TikTok बैन: सुप्रीम कोर्ट ने 24 अप्रैल को अतंरिम आदेश पर फैसला लेने कहा, फैसला नहीं हुआ तो बैन हटेगा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मद्रास उच्च न्यायालय को कहा है कि वो TikTok मोबाइल एप के एकपक्षीय बैन पर आगामी 24 अप्रैल को विचार करे। पीठ ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर उस दिन इस पर विचार नहीं हुआ तो एप पर लगा बैन हट जाएगा।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने ये आदेश बायटडांस (इंडिया) टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों पर दिया। सिंघवी ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय ने अभी तक बैन के अंतरिम आदेश पर विचार नहीं किया है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार कर फैसला लेने को कहा था।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल को मद्रास उच्च न्यायालय को कहा था कि वो TikTok मोबाइल एप के एकपक्षीय बैन पर आपत्तियों पर 16 अप्रैल को विचार करे। इसके बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए इस मामले की सुनवाई 23 अप्रैल को तय की थी।
आपको बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय के टिकटोक मोबाइल एप के डाउनलोड पर रोक लगाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
बायटडांस (इंडिया) टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड जो इस मोबाइल एप्लिकेशन का मालिक है, ने मदुरै पीठ के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है जिसमें सरकार को एप पर बैन लगाने को कहा गया था।
TikTok, जिसे पहले संगीत (Musicall.y) के मंच के रूप में जाना जाता था वो लघु रूप के मोबाइल वीडियो के लिए एक मंच है। यह हर किसी को अपने स्मार्टफ़ोन से सीधे वीडियो निर्माता बनने का अधिकार देता है और उपयोगकर्ताओं को वीडियो के माध्यम से अपने जुनून और रचनात्मक अभिव्यक्ति को साझा करने के लिए प्रोत्साहित करके एक समुदाय के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है।
पिछले साल जुलाई में इंडोनेशिया ने "अश्लील साहित्य, अनुचित सामग्री और ईश निंदा" के आरोपों के चलते इस एप पर प्रतिबंध लगा दिया था। बांग्लादेश ने भी कमोबेश उन्हीं कारणों से एप पर रोक लगा दी।
एस. मुथुकुमार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की याचिका पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति एन. किरुबाकरन और न्यायमूर्ति एस. एस. सुंदर की पीठ ने अधिकारियों से TikTok मोबाइल एप के डाउनलोड पर रोक लगाने का निर्देश दिया था।
पीठ ने मीडिया को TikTok मोबाइल एप का उपयोग करके बनाए गए वीडियो के प्रसारण से भी रोक दिया था। पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार चाहे तो वह बच्चों को साइबर/ऑनलाइन शिकार बनने से रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अधिनियमित बाल ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम जैसा कानून ला सकती है।
उच्च न्यायालय ने कहा, "खतरनाक पहलू यह है कि Tik Tok एप में भाषा और पोर्नोग्राफ़ी सहित अनुचित सामग्री पोस्ट की जा रही हैं। बच्चों के सीधे अजनबियों से संपर्क करने और उन्हें लुभाने की संभावना है। इस तरह के मोबाइल एप में शामिल खतरों को समझे बिना, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे बच्चे इन एप के साथ परीक्षण कर रहे हैं।"