सांसद मोहनभाई डेलकर की आत्महत्या के मामले में दादरा एवं नगर हवेली के प्रशासक और अधिकारियों के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने का फैसला बरकरार

Update: 2025-08-18 05:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें 2021 में सांसद मोहनभाई डेलकर की मौत से संबंधित आत्महत्या के लिए उकसाने और जबरन वसूली के आरोपों वाली FIR रद्द कर दी गई।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन तथा जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने फैसला सुनाया और कहा:

"हाईकोर्ट के आदेश ने (विशेष अनुमति याचिका) की पुष्टि की और उसे खारिज कर दिया।"

बेंच ने 4 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने दिवंगत सांसद के बेटे द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जिसमें दादरा और नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल, कलेक्टर संदीप कुमार सिंह, पुलिस अधीक्षक शरद दराडे और अन्य अधिकारियों के खिलाफ दादरा और नगर हवेली के सात बार सांसद रहे मोहनभाई संजीभाई डेलकर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दर्ज FIR रद्द कर दी गई। यह याचिका दिवंगत सांसद के बेटे अभिनव मोहन डेलकर ने दायर की थी।

8 सितंबर, 2022 को जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले और जस्टिस श्रीकांत डी. कुलकर्णी की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आरोपियों द्वारा उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग वाली कई रिट याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।

डेलकर 22 फ़रवरी, 2021 को शहर के मरीन ड्राइव स्थित होटल सी ग्रीन साउथ के कमरे में मृत पाए गए।

उनके बेटे अभिनव डेलकर ने याचिकाकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), 506 (आपराधिक धमकी), 389 (किसी व्यक्ति को अपराध के आरोप का भय दिखाना), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (अत्याचार अधिनियम) की धारा 3 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया।

FIR में आरोप लगाया गया कि प्रफुल खोड़ा पटेल के आदेश पर डेलकर के साथ दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और मानहानि की गई। इसके पीछे दोहरा मकसद था: डेलकर द्वारा संचालित कॉलेज पर नियंत्रण हासिल करना और उन्हें अगला चुनाव लड़ने से रोकना। इसके अलावा, चूंकि वह अनुसूचित जनजाति से थे, इसलिए सार्वजनिक समारोहों में उनके साथ जानबूझकर दुर्व्यवहार किया गया।

हाईकोर्ट ने FIR क्यों रद्द की?

हाईकोर्ट ने माना कि डेलकर द्वारा केवल यह धारणा बनाई गई कि उनके साथ दुर्व्यवहार या अपमान किया गया। न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिससे यह पता चले कि प्रशासक या कोई अन्य याचिकाकर्ता डेलकर द्वारा संचालित कॉलेज पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा था। इसके अलावा, डेलकर ने स्वतंत्र सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुए।

अदालत ने कहा,

"ऐसी स्थिति में यदि ये दोनों कथित उद्देश्य पर्याप्त रूप से सिद्ध नहीं होते हैं। यह केवल कुछ आरोपों और मृतक की छवि के रूप में है तो ऐसी अस्वीकार्य और असंतुलित सामग्री के आधार पर याचिकाकर्ताओं को आपराधिक अभियोजन की कठोर प्रक्रिया से गुजरना, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।"

अदालत ने आगे कहा कि धारा 120 (बी) लागू करने के लिए यह दर्शाने के लिए सकारात्मक प्रमाण होना चाहिए कि याचिकाकर्ता साजिश रचने के लिए एक साथ आए और उस साजिश को अंजाम दिया गया था। हालांकि, FIR में बिना किसी घटना के केवल आरोप हैं, जो यह दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ता एक साथ आए और प्रशासक के आदेश पर काम किया।

न्यायालय ने मदन मोहन सिंह बनाम गुजरात राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि उकसावे शब्द की पूर्ति के लिए कोई सकारात्मक कार्य होना आवश्यक है। हालांकि, FIR में उल्लिखित घटनाएं याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए किसी भी सकारात्मक कार्य को दर्शाने के लिए अपर्याप्त हैं, जो कि IPC की धारा 306 की पूर्व-आवश्यकता है।

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि यह मामला हरियाणा राज्य एवं अन्य बनाम भजन लाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के अंतर्गत आता है। इस प्रकार न्यायालय ने नौ अभियुक्तों के विरुद्ध दर्ज FIR रद्द कर दी।

Case Details : ABHINAV MOHAN DELKAR vs. THE STATE OF MAHARASHTRA| Crl.A. No. 002177 - 002185 / 2024

Tags:    

Similar News