डाक्टर द्वारा पुलिस को दी जाने वाली जानकारी में गर्भपात की मांग करने वाली नाबालिग लड़की की पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं हैः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम(पॉक्सो) के तहत अनिवार्य पुलिस रिपोर्टिंग की आवश्यकता को पढ़ा और कहा कि एक डॉक्टर द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी में नाबालिग लड़की के नाम और पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट और पॉक्सो एक्ट के सामंजस्यपूर्ण पढ़ने का आह्वान किया और कहा कि एक पंजीकृत चिकित्सक को पॉक्सो एक्ट की धारा 19 के तहत दी गई जानकारी में नाबालिग की पहचान और अन्य व्यक्तिगत विवरण का खुलासा करने से छूट दी गई है।
संदर्भ के लिए, पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 19 बच्चे सहित किसी भी व्यक्ति के लिए पुलिस से संपर्क करना अनिवार्य बनाती है, यदि उक्त व्यक्ति को इस बात की आशंका है कि अधिनियम के तहत अपराध किए जाने की संभावना है या उसे यह जानकारी है कि ऐसा एक कृत्य किया गया है। यह जानकारी विशेष किशोर इकाई या स्थानीय पुलिस को देना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति अपराध की रिपोर्ट करने में विफल रहता है तो उसे पॉक्सो अधिनियम की धारा 21 के तहत अधिकतम छह महीने की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
अदालत यह कहते हुए एक निर्णय सुना रही थी कि अविवाहित महिलाएं भी सहमति से बने संबंध से उत्पन्न 20-24 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करने की हकदार हैं (एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, सीए 5802/2022)।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स का नियम 3बी(b) नाबालिगों को 20-24 सप्ताह की अवधि के गर्भ का गर्भपात कराने की अनुमति देता है।
किशोर संबंधों से उत्पन्न गर्भधारण पर कोर्ट ने संज्ञान लिया
कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि किशोर यौन गतिविधियों में शामिल होते हैं, हालांकि पॉक्सो एक्ट सहमति को मान्यता नहीं देता है।
''पॉक्सो एक्ट के तहत, नाबालिगों के बीच संबंधों में तथ्यात्मक सहमति महत्वहीन है। पॉक्सो एक्ट में निहित निषेध-वास्तव में किशोरों को सहमति से यौन गतिविधि में शामिल होने से नहीं रोकता है। हम इस सच्चाई की अवहेलना नहीं कर सकते हैं कि ऐसी गतिविधि जारी है और कभी-कभी गर्भावस्था जैसे परिणामों की ओर ले जाती हैं।''
फैसले में कहा गया है कि,
''देश में यौन स्वास्थ्य शिक्षा की अनुपस्थिति का मतलब है कि अधिकांश किशोर इस बात से अनजान हैं कि प्रजनन प्रणाली कैसे काम करती है और साथ ही गर्भधारण को रोकने के लिए गर्भनिरोधक उपकरणों और विधियों को कैसे उपयोग किया जा सकता है। विवाह पूर्व सेक्स के आसपास की वर्जनाएं युवा वयस्कों को गर्भ निरोधकों का उपयोग करने से रोकती हैं। इन्हीं वर्जनाओं का मतलब है कि युवा लड़कियां जिन्हे इस तथ्य का पता लग जाता है कि वे गर्भवती हैं, वे अपने माता-पिता या अभिभावकों को यह बताने में संकोच करती हैं, जो चिकित्सा सहायता और हस्तक्षेप तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।''
अनिवार्य प्रकटीकरण की आवश्यकता नाबालिगों को योग्य डॉक्टरों के पास जाने से रोक सकती है
कोर्ट ने कहा कि एक किशोर और उसके अभिभावक अनिवार्य रिपोर्टिंग की आवश्यकता से सावधान हो सकते हैं क्योंकि वे कानूनी प्रक्रिया में खुद को उलझाना नहीं चाहते हैं। यह उन्हें गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति के लिए एक अयोग्य चिकित्सक से संपर्क करने के लिए मजबूर कर सकता है।
अदालत ने कहा,
''अगर पॉक्सो की धारा 19(1) के तहत रिपोर्ट में नाबालिग के नाम का खुलासा करने पर जोर दिया जाता है,तो नाबालिगों द्वारा एमटीपी अधिनियम के तहत अपनी गर्भावस्था की सुरक्षित समाप्ति के लिए पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स (आरएमपी) की तलाश करने की संभावना कम हो सकती है।''
नाबालिगों के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के संदर्भ में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने राय दी-
''यह सुनिश्चित करने के लिए कि नियम 3 बी (b) का लाभ 18 वर्ष से कम उम्र की उन सभी महिलाओं को दिया जाए, जो सहमति से यौन गतिविधि में संलग्न हैं, पॉक्सो एक्ट और एमटीपी एक्ट दोनों को सामंजस्यपूर्ण रूप से पढ़ना आवश्यक है। एमटीपी एक्ट के संदर्भ में गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति प्रदान करने के सीमित उद्देश्यों के लिए, हम स्पष्ट करते हैं कि आरएमपी को, केवल नाबालिग और नाबालिग के अभिभावक के अनुरोध पर, पॉक्सो एक्ट की धारा 19(1) के तहत प्रदान की गई जानकारी में नाबालिग की पहचान और अन्य व्यक्तिगत विवरण का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है। जिस आरएमपी ने पॉक्सो एक्ट की धारा 19(1) के तहत जानकारी प्रदान की है (एमटीपी अधिनियम के तहत एक नाबालिग के मेडिकल टर्मिनेशन की मांग के संदर्भ में) उसे किसी भी आपराधिक कार्यवाही में नाबालिग की पहचान का खुलासा करने से छूट दी गई है, जो पॉक्सो एक्ट की धारा 19(1) के तहत आरएमपी की रिपोर्ट से अनुसरण कर सकता है। इस तरह की व्याख्या से पॉक्सो एक्ट के तहत अनिवार्य रूप से अपराध की रिपोर्ट करने के लिए आरएमपी के वैधानिक दायित्व और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नाबालिग की निजता और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकारों के बीच किसी भी टकराव को रोका जा सकेगा। यह संभवतः नाबालिगों को सुरक्षित गर्भपात से वंचित करने की विधायिका की मंशा नहीं हो सकती है।'' (पैरा 81)
पीठ ने कहा कि आरएमपी को नाबालिग की पहचान का खुलासा करने से छूट दी जानी चाहिए क्योंकि-
''इस तरह की व्याख्या पॉक्सो एक्ट के तहत अनिवार्य रूप से अपराध की रिपोर्ट करने के आरएमपी के वैधानिक दायित्वों और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नाबालिग की निजता और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकारों के बीच किसी भी संघर्ष को रोकेगी। यह संभवतः नाबालिगों को सुरक्षित गर्भपात से वंचित करने की विधायिका की मंशा नहीं हो सकती है।''
''किशोरों के बीच सहमति से यौन गतिविधि के विपरीत, नाबालिगों को अक्सर अजनबियों या परिवार के सदस्यों द्वारा यौन शोषण के अधीन किया जाता है। ऐसे मामलों में, नाबालिग लड़कियां (अपनी कम उम्र के कारण) उस दुर्व्यवहार की प्रकृति से अनजान हो सकती हैं जो उनका यौन शोषण करने वाला या बलात्कारी उनके साथ करता है। ऐसे मामलों में, अवयस्क लड़कियों के अभिभावक गर्भावस्था के तथ्य के बारे में पता देर से लगा पाते हैं, जिससे नियम 3बी द्वारा दी गई छूट आवश्यक हो जाती है।''
फैसले के अन्य पहलुओं पर विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।
केस टाइटल- एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, सीए 5802/2022
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एससी) 809
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