सुप्रीम कोर्ट हिरासत में टॉर्चर पर नई गाइडलाइन बनाने के लिए डीके बसु केस को फिर से खोलने की याचिका पर सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हिरासत में टॉर्चर से संबंधित मामले की सुनवाई 7 अक्टूबर, 2020 तक टाल दी और एमिकस क्यूरी व वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी को सुनवाई होने पर पर दलीलें शुरू करने के लिए कहा।
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विनीत सरन की पीठ में हिरासत टॉर्चर को खत्म करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देशों की आवश्यकता के बारे में याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई कर रही थी। जून 2020 में तमिलनाडु में जयराज और बेनिक्स के पिता-पुत्र की जोड़ी की हिरासत में मौत की भयावह घटना के मद्देनज़र यह याचिका दायर की गई थी।
कोर्ट ने उपस्थित वकीलों को सूचित किया किकई वकीलों ने तत्काल मामले में बहस करने की मांग की है और इस मामले को 7 अक्टूबर की सुबह 10:30 बजे पहले केस के रूप में लिया जाएगा। इसके अलावा, डॉ सिंघवी अपनी दलीलों से शुरुआत करेंगे और कोर्ट का एमिकस क्यूरी के रूप में मार्गदर्शन करेंगे।
दरअसल तमिलनाडु में जयराज और बेनिक्स की हिरासत में मौत की भयावह घटना के मद्देनज़र, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर ऐतिहासिक केस डी के बसु बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल में कार्यवाही को फिर से शुरू करने की मांग की है।
1996 में डी के बसु मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग न हो और हिरासत में यातना को रोका जा सके।डॉ सिंघवी ने मामले में एमिकस क्यूरी के रूप में काम किया था।
वर्तमान आवेदन में, सिंघवी ने कहा है कि "हिरासत में होने वाली मौतें सामान्य प्रवृत्ति" की तरह बढ़ रही हैं, जिस पर "एक मजबूत, प्रभावी और कार्यशील जांच और निगरानी तंत्र" की आवश्यकता है।
आवेदन में कहा गया है कि हाल के दिनों की तुलना में हिरासत में हिंसा और संबंधित अपराधों में भारी वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है,
"नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े स्पष्ट रूप से पिछले 4-5 वर्षों में हिरासत में हुई मौतों और मुठभेड़ हत्याओं के मामलों में एक स्पष्ट और तेज वृद्धि दिखाते हैं।"
आवेदन में आगे कहा गया है कि पिछले 4 वर्षों में कुल 359 हिरासत में मौतें हुई हैं। यह इस तथ्य से पता चलता है कि लगभग हर 4 वें दिन एक व्यक्ति को पुलिस हिरासत में मार दिया जाता है और निष्पक्ष सुनवाई से इनकार कर दिया जाता है।
इस आवेदन के अलावा, रिट याचिकाओं में से एक में कहा गया है कि दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु की घटना "इस देश में पुलिस व्यवस्था के भीतर संस्थागत सुधार की तत्काल आवश्यकता और भारत के लिए अत्याचार और हिरासत में मौत के मामलों को रोकने और मुकदमा चलाने के लिए जीवन के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी देने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों को लेकर अपने कानूनी दायित्वों की पूर्ति में, एक मजबूत कानून बनाने की तीव्र आवश्यकता को रेखांकित करती है।"
पीपुल्स चेरिएटीर ऑर्गेनाइजेशन (PCO) ने अपने सचिव, लीगल सेल, वकील देवेश सक्सेना और शाश्वत आनंद द्वारा याचिका दायर कर कहा कि "हम अपनी पुलिस के औपनिवेशिक रवैये को खत्म करने में विफल रहे।"
दलीलों में कहा गया है कि डीके बसु मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बावजूद, हिरासत में अत्याचार निरंतर जारी है।
याचिका में कहा गया है,
"... भारत के कानूनी, विधायी और वैधानिक ढांचे में कानूनी खामियां हैं, जिसके कारण हम हिरासत में हिंसा/रेप/अत्याचार की एक प्रचलित महामारी देख रहे हैं, जो वर्दी में हमारे कुछ लोगों के हाथों कुछ और नहीं बल्कि राज्य मशीनरी द्वारा वैध, सुगम और स्थायी तरीके से मानवाधिकारों के हनन और अपमान के अलावा कुछ भी नहीं है।"
याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रकाश सिंह बनाम संघ (2006 8 SCC 1) और DK बसु बनाम राज्य पश्चिम बंगाल (1997) 1 SCC 1916 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन में कमी है।
इस पृष्ठभूमि में, याचिकाकर्ता ने भारतीय विधिक प्रणाली में व्याप्त खामियों को भरने के लिए दिशानिर्देश जारी करने और लागू के लिए प्रार्थना की है, और एक प्रभावी और उद्देश्यपूर्ण रूपरेखा सुनिश्चित करने और जीवन को अधिकार व गरिमापूर्व जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करने और सुरक्षित करने के संवैधानिक दायित्व को पूरा करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण और निहित शक्ति के अभ्यास में हिरासत में यातना/मौत/ बलात्कार की रोकथाम; के लिए इसे लागू करने की मांग की है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र समिति बनाने के लिए केंद्र सरकार को एक निर्देश देने का भी अनुरोध किया है, जिसमें सभी विभागों/मंत्रालयों के सदस्यों को शामिल किया जाए जो पूरे कानूनी ढांचे की समीक्षा करे और मौजूदा कानूनी ढांचे में खामियों का पता लगाए और हिरासत में यातना/मौतों/बलात्कारों के खतरे को रोके, ताकि विधि आयोग और अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था की सिफारिशों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप विधायी तंत्रों के पुन: निर्धारण को सक्षम बनाया जा सके।