मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल जज को 5 साल के कार्यकाल की सतर्कता जांच का आदेश दिया, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई, जिसमें स्पेशल पॉक्सो जज के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की गई और उनके आचरण को 'बौद्धिक बेईमानी' बताया था और उनके 5 साल के न्यायिक कार्य की जांच का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ आपराधिक मामले में न्यायिक अधिकारी के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणियों के खिलाफ एक चुनौती पर सुनवाई कर रही थी।
इस मामले में नोटिस जारी करते हुए खंडपीठ ने हाईकोर्ट द्वारा न्यायिक अधिकारी/याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच के निर्देशों पर रोक लगाई।
आगे कहा गया,
"याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी निर्देशों के संबंध में हाईकोर्ट का विवादित निर्णय और आदेश अगले आदेश तक स्थगित रहेगा।"
याचिकाकर्ता विवेक सिंह रघुवंशी मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में POCSO के स्पेशल जज हैं। उन्होंने एक व्यक्ति को नाबालिग से बलात्कार के अपराध में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 366, 344, 376-डी, 376(2)(एम), 506 और POCSO Act की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था।
ऐसा करते समय उन्होंने पीड़िता की उम्र के प्राथमिक प्रमाण के रूप में स्कॉलर रजिस्टर का सहारा लिया। अन्य साक्ष्यों और अभियोजन पक्ष के बयान से भी इसकी पुष्टि हुई।
इसके बाद आरोपी ने दोषसिद्धि के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि रद्द करते हुए याचिकाकर्ता के विरुद्ध प्रतिकूल टिप्पणी भी की। पीठ ने याचिकाकर्ता के आचरण को "बौद्धिक बेईमानी" करार दिया और रजिस्ट्रार (सतर्कता) द्वारा उसके पिछले पांच वर्षों के न्यायिक कार्यों की सतर्कता जांच का आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने अस्थिकरण परीक्षण रिपोर्ट, जिसे औपचारिक एक्स-रे फिल्म से विधिवत समर्थित किया गया, उसका सहारा लेकर यह निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग नहीं थी। इस प्रकार यह माना कि वर्तमान मामले में POCSO Act लागू नहीं होगा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता छह महीने तक आरोपी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रही थी।
याचिकाकर्ताओं के प्रति हाईकोर्ट की टिप्पणी इस प्रकार थी:
"रिकॉर्ड में उपलब्ध अस्थिकरण रिपोर्ट के मद्देनजर, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ट्रायल कोर्ट ने एक्स-रे फिल्म और रिपोर्ट उपलब्ध होने के बावजूद, जिन कारणों की व्याख्या की जानी है, उन्हें देखते हुए न तो आरोपी से धारा 313 के तहत प्रश्न पूछना उचित समझा और न ही प्रदर्श अंकित करना उचित समझा। हमारी राय में यह पीठासीन अधिकारी की ओर से बौद्धिक बेईमानी और लापरवाही की पराकाष्ठा है। इस प्रकार की लापरवाही को हाईकोर्ट के अधीनता से उत्पन्न नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से स्पष्ट बेईमानी और लापरवाही है।"
याचिकाकर्ता का तर्क है कि (1) स्कॉलर रजिस्टर कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य है; (2) न तो अभियोजन पक्ष और न ही बचाव पक्ष ने एक्स-रे और अस्थिभंग रिपोर्ट पर भरोसा किया; (3) हाईकोर्ट ने स्वयं निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:
1. एक्स-रे निष्कर्षों से जोड़ों के निर्माण के आधार पर आयु 16-18 वर्ष के बीच होने का संकेत मिलता है; 2. दंत परीक्षण से आयु 18-20 वर्ष के बीच होने का संकेत मिलता है; 3. यह घटना मेडिकल टेस्ट से लगभग छह महीने पहले घटित हुई थी।
Case Details : VIVEK SINGH RAGHUVANSHI v. THE STATE OF MADHYA PRADESH| SPECIAL LEAVE PETITION (CRIMINAL) Diary No(s). 51903/2025