हाथरस मामले में जमानत देने से इनकार करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सिद्दीकी कप्पन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) हाथरस मामले (Hathras Case) में जमानत देने से इनकार करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सिद्दीकी कप्पन (Siddique Kappan) की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के लिए सहमत हो गया है।
एडवोकेट हारिस बीरन द्वारा तत्काल उल्लेख के बाद सीजेआई एनवी रमना मामले की सुनवाई के लिए सहमत हुए।
एडवोकेट पल्लवी प्रताप के माध्यम से दायर विशेष अनुमति याचिका में, कप्पन ने कहा कि उनकी यात्रा का इरादा हाथरस बलात्कार / हत्या के कुख्यात मामले पर रिपोर्टिंग के अपने पेशेवर कर्तव्य का निर्वहन करना था। हालांकि, उन्हें "ट्रम्प अप" आरोपों के आधार पर हिरासत में ले लिया गया था।
कप्पन करीब दो साल सलाखों के पीछे बिता चुका है। कप्पन को अन्य आरोपियों के साथ यूपी पुलिस ने अक्टूबर, 2020 में गिरफ्तार किया था, जब वे हाथरस बलात्कार-हत्या अपराध की रिपोर्ट करने के लिए जा रहे थे।
उच्च न्यायालय ने कप्पन को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि उनको हाथरस में कोई काम नहीं था।
शीर्ष अदालत के समक्ष, कप्पन का कहना है कि उनका मामला स्वतंत्रता के अधिकार के साथ-साथ संविधान के तत्वावधान में स्वतंत्र मीडिया में निहित अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता से संबंधित मौलिक प्रश्न उठाता है।
उनका तर्क है कि उच्च न्यायालय ने बिना कोई ठोस कारण बताए उनकी जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।
याचिका में कहा गया है,
"उच्च न्यायालय इस तथ्य पर ध्यान देने में विफल रहा है कि प्राथमिकी / आरोप पत्र, पूर्व दृष्टया गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 की धारा 17 और धारा 18 को लागू करने का मामला नहीं बनता है।"
शुरुआत में उन्हें शांति भंग करने की आशंका के तहत गिरफ्तार किया गया। उन्हें उप-मंडल मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष पेश किया गया, जिसने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
इसके बाद, उन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया। इसमें आरोप लगाया गया कि वह और उसके सह-यात्री हाथरस सामूहिक बलात्कार-हत्या मामले के मद्देनजर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थानीय अदालत द्वारा पिछले साल जुलाई में उसकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद कप्पन ने हाईकोर्ट का रुख किया था।
कल सह आरोपी कैब चालक मोहम्मद आलम को हाईकोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया गया। जमानत आदेश में यह देखा गया कि कप्पन के कब्जे से "अपमानजनक सामग्री" बरामद की गई थी, लेकिन आलम से ऐसी कोई सामग्री बरामद नहीं हुई थी।
कप्पन ने हाथरस को आपत्तिजनक पर्चे या प्रिंटेड कागजात ले जाने के आरोपों से इनकार किया।
उनका कहना है कि अभियोजन पक्ष ने कोई सबूत नहीं दिया है कि उन्हें एक आतंकवादी गिरोह से फंड प्राप्त हुआ था। याचिकाकर्ता के पास उपलब्ध एकमात्र धन एक पेशेवर पत्रकार के रूप में अपने काम के निर्वहन से अर्जित आय है।
यहां तक कि यह मानते हुए कि पैसा वास्तव में पीएफआई से प्राप्त हुआ था, यह तर्क दिया जाता है कि पीएफआई एक आतंकवादी गिरोह/समूह नहीं है।
उसने आतंकियों गुलजार वानी, गिलानी और प्रतिबंधित संगठन सिमी से भी संबंध होने से इनकार किया है।