सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहाः महज चयन सूची में उम्मीदवार का नाम शामिल हो जाने से उसे नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं मिल जाता
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि महज चयन सूची में उम्मीदवार का नाम शामिल होने से ही उसे नियुक्ति पाने का अधिकार हासिल नहीं हो जाता।
इस मामले में, उम्मीदवारों ने 'दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल (एक्जक्यूटिव)- पुरुष' पद के लिए 2013 की भर्ती प्रक्रिया में हिस्सा लिया था। इन लोगों को पहले चरण के परीक्षा परिणाम में सफल घोषित किया गया था। बाद में परीक्षाफल संशोधित किया गया, जिसमें ये उम्मीदवार बाहर हो गये थे। उम्मीदवारों ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) का दरवाजा खटखटाया था, जिसने 'ओए' को खारिज कर दिया था। कैट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी, जिसने नियुक्ति का निर्देश दिया था।
अपील में कोर्ट को ज्ञात हुआ कि सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया पहले ही स्थगित कर दी गयी थी और नियुक्ति के प्रस्ताव से पहले ही संशोधित परीक्षा परिणाम घोषित कर दिये गये थे। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल (एक्जक्यूटिव) पद पर भर्ती करने का अपीलकर्ता को आदेश जारी करके स्पष्ट तौर पर त्रुटि की है।
कोर्ट ने कहा :
"वास्तविक मुद्दा यह है कि क्या प्रतिवादी भर्ती के लिए परमादेश के हकदार थे? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या उन्हें नियुक्ति पाने का अधिकार है। निश्चित तौर पर इसका उत्तर 'ना' होगा। पंजाब एसईबी बनाम मल्कियत सिंह के मामले में कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि महज चयन सूची में उम्मीदवार का नाम शामिल होने से ही उसे नियुक्ति पाने का अधिकार हासिल नहीं हो जाता।"
कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि उत्तर कुंजी तैयार करते वक्त कुछ अनियमितताओें के कारण परीक्षा परिणामों को संशोधित किया जाना था।
कोर्ट ने कहा :
इस तरह की अनियमितताएं विभिन्न स्तरों पर सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रियाओं के लिए अभिशाप बन चुकी हैं, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में ट्रिब्यूनल्स, हाईकोर्ट और अंतत: इस कोर्ट के समक्ष मुकदमे पहुंचते हैँ। सरकारी नौकरियों में भर्ती को लेकर ज्यादातर मुकदमों और नियुक्तियों में होने वाले विलम्ब से छुटकारा पाया जा सकता है, यदि संबंधित लोग अपने दायित्व का निर्वहन तत्परता और जिम्मेदारी के साथ निभाते हैं।