सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के लॉकडाउन के दौरान नष्ट की गई प्रवासियों की झोपड़ियों को फिर से बनाने के लिए राज्य सरकार को दिए आदेश पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बेंगलुरू में कचकरहल्ली झुग्गी में नष्ट की गई प्रवासी श्रमिकों की झोपड़ियों अपनी लागत पर पुनर्निर्माण करने का निर्देश दिया था। इन झोपड़ियों को उस वक़्त नष्ट किया गया था, जब कोरोना वायरस के कारण संपूर्ण देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था, और इनके निवासी अपने गृह राज्यों/नगरों को चले गए थे।
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ कर्नाटक राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल, दिनेश माहेश्वरी और हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा:
"इस बीच, पैराग्राफ 26 (ii), (iii) और (v) पर दिए गए आदेश में निहित निर्देशों पर रोक लगाई जाती है।"
4 दिसंबर को जारी इन निर्देशों के अनुसार, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि चिन्हित प्रभावित परिवारों के घरों/ झोपड़ियों को अपनी लागत पर फिर से बनाया जाए और पुनर्निर्मित झोंपड़ियाँ अपने पहले रूप और आकार की हों। इसके साथ ही संरचनाओं के पुनर्निर्माण का काम अधिकतम दो महीनों के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया गया था।
इसके अलावा, यह भी निर्देशित किया गया था कि जहां तक संभव हो पुनर्निर्मित संरचनाएं उसी स्थान पर बनाई जाएंगी, जिस जगह वे पहले थीं। निर्माण पूरा होने के तुरंत बाद संबंधित घरों को राज्य सरकार द्वारा प्रभावित परिवारों को आवंटित किया जाएगा।
चूंकि हाईकोर्ट द्वारा दर्ज एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका पर निर्देश जारी किए गए थे, इसलिए कर्नाटक राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका में कर्नाटक हाईकोर्ट पहला प्रतिवादी है।
राज्य सरकार ने अपने SLP में तर्क दिया कि विचाराधीन भूमि निर्विवाद रूप से एक सरकारी भूमि है, जिसके संबंध में झुग्गी निकासी के लिए अधिसूचना पहले ही जारी की जा चुकी थी। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि कचनाराहल्ली झुग्गी निवासियों के पुनर्वास के लिए 4 एकड़ के एक वैकल्पिक भूखंड की पहचान की गई है।
इन तथ्यों के बावजूद, हाईकोर्ट ने सरकार को उसी भूमि पर झोपड़ियों के निर्माण का आदेश दिया।
'आश्रय के अधिकार की रक्षा के लिए बाध्य राज्य कर्तव्य': कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकार को लॉकडाउनल के दौरान प्रवासी श्रमिकों की नष्ट की गई झोपड़ियों को फिर से बनाने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने झोपड़ियों को नष्ट करने के मुकदमे के संबंध में एक पत्र याचिका के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया था, जब प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन के दौरान अपने मूल स्थानों पर चले गए थे।
अदालत को दी गई जानकारी के अनुसार, जब उक्त झोपड़ियों को जलाया गया था, तो कोई भी उस पर कब्जा नहीं कर रहा था और बताया गया कि 24 मार्च 2020 के बाद (राष्ट्रीय लॉकडाउन) कब्बुरगी में चले गए थे। 1 मई 2020 को झोपड़ियों में रहने बचे लोगों में से एक व्यक्ति के घटना के बारे में एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई।
हाईकोर्ट ने कहा था कि
"राज्य सरकार लंबे समय तक निष्क्रिय रही और स्ट्रक्चर /झोपड़ियों को नष्ट करने वाले उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। राज्य सरकार के साथ निहित भूमि पर मकान बनाए गए है, इसलिए हमारी प्रथम दृष्टयता में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शासित मौलिक अधिकारों को बनाए रखने में राज्य विफल रहा। "
पीठ ने उ.प्र. के चमेली सिंह बनाम राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भरोसा किया और कहा कि:
"झोपड़ियों में रहने वाले इन परिवारों के भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत आश्रय का अधिकार स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया गया है।" इसमें कहा गया है कि "राज्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत प्रभावित परिवारों को उपलब्ध आश्रय के अधिकार की रक्षा के लिए बाध्य है।"
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि झोपड़ियों के पुनर्निर्माण से उन परिवारों के पक्ष में कोई इक्विटी नहीं बनेगी, जिन्हें उक्त संरचनाएँ आवंटित की गई हैं। यदि उनके द्वारा निर्मित सैद्धांतिक संरचनाएं सरकारी भूमि पर अवैध और संरक्षित अतिक्रमण थीं, तो संबंधित अधिकारियों ने कब्जा करने वालों के पुनर्वास के अधिकार के अधीन, पुनर्निवेशित संरचनाओं को हटाने की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं।
24 जून 2020 को, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मुआवजा देने और उन प्रवासी श्रमिकों का पुनर्वास करने का निर्देश दिया था, जिनकी झोपड़ियाँ जलकर खाक हो गई थीं।
पिछले साल जनवरी में, हाईकोर्ट ने बृहत् बेंगलुरु महानगर पालिक अधिकारियों और पुलिस को फटकार लगाई थी, जिन पर कुछ प्रवासी श्रमिकों के घरो को विध्वंस करने के आरोप लगाया थे। पुलिस ने यह कार्रवाई श्रमिकों को अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी प्रवासी कहते हुए की थी, जबकि वे वास्तव में बंगाली भाषी भारतीय थे।
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