'आंशिक अनुपालन का कोई सवाल ही नहीं': RRTS प्रोजेक्ट में फंड ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट की दिल्ली सरकार को चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (28 नवंबर) को दिल्ली सरकार को चेतावनी दी कि उसे रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) प्रोजेक्ट के लिए धन आवंटित करने के अपने आश्वासन का पूरी तरह से पालन करना होगा।
यह बताए जाने पर कि धनराशि का केवल एक हिस्सा ही वितरित किया गया, अदालत ने कहा,
"आंशिक अनुपालन का कोई सवाल ही नहीं हो सकता। पूर्ण अनुपालन होना चाहिए।"
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर चिंता जताने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस क्षेत्र को आमतौर पर सर्दियों के महीनों के दौरान बढ़े हुए प्रदूषण का सामना करना पड़ता है, जिसका मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना जैसे कारक हैं।
जुलाई में दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वचन दिया था कि वह सरकारी विज्ञापनों के लिए किए गए बजटीय आवंटन को दिखाने के निर्देश के बाद RRTS प्रोजेक्ट के लिए बजटीय प्रावधान करेगी।
जस्टिस कौल की अगुवाई वाली पीठ ने तब कहा था,
"अगर पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में योगदान दिया जा सकता है।"
पिछली बार कोर्ट ने रीजनल रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम प्रोजेक्ट के लिए धन आवंटित करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहने पर दिल्ली सरकार पर असंतोष व्यक्त किया और इसे 'घोर उल्लंघन' बताया।
खंडपीठ इस उल्लंघन को उजागर करने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) द्वारा दायर आवेदन पर विचार कर रही थी। जवाब में उसने प्रोजेक्ट के लिए सरकारी विज्ञापन निधि हस्तांतरित करने का आदेश पारित किया, लेकिन दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के कहने पर आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगाने पर सहमति व्यक्त की।
सुनवाई के दौरान, अदालत को सूचित किया गया कि दिल्ली सरकार ने उस राशि का केवल एक हिस्सा ही वितरित किया है, जिसे हस्तांतरित करने का निर्देश दिया गया था।
सीनियर एडवोकेट एएनएस नाडकर्णी ने तर्क दिया,
"माई लॉर्ड ने कहा कि यदि धन हस्तांतरित नहीं किया गया तो आदेश लागू हो जाएगा। आज (बुद्धवार), धन हस्तांतरित नहीं किया गया।"
जस्टिस कौल ने सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा से कहा,
"क्या आपने धनराशि स्थानांतरित की है या नहीं? आपके अनुरोध पर, हमने इस अदालत को दिए गए आश्वासन का पालन करने के लिए आदेश को एक सप्ताह के लिए स्थगित रखा है। अब कृपया हमें वह दस्तावेज दिखाएं जो अनुपालन दर्शाता है।"
सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुईं।
एडवोकेट नाडकर्णी ने दोहराया,
''नहीं, उनका स्थानांतरण नहीं किया गया है।''
लेकिन अरोड़ा ने इससे असहमति जताते हुए कहा,
''माई लॉर्ड्स, 415 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए गए हैं।''
एडवोकेट नाडकर्णी ने अदालत को बताया कि धनराशि जारी करने की मंजूरी देने वाले आदेश में भी 'आंशिक अनुपालन' का उल्लेख किया गया। एमिक्स क्यूरी अपराजिता सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार संवितरण कार्यक्रम का पालन करने में विफल रही।
उन्होंने कहा,
"पहले से ही एक शेड्यूल है, जिस पर माई लॉर्ड ने आदेश पारित किया है। उन्हें हर बार इस अदालत के समक्ष आवेदन द्वारा याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है। समस्या यह है कि वे शेड्यूल का पालन नहीं कर रहे हैं।"
वकील की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस कौल ने कहा,
"दिल्ली सरकार के वकील का कहना है कि मंजूरी आदेश के अनुसार 415 करोड़ रुपये की राशि है, लेकिन इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) के खाते में जमा नहीं किया गया। हालांकि, मंजूरी आदेश में ही कहा गया कि यह 'आंशिक अनुपालन' में है। आंशिक अनुपालन का कोई सवाल ही नहीं हो सकता। अनुपालन अनुसूची के अनुसार होना चाहिए। 7 दिसंबर की अनुपालन अनुसूची।"
जस्टिस कौल ने आदेश सुनाने के बाद टिप्पणी की,
"समस्या यह है कि जिस पैसे का भुगतान करने के लिए आप उत्तरदायी हैं, उसे चुकाने के लिए आपको हाथ-पैर मारने होंगे।"
ये निर्देश तब पारित किए गए जब पीठ पर्यावरणविद् और वकील एमसी मेहता द्वारा 1985 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली एनसीआर में पर्यावरण प्रदूषण के संबंध में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई। यह मामला, जिसका फोकस राष्ट्रीय राजधानी में वायु, जल और भूमि प्रदूषण सहित प्रदूषण के विभिन्न रूपों तक फैला हुआ है, पर्यावरण मुकदमेबाजी के क्षेत्र में सबसे लंबे समय तक चलने वाले परमादेशों में से एक है।