सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा, दलीलों की गैर-मौजूदगी से दीवानी मामले में पार्टी को मदद नहीं मिल सकती, भले ही साक्ष्य कितने ही क्यों न हों?
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि दीवानी मामलों में दलीलें यदि मौजूद न हों, तो पार्टी को कोई मदद नहीं मिल सकती, भले ही साक्ष्य कितने क्यों न हो?
इस मामले में, वादी ने अपने पिता द्वारा निष्पादित किये गये उस एडॉप्शन डीड पर सवाल खड़े किये थे, जो रिस्पोंडेट के पक्ष में किया गया था।
यह दलील दी गयी थी कि एडॉप्शन आवश्यक औपचारिकताओँ को पूरी करके नहीं किया गया था और एडॉप्शन का दावा असत्य एवं गलत है। जब गवाही बंद कर दी गयी थी, वादी ने राजपूत रेजीमेंट सेंटर फतेहगढ़ से रमेश चंद्र सिंह की 2001 की छुट्टी का रिकॉर्ड तलब करने के लिए एक अर्जी लगायी थी। अर्जी में कहा गया था कि बचाव पक्ष के पिता रमेश चंद्र सिंह एडॉप्शन समारोह में उपस्थित नहीं थे और उस दिन वह वह ड्यूटी पर तैनात थे।
ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर उक्त अर्जी खारिज कर दी थी कि वाद में ऐसी कोई दलील नहीं दी गयी थी और इस तरह की अर्जी विलम्ब से भी दायर की गयी थी। इस आदेश को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट एवं हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट और निचली अदालतों के विचारों से सहमति जताते हुए कहा :
"यह स्पष्ट तौर पर तय है कि दलील की गैर-मौजूदगी में किसी भी प्रकार का साक्ष्य पार्टी को मदद नहीं करेगा। जब 14 नवम्बर 2001 को हुए एडॉप्शन समारोह का उल्लेख पंजीकृत एडॉप्शन डीड में किया गया है, जिस पर मुकदमे में सवाल भी खड़े किये गये हैं, तो ऐसे में मुकदमे में खास दलील नहीं देने का न तो कोई कारण बनता है और न बाद के चरण में यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड समन करने की अर्जी का कोई औचित्य बनता है कि द्वितीय प्रतिवादी - रमेश चंद्र सिंह 14 नवम्बर 2001 को ड्यूटी पर थे।"
इस टिप्पणी के साथ ही बेंच ने अपील खारिज कर दी।
केस का नाम : बिराजी उर्फ बृजराजी बनाम सूर्य प्रताप [सी. ए. नंबर 4883- 4884 / 2017]
कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह
वकील : एडवोकेट एस. डी. सिंह, एडवोकेट संतोष कुमार त्रिपाठी