को ध्वस्त किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उच्च पदाधिकारियों ने कहा है कि जो लोग कानून अपने हाथ में लेंगे, उनके खिलाफ बुलडोजर लगाया जाएगा।"

अब मामले की सुनवाई 21 जून मंगलवार को होगी।

केस टाइटल: जमीयत उलमा-ए-हिंद एंड अन्य बनाम भारत सरकार एंड अन्य | डब्ल्यूपी (सीआरएल) 162/2022

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