सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन की तकिया मस्जिद के ध्वस्तिकरण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने आज उज्जैन की तकिया मस्जिद से संबंधित याचिका को खारिज कर दिया, जिसे मध्य प्रदेश प्रशासन ने भूमि अधिग्रहण के बाद मुआवज़ा देकर ध्वस्त कर दिया था।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया, जब याचिकाकर्ताओं ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि धर्म का पालन करने का अधिकार किसी विशेष स्थान से जुड़ा नहीं होता और मस्जिद वाली भूमि के अधिग्रहण से यह अधिकार प्रभावित नहीं होता।
सीनियर एडवोकेट एम.आर. शमशाद ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि यह मस्जिद 200 साल पुरानी थी और इसे दूसरे धार्मिक स्थल — महाकाल मंदिर — के पार्किंग क्षेत्र को बढ़ाने के लिए गिरा दिया गया। इस पर न्यायालय ने कहा कि मस्जिद भूमि के अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका पहले ही वापस ले ली गई थी।
जस्टिस नाथ ने कहा,“अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता,”
शमशाद ने तर्क दिया कि मुआवज़ा अनधिकृत व्यक्तियों को दिया गया है, लेकिन अदालत ने कहा कि इस विषय में कानूनी उपाय उपलब्ध हैं।
पृष्ठभूमि में, याचिकाकर्ताओं ने तकिया मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की अनुमति और मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की थी। लेकिन हाईकोर्ट की एकल पीठ ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया अंतिम रूप ले चुकी है और वक्फ बोर्ड ने पहले ही मुआवज़े के अधिकार के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया है।
डिवीजन बेंच ने भी इस आदेश को बरकरार रखा और इलाहाबाद हाईकोर्ट के Mohammad Ali Khan v. Special Land Acquisition Office (1978) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि “अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार है, जिसका किसी विशेष स्थान या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है।”