सुप्रीम कोर्ट ने जाली दस्तावेजों के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों की बर्खास्तगी को मंजूरी दी
अपने पिता की नौकरी के संबंध में जाली और मनगढ़ंत दस्तावेजों के आधार पर रेलवे द्वारा अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों को बर्खास्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (1 अगस्त) को संदिग्ध दस्तावेजों के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति करने में रेलवे की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई, जिन्हें बाद में जाली, मनगढ़ंत और फर्जी पाया गया।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा,
"दस्तावेजों की उचित जांच और सत्यापन के बिना किसी को सरकारी नौकरी पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है? रेलवे देश में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है और फिर भी इस तरह की घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए।"
वर्तमान मामले में प्रतिवादियों को उनके पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति दी गई। न्यायाधिकरण ने उनकी नियुक्तियों को रद्द कर दिया, क्योंकि प्रतिवादियों ने अपनी नियुक्ति का समर्थन करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए। न्यायाधिकरण के फैसले को अपीलीय न्यायाधिकरण ने बरकरार रखा।
हालांकि, हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों के पक्ष में फैसला सुनाया और अपीलीय न्यायाधिकरण का फैसला खारिज कर दिया।
इसके बाद अपीलकर्ता/रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस संजय करोल ने कहा,
“रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी-कर्मचारियों ने ओ.ए. के हिस्से के रूप में कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया। जब न्यायाधिकरण के समक्ष किया गया दावा स्वयं स्पष्ट, असंदिग्ध और प्रासंगिक सामग्री द्वारा समर्थित नहीं है तो इसे खारिज किया जाना आश्चर्य की बात नहीं है। जिस आधार पर राहत का दावा किया गया, वह ही संदिग्ध पाया जाता है तो यदि राहत प्रदान की जाती है, तो वह अनुचित होने के दोष से ग्रस्त है।”
न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों को धोखाधड़ी करके हासिल की गई स्थिति बरकरार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने कहा,
“वर्तमान मामले में प्रतिवादी-कर्मचारियों ने धोखाधड़ी करके अपना पद प्राप्त किया, इसलिए उन्हें संविधान के तहत सुरक्षा के उद्देश्य से पद पर नहीं माना जाएगा।”
न्यायालय ने (2013) 9 एससीसी 363 में दर्ज देवेंद्र कुमार बनाम उत्तरांचल राज्य के मामले का संदर्भ लिया, जिसमें यह देखा गया,
"गलत काम करने वाला व्यक्ति अपने गलत काम का फायदा नहीं उठा सकता और सक्षम न्यायालय द्वारा विधिसम्मत सुनवाई को विफल करने के लिए किसी कानून के प्रतिबंध का हवाला नहीं दे सकता। ऐसे मामले में कानूनी कहावत लागू होती है कि कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को यह कहने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उनके अपराध की जांच, सुनवाई या जांच नहीं की जा सकती।"
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
"हाईकोर्ट द्वारा पारित विवादित निर्णय, उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, अलग रखा जाता है और न्यायाधिकरण द्वारा प्रतिवादी-कर्मचारियों के मूल आवेदनों को खारिज करने के आदेश को बहाल किया जाता है। प्रतिवादी कर्मचारियों को अपीलकर्ता-नियोक्ता द्वारा सेवा से बर्खास्त करना सही था।"
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई और न्यायाधिकरण के आदेश को उसके प्रभाव में बहाल किया गया।
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। आदि। बनाम प्रहलाद गुहा आदि, सिविल अपील संख्या 4434-4437 वर्ष 2014