[संपत्ति का हस्तांतरण अधिनियम] धारा 53ए के तहत संरक्षण उस व्यक्ति को मिलता है जिसके कब्जे से सम्पत्ति हो और जिसके पक्ष में लीज समझौता हो : सुप्रीम कोर्ट
[Transfer Of Property Act] Protection U/s 53A Available To Person Put In Possession And Has Agreement Of Lease In His Favour: SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सम्पत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53ए के तहत संरक्षण उस व्यक्ति को प्राप्त होता है जिसके पक्ष में लीज समझौता हो, भले ही लीज का निष्पादन और पंजीकरण नहीं हुआ हो।
इस मामले में, सरकार ने एक जमीन अधिग्रहीत की थी जो दिल्ली स्थित गांव सभा लुहार हेरी की थी। मेसर्स के. सी. शर्मा एंड कंपनी ने इस आधार पर मुआवजे का दावा किया था कि गांव सभा ने उसे यह जमीन पट्टे पर दी थी। उन्होंने दावा किया कि जमीन खेती के लायक नहीं थी, इसलिए गांव सभा ने शोरा (झाड़-झंकार) को हटाने के लिए उसे यह जमीन पट्टे पर दी थी, ताकि इसे उपज के लायक बनाया जा सके। सिविल कोर्ट ने इस मामले में व्यवस्था दी कि के. सी. शर्मा एंड कंपनी 87 प्रतिशत तक मुआवजे की हकदार है और शेष 13 प्रतिशत मुआवजा गांव सभा को दी जानी चाहिए। उसके बाद सरकार ने एक मुकदमा दायर करके यह स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया था कि यह फैसला और आदेश धोखाधड़ी के जरिये हासिल किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने इस मुकदमे में निर्णय सुना दिया, जिसे हाईकोर्ट ने बाद में खारिज कर दिया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से इत्तेफाक रखते हुए कहा :
"यह स्पष्ट तौर पर स्थापित तथ्य है कि धोखाधड़ी के आरोप को कानूनी तर्क की कसौटी के रूप में प्रस्तुत करना होता है और उसे साबित भी। इतना ही नहीं, किसी सक्षम कोर्ट द्वारा सुनाये गये किसी डिक्री (आदेश) और निर्णय पर जब सवाल खड़े किये जाते हैं तो जरूरी विवरणों के साथ कथित धोखाधड़ी की बात करना और उसे अकाट्य साक्ष्य के जरिये साबित करना जरूरी होता है। रिकॉर्ड के विरुद्ध कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। जैसा कि रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य इस बात का खुलासा करते हैं कि कथित धोखाधड़ी की बात जरूरी तथ्यों के अभाव में स्थापित नहीं हो पायी है, इसलिए हमारा मत है कि हाईकोर्ट के तार्किक फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता।"
अपीलकर्ता की दूसरी दलील थी कि ग्राम पंचायत की ओर से प्रतिवादियों के पक्ष में लीज डीड निष्पादित नहीं किया गया था, ऐसे में इसे केवल 'शोरा' हटाने के लिए 'लाइसेंस' के रूप में देखा जा सकता है, लीज के रूप में नहीं।
बेंच ने इस संदर्भ में सम्पत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 53ए का जिक्र किया, जिसमें 'पार्ट परफॉरमेंस' (आंशिक अदायगी) का जिक्र किया गया है। इस प्रावधान में कहा गया है, "जहां कोई व्यक्ति खुद अपने हस्ताक्षर से या उसकी ओर से किसी और द्वारा हस्ताक्षरित करार के तहत अपनी अचल सम्पत्ति को हस्तांतरित करने के लिए करार करता है, जिससे हस्तांतरण सुनिश्चित होता है और हस्तांतरण हासिल करने वाला व्यक्ति करार के पार्ट परफॉरमेंस के आधार पर उस सम्पत्ति या उसके किसी हिस्से पर कब्जा लेता है, कब्जा जारी रखता है और करार के तहत कोई गतिविधि करता है तथा कब्जा लेने वाला व्यक्ति करार के तहत अपनी भूमिका निभाने को इच्छुक है तो बेशक वर्णित तरीके से कुछ समय तक हस्तांतरण पूरा हुआ हो या नहीं, हस्तांतरित करने वाला या उसकी ओर से कोई व्यक्ति उस व्यक्ति के कब्जे से सम्पत्ति वापस नहीं ले सकता।"
बेंच ने अपील खारिज करते हुए कहा,
"इस अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उस व्यक्ति को सम्पत्ति हस्तांतरण कानून 1882 की धारा 53ए के तहत संरक्षण मौजूद है, जिसके पक्ष में लीज का समझौता हो, भले ही वह लीज निष्पादित और पंजीकृत नहीं हुआ हो। इसी अदालत ने हमजाबी मामले में अपने फैसले में कहा है कि सम्पत्ति हस्तांतरण कानून, 1882 की धारा 53ए उस व्यक्ति के कब्जे को संरक्षित रखता है, जिसने बिक्री करार पर कदम आगे बढ़ाया हो, लेकिन उसके पक्ष में वैध सेल डीड निष्पादित या पंजीकृत नहीं हुआ हो। जैसा कि यह स्पष्ट है कि प्रतिवादियों का जमीन पर कब्जा था और पंचायत ने लीज मंजूर करने के प्रस्ताव पर कार्य किया था, ऐसे में कानून प्रतिवादियों के पक्ष में जाता है।"
केस का विवरण
केस का नं. : सिविल सिविल अपील नं. 9049-9053/2011
केस का नाम : भारत सरकार बनाम मेसर्स के सी शर्मा एवं अन्य
कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह
वकील : एएसजी ऐश्वर्या भाटी, सीनियर एडवोकेट जयंत भूषण