सुप्रीम कोर्ट ने यतिन ओझा के आचरण की निगरानी के लिए अंतरिम उपाय के रूप में उनकी सीनियर गाउन बहाल करने की संभावना पर विचार करने को कहा

Update: 2021-03-03 04:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट से आग्रह किया कि उच्च न्यायालय के खुलने के बाद अधिवक्ता यतिन ओझा के सीनियर गाउन को बहाल करने की  पर विचार किया जाए, ताकि इस व्यवस्था को स्थायी बनाने पर फैसला किया जा सके।

गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सी. ए. सुंदरम ने कहा कि

"क्या उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री के खिलाफ एक बयान को अवमानना माना जा सकता है? आलोचना की सीमा क्या हो सकती है? बेशक असंयमी भाषा के लिए कोई बहाना नहीं है और मैं मानता हूं कि उन्हें माफी मांगनी चाहिए। लेकिन अगर रजिस्ट्री की आलोचना को अवमानना के रूप में माना जाता है तो यह एक एसोसिएशन के रूप में हमारे लिए बहुत चिंता का कारण है। यह हमारी खुद की उपेक्षा करता है।"

न्यायमूर्ति एस के कौल ने कहा कि,

"कोई भी नहीं कहता है कि रजिस्ट्री की आलोचना नहीं की जा सकती है। सब कुछ भाषा के बारे में है। बहुत सारी बातें अच्छे तरीके से कही जा सकती हैं।"

एडवोकेट सुंदरम ने ओझा को बिना शर्त माफी स्वीकार करने और मामले को खत्म करने के लिए एसोसिएशन से अनुरोध किया।

ओझा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एएम सिंघवी ने शुरू में ही स्पष्ट कर दिया कि वह इस मामले को एक अहंकारी, तकनीकी तरीके या संकीर्ण अर्थ में नहीं ले रहे हैं।

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने कहा कि,

"यौर लॉर्डशिप, मेरे खिलाफ रूल बुक में दिए गए हर नियम को अलग रखने का अधिकार रखते हैं। पहले दिन से, जब मैंने कुछ लिखा और कुछ प्राप्त किया, यहां तक कि यौर लॉर्डशिप  के बिना, यहां तक कि बिना डरे, मैंने बिना शर्त माफी मांगी है। यह एक अलग बात है। कोई भी मेरे माफी को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं था। मैंने एक सबक सीखा है। इस मामले को और आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं है। भले ही यौर लॉर्ड्सशिप मुझे माफ कर दे, इन पिछले सात महीनों में, मैंने अपने जीवन का सबक सीखा है।"

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, "एक पूर्ण अदालत द्वारा एक सर्वसम्मत निर्णय पर पहुंचना बहुत मुश्किल काम है। यदि आप अपने आचरण से, इस निर्णय को पूर्ण अदालत द्वारा आमंत्रित करते हैं, तो कुछ किया जाना चाहिए।"

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने कहा कि,

"जैसा कि यह कहा जाता है कि 'थप्पड़ मारो। सॉरी बोलो। आगे बढ़ो। फिर से थप्पड़ मारो' जब तक कि कोई मूर्ख हो। सात महीने से गाउन से दूर रहा हूं, ऐसी गलती दोबारा नहीं हो सकती है। , यह संभव हो सकता है- जैसे हम कहते हैं कि 'नहीं कभी नहीं' हम खत्म नहीं सकते जो पहले से ही लिखा गया है। केवल एक बिना शर्त माफी से ही खत्म किया जा सकता है और यह माफी बिना किसी ठेस के है। जहां उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, वहां कागज फाड़ दिए।''

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने कहा कि,

"लेकिन तीन बिंदु हैं - यह माफी तत्काल थी, दहलीज पर, यह बिना शर्त और अनियंत्रित थी। हम जानते हैं कि माफी कैसे कृत्रिम हो सकती है। दूसरा, वो जानते हैं कि  हम सभी उनकी मदद कर रहे हैं इसलिए वह ऐसा कृत्य फिर कभी नहीं दोहराएगा। तीसरा, संदर्भ की सराहना की जानी चाहिए। स्पष्ट रूप से कोई औचित्य नहीं है। वह गंभीर दबाव में था और उसने इस्तीफा दे दिया।"

न्यायमूर्ति कौल ने टिप्पणी की कि,

"अगर यह पहला एपिसोड होता, तो हम कह सकते थे कि हर कोई गलती कर सकता है। लेकिन ऐसे उदाहरण बार-बार हुए हैं। हम जानते हैं कि हम सभी गलतियां करते हैं,  लेकिन वह बार के सदस्य हैं और उनके इस तरह से कृत्य से वे अपने सहकर्मी को  प्रभावित कर रहे हैं। अन्य कनिष्ठ न्यायाधीश वरिष्ठ न्यायाधीशों से सीखते हैं। इसी तरह, बार के युवा सदस्य वरिष्ठ वकील से सीखते हैं। "

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने कहा कि,

" यौर लॉर्डशिप को पता है कि इस तरह की चीजों का ख्याल कैसे रखा जाता है। हाईकोर्ट ने सात महीने तक इस बात का ध्यान रखा।  यौर लॉर्डशिप , अपने कई ऐसे अवमानना के मामलों को देखा है, लेकिन कभी किसी मामले में गाउन का अनिश्चितकालीन निलंबन नहीं रहा है।

जब जस्टिस कौल ने बताया कि यह प्रस्तुतिकरण सही नहीं हो सकता है, तो डॉ. सिंघवी ने स्पष्ट किया कि इस तरह की कार्रवाई शायद ही कभी की जाती है, और एक व्यक्ति को आम तौर पर एक महीने, तीन महीने, पांच महीने" की सजा दी जाती है।

जस्टिस कौल ने टिप्पणी की कि,

"लेकिन यहा मामला बहुत गंभीर है।"

एडवोकेट डॉ. सिंघवी आग्रह करते हुए कहा कि,

" यौर लॉर्डशिप, कृपया इस तरह के मामलों के इतिहास पर गौर करें। जो कानून में अधिकार क्षेत्र के लाभकारी अभ्यास को आकर्षित करता है। यदि लॉर्डशिप उन्हें फिर से जीवन देने का निर्णय करता है, तो लॉर्डशिप भी जानते हैं कि उन्हें लिस पर कैसे रखना है।"

न्यायमूर्ति कौल ने पूछा कि,

"अगर हम इस रास्ते से पार करते हैं, तो हमें यहां से कैसे जाना चाहिए? हमें यह कैसे सुनिश्चित करना चाहिए कि यह फिर से न हो?",

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने सुझाव दिया कि,

"अंत में, ये केवल शब्द हैं। यौर लॉर्डशिप, चेतावनी दे सकते हैं, लॉर्डशिप के पास लिस है, और लॉर्डशिप द्वारा ही अनुमति प्राप्त हो सकती है। यदि लॉर्डशिप उसे पिछले सात महीनों के प्रकाश में, उसका गाउन वापस करने देता है, तो लॉर्डशिप कह सकते हैं कि यदि कुछ भी समान रूप से होता है, तो ऐसे परिणाम स्वत: ही होंगे। यह सबसे अच्छा है, मैं कह सकता हूं।"

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि,

"मैं भी दर्शनशास्त्र को लटकाने में विश्वास नहीं रखता हूं। लेकिन उचित 'अंकुश' क्या होगा?"

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने जोर देते हुए कहा कि,

"इन तीन चीजों (चेतावनी, लिस और अनुमति) के साथ एक कड़े शब्दों में आदेश दिया जा सकता है। लॉर्डशिप लिस को नियंत्रित कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई भी ऐसा मूर्ख होगा जो इसके बाद फिर से गलती को दोहराएगा। यदि ऐसा कोई मूर्ख है, हममें से कोई भी उसका समर्थन नहीं करेगा। वह कोर्ट के समक्ष है, जैसा कि उसने कहा है। हम उसकी काउंसिल भी करेंगे। कोर्ट द्वारा उसे हमेशा के लिए वंचित नहीं करना चाहिए, ऐसा होने से वह गुजरात में बदनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो जाएगा। उसके जीवन में दोहराव होने की स्थिति में स्वत: परिणाम हो सकते हैं। यहां लॉर्डशिप की उपस्थिति में यह सुरक्षित हो जाएगी। यह भारत का शीर्ष न्यायालय है! वह और कहां जाएगा? "

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि अदालत को उच्च न्यायालय की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, एक संतुलन कार्य करने की आवश्यकता है।

ओझा के लिए वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने भी तर्क दिया कि,

"वरिष्ठ गाउन को दूर करना है एक मौत के समान है। उसका पेशेवर कैरियर खत्म हो जाएगा। उसका गाउन जुलाई में ही ले लिया गया था और वह शायद ही पिछले नौ महीनों में अदालत में गया हो। वह ऐसा फिर से नहीं करेगा। तथाकथित पिछले कार्य भी इस प्रकृति के नहीं हैं। उसने पर्याप्त अपमानित किया गया है, मुझे नहीं पता कि किस शब्द का उपयोग करना है। अवमानना अदालत ने उसे उसे दोषी ठहराया। इसके सात ही जुर्माना भरने और एक दिन के कारावास की सजा सुनाई। न्यायाधीशों की भावनाओं का भी सम्मान करने की आवश्यकता है। संतुलन बनाते हुए निष्पादित करते समय लॉर्डशिप को देखना होगा कि नौ महीने के लिए गाउन को हटाना पर्याप्त सजा है।"

एडवोकेट दातार ने आगे कहा कि,

"इसके अलावा, उसने जो किया था वह उनकी व्यक्तिगत क्षमता में भी नहीं था, लेकिन वह बार का प्रतिनिधि था। लोगों के पास नौकरी नहीं थी, अधिवक्ता स्विगी डिलीवरी बॉय के रूप में काम कर रहे थे। उसने केवल यह कहा था कि रजिस्ट्री उनके मामलों को सूचीबद्ध नहीं कर रही है।" यह एक ऐसा मुद्दा है जहां जांच अभी भी नहीं हुई है।"

जस्टिस कौल ने कहा कि,

जस्टिस कौल ने कहा, "हर कोई मुश्किल में था- जज मुश्किल में थे, वकील मुश्किल में थे। आप उंगलियां नहीं उठा सकते। यह उचित नहीं है। वह असामान्य, अप्रत्याशित समय था।"

एडवोकेट दातार ने कहा कि,

"हां, उनके लिए यह कहना मूर्खतापूर्ण था कि उच्च न्यायालय इस समय की गर्मी में 'जुए का अड्डा' के रूप में काम कर रहा है। लेकिन हमें इस बात में अंतर करना होगा कि क्या यह एक व्यक्तिगत शिकायत के लिए एक व्यक्तिगत वकील द्वारा टिप्पणी थी। इस मामले में, अदालत को ध्यान देना चाहिए। हालांकि इसके लिए कोई बहाना नहीं है, हमें यह देखना चाहिए कि यह बयान बार के अच्छे के साथ किया गया था।

जस्टिस कौल ने कहा कि,

"हम भी बार में हैं। आप सभी बार के वरिष्ठ सदस्य हैं। आप जानते हैं कि बेलगाम बातचीत क्या कर सकता है। कभी-कभी न्यायाधीशों द्वारा भी, कहीं-कहीं वकीलों द्वारा भी कई तरह के बयान दिए जाते हैं। लेकिन ये बातें हमेशा सहज नहीं हो सकती हैं।"

एडवोकेट सुंदरम ने सुझाव दिया कि,

"वह अवमानना में पाया गया था और उसे दंडित किया गया था। एक सजा ऐसे गलतियों के नियंत्रण के लिए जरूरी था। यदि लॉर्डशिप शर्तों के साथ सजा को हटाते हैं, यदि लॉर्डशिप कहते हैं कि सजा पहले से ही समाप्त हो जाएगी, तो इसमें शामिल भाग को जोड़ सकता है पुनर्जीवित नहीं होना चाहिए, यह एक रास्ता हो सकता है।"

न्यायमूर्ति कौल ने सवाल किया कि,

"अवमानना का कौन सा हिस्सा उसे गाउन की बहाली के लिए नहीं हटाएगा? निर्णय का कौन सा आधिकारिक हिस्सा गाउन की बहाली के रास्ते में नहीं आएगा? मान लीजिए कि हम उसे कारावास की सजा नहीं देते हैं और वह जुर्माना अदा करता है? , क्या यह गाउन की बहाली के रास्ते में आएगा? " अधिवक्ताओं ने नकारात्मक में उत्तर दिया।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि,

"मैं गाउन के महत्व पर बात नहीं कर रहा हूं। मुझे पता कि एक वकील के लिए, यह उसका गाउन उतारना एक मौत का वारंट है।"

एडवोकेट डॉ. सिंघवी ने कहा कि,

" यौर लॉर्डशिप, आप जुर्माना लगा सकते हैं। लेकिन जन्म नौ महीने की पूरी गर्भावस्था के बाद होता है। यह मामला 7.5 महीने तक चला है, मैं उस पर दातार को ठीक करना चाहता हूं। योर लॉर्डशिप, आप सभी को सही संदेश भेज सकते हैं यदि उसे उच्च न्यायालय, गाउन पर नौ महीने तक जारी रहने के लिए कहा जाता है। मैं उसे (ओझा) पूछे बिना भी यह कह रहा हूं। यह भविष्य की निगरानी के उद्देश्य को पूरा करेगा।

एडवोकेट दातार ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि, "जून में गर्मियों की छुट्टियों के बाद अदालत फिर से शुरू होती है और मैं एक वरिष्ठ के रूप में फिर से शुरू करुंगा।"

जब बेंच ने हाईकोर्ट के वकील एडवोकेट निखिल गोयल से पूछताछ की, तो इस सुझाव पर एडवोकेट गोयल ने शुरुआत में कहा कि "ये ऐसी चीजें नहीं हैं, जहां अदालत को अवधि सीमित करने में हस्तक्षेप करना चाहिए" और इस मामले को पूरी तरह से सुना जाए।"

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि, उच्च न्यायालय का कहना है कि यह आजीवन प्रतिबंध है। वह इस समय को सीमित करके अदालत की गरिमा बनाए रखने का प्रयास करता है। क्या गर्मियों के बाद अंतरिम उपाय के रूप में गाउन को बहाल किया जा सकता है? हम देखेंगे कि वह कैसे व्यवहार करता है। हम इस मामले को लंबित रखते हैं।"

एडवोकेट गोयल ने तर्क दिया कि,

"मुझे एक सहकर्मी के खिलाफ प्रस्तुत होना पड़ रहा है, जिसे मैं भी अच्छी तरह से जानता हूं। बार के एक युवा सदस्य के रूप में, न्यायमूर्ति मिश्रा के समक्ष 2015 की कार्यवाही में, मैंने डॉ सिंघवी को इन शब्दों का इस्तेमाल करते हुए सुना था। उस समय, इसने उच्च नायालय को '7 रेसकोर्स रोड ' कहा था और अब उन्होंने उच्च न्यायालय को' जुए का अड्डा 'कहा है। उसने कहा है कि न्यायाधीश असक्षम हैं। वे इस मुद्दे का इतना तुच्छ नहीं हो सकते। वह यह नहीं कह सकते कि भाषण में ऐसा किया गया था- और इस तरह के हालात, अभूतपूर्व समय में, इस क्षण में और मेरी माफी को स्वीकार किया जाना चाहिए।"

तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर को जस्टिस एमआर शाह (तत्कालीन गुजरात उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश, अब एक एससी न्यायाधीश) और जस्टिस केएस झवेरी को '11, अकबर रोड और 7, रेसकोर्स रोड 'के प्रति निष्ठा के कारण ओझा के पत्रों की सराहना की गई थी। 2016 में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा ओझा के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की गई। अपील में, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनकी अवमानना को स्वीकार किया, उन्हें अवमानना से मुक्त किया। डॉ. सिंघवी ने शीर्ष अदालत के समक्ष ओझा का प्रतिनिधित्व किया था।

एडवोकेट गोयल ने पूछा कि,

"भले ही अदालत के कारावास का निर्णय दूर हो गया हो, अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24 ए के तहत बार लागू होगा। यदि अदालत ने उसे अवमानना का दोषी पाया है, तो वह दो साल तक प्रैक्टिस नहीं कर सकता है। ? ऐसी परिस्थितियों में, क्या उच्च न्यायालय को उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में सम्मानित करना चाहिए?

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि, "नहीं, उसे सम्मान नहीं। क्या यह व्यवस्था सीमित समय के लिए गाउन की बहाली का कोई प्रावधान है या नहीं यह देखने के लिए कि क्या इस व्यवस्था को स्थायी बनाया जा सकता है?"

एडवोकेट गोयल ने कहा कि,

"गाउन का एक परिवीक्षाधीन या अस्थायी पुनर्स्थापन नहीं हो सकता है। यह इस विशेषाधिकार की अवधारणा नहीं है (वरिष्ठता का) जो कि लॉर्डशिप प्रदान करता है। इंदिरा जयसिंह मामले (वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पदनाम पर प्रोटोकॉल पर) में इस अवधारणा का पता लगाया गया है। यह कोर्स स्वीकार्य नहीं है। नियमानुसार वरिष्ठता के लिए पुन: आवेदन करने के लिए उसे उच्च न्यायालय में भेजें।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि,

"इसके बारे में सोचो। हम आज कुछ भी नहीं कर रहे हैं।"

जस्टिस कौल ने प्रतिबिंबित किया कि, "हम एक व्यक्ति को रिडीम करने के लिए प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट के तहत प्रोबेशन देते हैं। मैं मानता हूं कि यह इस हीट ऑफ दी मोमेट में एक भी एपिसोड नहीं है। यहां कई एपिसोड, कई लेखन थे। लेकिन हर कोई सुधार कर सकता है।"

एडवोकेट गोयल ने कहा कि, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह बहुत ही दुखद है। लेकिन निवारण फिर से हाईकोर्ट दावा होना चाहिए। अंतरिम आदेश के माध्यम से, गाउन उसको फिर से नहीं दिया जा सकता है।"

जस्टिस कौल ने कहा कि, "विशेषाधिकार आवेदन में एक समान नहीं है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 हमें कुछ चीजों को बनाए रखने के लिए कुछ अतिरिक्त देता है। उच्च न्यायालय ने अपनी समझ कुछ ऐसा किया, जिसका हम सम्मान करना चाहते हैं। हमें चीजों को संतुलित करना होगा"

एडवोकेट गोयल ने कहा कि, " यौर लॉर्डशिप, आपको बताने वाले बार के पांच बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं जो पहले दिन से माफी मांग रहे हैं। यह लॉर्डशिप को प्रस्तुत करने पर विचार करने के लिए बाध्य करता है। लेकिन मैं भी 18 साल से प्रैक्टिस कर रहा हूं।"

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, "हम एक तरफ या दूसरे पक्ष में कई प्रतिष्ठित वकील के लिए उपयोग किए जाते हैं। इससे हम जो करते हैं वह प्रभावित नहीं होता है।"

एडवोकेट गोयल कहते हैं कि,

"मैं इसे उस तरीके से नहीं कह रहा हूं। लेकिन जिस मुद्दे के संबंध में अनुरोध किया गया है वह छोटा नहीं है।"

न्यायमूर्ति कौल ने दोहराया कि, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह छोटा है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह छोटा नहीं है। लेकिन किसी के लिए प्रतिदान (रिडेमशन) संभव है।"

जस्टिस कौल ने कहा कि, "हम सिर्फ आपको पास इस विचार को छोड़ना चाहते हैं। इसके बारे में सोचें। क्या यह संभव होगा? इस पर विचार करें, यदि 'एक्स' समय की अवधि के बाद, उन्हें एक अंतरिम उपाय के रूप में वरिष्ठ वकील के रूप में प्रैक्टिस करने की अनुमति है? इसके बारे में चर्चा करें।"

एडवोकेट दातार ने ध्यान दिलाया कि यदि गोयल इस मामले को सुनना चाहते हैं, तो वे इसके विपरीत नहीं हैं। न्यायमूर्ति कौल ने टिप्पणी की, "आपको वहां कोई समाधान नहीं मिलेगा"।

एडवोकेट दातार ने स्पष्ट किया कि वे मामले की सुनवाई को पूर्ण अपील के रूप में नहीं पूछ रहे हैं, और डॉ. सिंघवी ने यह भी कहा कि गोयल को निर्णय से पहले भविष्य में लिस देना चाहिए। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, "वह व्यक्ति चाहता है कि जो कुछ भी अतीत में हुआ है, उसके लिए लिस दिया जाए।"

इस बिंदु पर, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने बाइबल को उद्धृत करते हुए कहा कि 'गलती करना मानव स्वभाव है, क्षमा करना देवता का गुण है'। "उसे दंडित किया गया और ठीक ही किया गया। लेकिन वह बहुत कुछ कर चुका है। पर्याप्त सजा हो गई है। मैं उसका बचाव करने की कोशिश नहीं कर रहा हूं, लेकिन अपने अतीत, परिवार से जो वह आता है, उसे देखते हुए कि उसका पिता हमारे उच्च न्यायालय के वकील सबसे बड़ा था। वह सबसे अधिक राजसी, सबसे ज्ञानी वकील थे, उन्होंने इस तरह के सम्मान की कमान संभाली, वह नागरिक कानून पर अद्वितीय थे। मैंने युवा ओझा को बड़े होते देखा है। उनके दिल में संस्था का भला है। लेकिन उन्होंने इसे ठीक से व्यक्त नहीं किया। कृपया इस मामले को किसी भी तरीके से अंतिम रूप दें, जो कि आपको सही लगे। योर लॉर्डशिप, यह इस तरह के सफल करियर के बारे में है, योर  लॉर्डशिप, आप बहुत लंबे समय से बेंच पर है। एक बड़े दिल वाले दृष्टिकोण को अपनाएं और इस मामले को उचित तरीके से समाप्त करें। कृपया उसे एक आखिरी मौका दें।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि,

"यही प्रयास है। हर चीज के लिए रिडेमशन (प्रतिदान) की जरूरत होती है। मेरी चिंता केवल स्टेक्स है। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। इसमें आपका उच्च न्यायालय भी मदद नहीं कर सकता है। आपका एक उचित सुझाव है। हम इस पर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने गोयल को भी सुझाव दिए हैं। हम इस पर भी चर्चा करेंगे। "वकील की गरिमा महत्वपूर्ण है। संस्था भी महत्वपूर्ण है। एक दूसरे की मदद करता है। हमारी राय अलग हो सकती है, लेकिन राय का अंतर कोई समस्या नहीं है।"

न्यायमूर्ति कौल ने मामले को 10 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

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