लड़की के 'संबंध बनाया' वाले बयान को यौन संबंध न मानकर POCSO आरोपी को बरी करने के फैसले की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका में आरोपी को नया नोटिस जारी किया, जिसमें 14 साल की नाबालिग से बलात्कार के दोषी 22 वर्षीय व्यक्ति को इस आधार पर बरी कर दिया गया कि पीड़िता की 'संबंध' वाली गवाही को 'यौन संबंध' नहीं माना जा सकता।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने एनजीओ 'जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस' द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसका जवाब चार हफ्तों में देना है।
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अर्चना दवे ने अदालत को सूचित किया कि वे याचिकाकर्ता के मामले का समर्थन करती हैं और बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर करेंगी।
संक्षिप्त तथ्यों के अनुसार, निचली अदालत ने "संबंध" और "शारीरिक संबंध" शब्दों की व्याख्या यौन संबंध और इस प्रकार यौन उत्पीड़न के रूप में करते हुए पीड़िता की कम उम्र और आरोपी और पीड़िता के बीच उम्र के अंतर को ध्यान में रखते हुए आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
नाबालिग की माँ द्वारा गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद आरोपी को नाबालिग के अपहरण का दोषी ठहराया गया। वह आरोपी के साथ मिली। मेडिकल जांच के बाद उसने बताया कि उसकी सहमति से आरोपी के साथ उसका 'संबंध' रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला यह कहते हुए पलट दिया कि केवल इस तथ्य से कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न हुआ था।
दरअसल, पीड़िता ने "शारीरिक संबंध" शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उसका क्या मतलब था। हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि "संबंध बनाया" शब्दों का प्रयोग यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 3 या भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि यद्यपि नाबालिग की सहमति महत्वहीन है, फिर भी यह स्थापित किया जाना चाहिए कि शारीरिक संबंध का तात्पर्य यौन संबंध था, इसलिए यह यौन हमला था।
Case Details: JUST RIGHTS FOR CHILDREN ALLIANCE v SAHJAN ALI AND ANR.|SLP(Crl) No. 4286/2025