सुप्रीम कोर्ट ने UAPA और MCOCA मामलों की सुनवाई के लिए रिटायर जजों की नियुक्ति का सुझाव दिया

Update: 2025-09-12 12:24 GMT

स्पेशल क़ानूनों के तहत मामलों की विशेष सुनवाई के लिए समर्पित अदालतों की आवश्यकता पर फिर से ज़ोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि मौजूदा संख्या के भीतर ही मामलों को निर्धारित करने के बजाय न्यायिक अधिकारियों की कैडर संख्या बढ़ाई जाए, क्योंकि ऐसा करने से अन्य अदालतों पर बोझ बढ़ेगा।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ सुनवाई में देरी का हवाला देते हुए दो मामलों पर विचार कर रही थी, जिनमें से NIA से संबंधित था, जब उसने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और एसडी संजय को अपनी चिंताओं से अवगत कराया।

खंडपीठ की ओर से दिए गए इस सुझाव पर प्रतिक्रिया देते हुए दोनों एडिशनल सॉलिसिटर जनरलों ने आश्वासन दिया कि उच्चतम स्तर पर संयुक्त बैठक आयोजित की जाएगी और स्पेशल क़ानूनों के तहत शीघ्र सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट की स्थापना के संबंध में एक प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा।

अदालत ने अपने आदेश में दर्ज किया,

"ऐसी बैठकें भारत सरकार के संबंधित सचिवों, विशेष बलों के प्रमुखों, दिल्ली पुलिस आयुक्त और दोनों राज्यों के हाईकोर्ट के स्तर पर आयोजित की जाएंगी। उक्त बैठक में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) को भी आमंत्रित किया जा सकता है। परिणाम स्टेटस रिपोर्ट के माध्यम से रिकॉर्ड में दर्ज किए जाएंगे। राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को भी बैठक में उपस्थित रहना होगा।"

जस्टिस कांत ने विशेष रूप से इस चिंता को व्यक्त किया कि शायद केंद्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों से समर्पित कोर्ट स्थापित करने का अनुरोध कर रहा है। हालांकि, यदि चीफ जस्टिस UAPA, MCOCA आदि के तहत जघन्य मामलों की सुनवाई के लिए केवल एक या दो जजों को भी नियुक्त करते हैं तो यह अन्य अदालतों/मामलों की कीमत पर होगा। इसके बजाय, अदालतों की कैडर संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।

जस्टिस कांत ने कहा,

"यदि 50 (जज) हैं तो कृपया इसे 60 कर दें, यही हम चाहते हैं... इसे अस्थायी कैडर पर रहने दें।"

जज ने आगे कहा कि ऐसी अदालतों की ज़रूरत पूरी तरह से खत्म होने की संभावना नहीं है, क्योंकि मामले आते रहेंगे। हालांकि, अगर ज़रूरत खत्म भी हो जाती है तो बाद में उन्हें दूसरे मामले सौंपे जा सकते हैं। जहां तक NIA मामलों का सवाल है, जस्टिस बागची ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार के पास अन्य क़ानूनों के विपरीत अदालतें स्थापित करने का स्वतंत्र अधिकार है।

मामले की सुनवाई स्थगित करने से पहले जस्टिस कांत ने सुझाव दिया कि सरकारें उत्कृष्ट सेवा रिकॉर्ड और मुकदमों के अच्छे निपटारे वाले रिटायर न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति पर विचार कर सकती हैं।

जज ने टिप्पणी की,

"60 साल की उम्र घर बैठने के लिए कोई मायने नहीं रखती..."

साथ ही यह भी कहा कि ऐसे रिटायर अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग स्थायी लोक अदालतों आदि में किया जा रहा है और उनकी भर्ती भी कोई चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया नहीं होगी।

गौरतलब है कि इससे पहले भी जस्टिस कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने UAPA और MCOCA जैसे कानूनों के तहत स्पेशल मामलों की सुनवाई के लिए समर्पित अदालतों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था। जुलाई, 2025 में अदालत ने भारत सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि NIA मामलों में शीघ्र सुनवाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे वाली विशेष अदालतें स्थापित नहीं की गईं तो अदालतों के पास विचाराधीन कैदियों को ज़मानत पर रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।

अदालत ने पूछा,

"संदिग्धों को कब तक अनिश्चितकालीन हिरासत में रखा जा सकता है?"

इस महीने की शुरुआत में अदालत ने जघन्य मामलों में मुकदमों को समय पर पूरा करने की आवश्यकता पर फिर से ज़ोर दिया। अपनी ओर से NIA ने बताया कि वह समर्पित NIA अदालतों के गठन पर राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर रही है और जल्द ही एक सकारात्मक निर्णय पर पहुंचने की संभावना है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भाटी ने कहा कि इस प्रक्रिया में राज्यों को भी शामिल करना होगा, क्योंकि समर्पित NIA अदालतों के गठन का अधिकार राज्यों के पास है।

जवाब में जस्टिस कांत ने कहा,

"आप केवल यह प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं कि आप आवश्यक बजटीय आवंटन करेंगे।"

साथ ही बताया कि हाईकोर्ट और राज्य सरकारों की भूमिका पर बाद में विचार किया जा सकता है।

जस्टिस कांत ने आज (शुक्रवार) विभिन्न मामलों में इसी प्रकार की भावना व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में सुनवाई के लिए समर्पित अदालतें कानून के शासन के प्रति समाज की प्रतिबद्धता के बारे में एक बहुत मजबूत संदेश देंगी।

Case Title: MAHESH KHATRI @ BHOLI Versus STATE NCT OF DELHI, SLP(Crl) No. 1422/2025 (and connected case)

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