सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जिसमें रक्षा प्राधिकरण द्वारा भूमि अधिग्रहण मुआवजे को संदर्भित करने को सुनवाई योग्य नहीं बताया था
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले के संचालन पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि रक्षा अधिकारियों को रक्षा कार्य अधिनियम, 1903 की धारा 18 के तहत भूमि मालिकों को दिए गए मुआवजे के खिलाफ संदर्भ देने का कोई अधिकार नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
जुलाई 2021 में, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने मप्र उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें भूमि मालिकों को मुआवजे के रूप में कलेक्टर के पास रक्षा मंत्रालय द्वारा जमा किए गए 1.96 करोड़ रुपये की राशि का वितरण करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि उच्च न्यायालय ने अवमानना की कार्यवाही पर इस तरह कार्यवाही की थी जैसे कि सभी मुद्दों और प्रश्नों को निर्धारित करने की आवश्यकता को पूरा कर लिया गया हो। शीर्ष अदालत ने आदेश को रद्द करते हुए मामले को वापस संदर्भ कोर्ट (अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, जबलपुर) को भेज दिया था और निर्देश दिया था कि मामले का जल्द से जल्द निस्तारण किया जाए।
संदर्भ न्यायालय के समक्ष, भूमि मालिकों ने इस आधार पर आपत्ति जताई कि रक्षा कार्य अधिनियम, 1903 की धारा 18 के अनुसार केवल अवार्ड में रुचि रखने वाला व्यक्ति ही दावेदार हो सकता है, इसलिए रक्षा अधिकारियों के पास कोई अधिकार नहीं था और इस कारण से संदर्भ कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं है। अपर जिला न्यायाधीश, जबलपुर ने आपत्ति को अस्वीकार कर दिया लेकिन मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपील में दिनांक 17.11.2021 के आक्षेपित निर्णय के माध्यम से प्रतिवादियों की याचिका को स्वीकार कर लिया।
मप्र उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने अपने विवादित फैसले में कहा कि,
"इस प्रकार, इस न्यायालय को यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि दसवें अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, जबलपुर के समक्ष एमजेसी संख्या 283/2021 के रूप में पंजीकृत प्रतिवादियों/प्राधिकारियों के आवेदन पर संदर्भ मान्य नहीं है, इसलिए, इसे एतद्द्वारा खारिज किया जाता है क्योंकि ये सुनवाई योग्य नहीं है। परिणामस्वरूप, उक्त संदर्भ कार्यवाही में पारित आदेश दिनांक 26.07.2021 (अनुलग्नक-पी/18) को निरस्त किया जाता है।"
उच्च न्यायालय ने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 और रक्षा कार्य अधिनियम 1903 के प्रावधान समान हैं। उच्च न्यायालय ने माना कि जिस इकाई के लाभ के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया है, उसे अधिकारियों द्वारा निर्धारित मुआवजे के खिलाफ संदर्भ देने का कोई अधिकार नहीं है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने आक्षेपित फैसले के संचालन पर रोक लगा दी थी और प्रतिवादियों को अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था।
केस : स्टेशन मुख्यालय, सुखलालपुर एवं अन्य बनाम केवल कुमार जग्गी एवं अन्य |
वकील: अपीलकर्ताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमियम, एओआर संतोष कुमार पांडे, उत्तरदाताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा, वरुण तन्खा, समीर सोंधी।
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