सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के पारिवारिक न्यायालय को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रायल चलाने का निर्देश दिया

Update: 2021-01-23 05:02 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के एक पारिवारिक न्यायालय को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रायल का संचालन करने का निर्देश दिया।

सीजेआई एसए बोबडे, सीजेआई एल नागेश्वर राव और सीजेआई विनीत सरन की पीठ ने यह आदेश वर्तमान स्थिति पर ध्यान देते हुए जारी किया जहां सभी कार्यवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जा रही हैं।

पीठ 'पत्नी ' द्वारा दायर की गई ट्रांसफर याचिका को खारिज करने के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें उसके 'पति ' द्वारा दायर एक वैवाहिक मामले को प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, जिला गौतमबुद्धनगर, यू पी से प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, साकेत जिला, नई दिल्ली के न्यायालय में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी।

उन्होंने कहा कि यहां गौतमबुद्ध नगर, जिला न्यायालयों में कोई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा नहीं है, और यह कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग वैवाहिक मामलों में संथिनी बनाम विजया वेंकटेश के फैसले के अनुसार स्वीकार्य नहीं है। ट्रांसफर याचिका (यह संथिनी फैसले से पहले थी) को खारिज करते हुए कोर्ट ने इस मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ट्रायल कराने का निर्देश दिया था।

पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए, पीठ ने इस प्रकार कहा :

जारी महामारी के कारण मार्च, 2020 से न्यायालयों में शारीरिक रुप से कामकाज रोक दिया गया है, सभी न्यायालयों में कार्यवाही केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जा रही है। सामान्य तौर पर हम इस न्यायालय के निर्णय के अनुसार वैवाहिक मामलों के संबंध में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का निर्देश नहीं देंगे। हालांकि, वर्तमान स्थिति में जहां सभी कार्यवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित की जा रही हैं, हम पारिवारिक न्यायालय, जिला गौतमबुद्धनगर, यूपी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रायल का संचालन करने के निर्देश देते हैं।

संथिनी निर्णय

संथिनी बनाम विजया वेंकेटेश में, जस्टिस दीपक मिश्रा (तत्कालीन सीजेआई) की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कृष्णा वेणी नागम बनाम हरीश नागम के मामले में जारी निर्देशों को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि अगर कार्यवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किए जाने का निर्देश दिया जाता है तो 1984 अधिनियम की भावना संकट में होगी और आगे न्याय का कारण पराजित होगा ।

बहुमत के फैसले में कहा गया,

"ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि इस मामले को पारिवारिक न्यायालय के जज द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से निपटाया जा सकता है। जब कोई मामला स्थानांतरित नहीं होता है और निपटान की कार्यवाही होती है जो सुलह की प्रकृति में है, तो अंतर को पाटना असंभव होगा। एक पक्ष दूसरे के साथ जो संवाद कर सकता है, अगर वे कुछ समय के लिए अकेले रह जाते हैं, वो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में संभव नहीं है और यदि संभव हो तो, यह बहुत संदेह है कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान एक वर्चुअल बैठक में भावनात्मक बंधन स्थापित किया जा सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग निपटारे की प्रक्रिया में सेंध लगा सकती है…।"

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में असहमति जताई थी।

उन्होंने विचार व्यक्त किया था,

"मेरे विचार में, पारिवारिक न्यायालय अधिनियम 1984 या कानून में किसी भी आधार पर कार्यवाही को किसी भी स्तर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बाहर करने का कोई आधार नहीं है। क्या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति दी जानी चाहिए, यह निर्णय के तर्कसंगत अभ्यास के हिस्से के रूप में पारिवारिक न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए। ... पारिवारिक न्यायालयों को शीघ्र और प्रभावी समाधानों की सुविधा के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। इन सबसे ऊपर, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि कुशल और समय पर न्याय की सामाजिक मांगों को पूरा करने के लिए अदालतों के लिए प्रौद्योगिकी की एक संपूर्ण स्वीकृति आवश्यक है।"

केस: अंजली ब्रह्मवार चौहान बनाम नवीन चौहान [ पुनर्विचार याचिका (सी) संख्या 472/2018 ]

पीठ : सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस विनीत सरन

उद्धरण: LL 2021 SC 35

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