सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के ' त्वचा से त्वचा संपर्क" फैसले पर रोक लगाई

Update: 2021-01-27 08:10 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के तहत आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि बिना कपड़े उतारे बच्चे के स्तन दबाने से पोक्सो एक्ट की धारा 8 के अर्थ में "यौन उत्पीड़न" नहीं होता है।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि निर्णय 'अभूतपूर्व' है और 'एक खतरनाक मिसाल कायम करने की संभावना है।'

सीजेआई बोबडे ने एजी को निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया। अदालत ने आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी है और 2 सप्ताह के भीतर उसे जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया है।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के कृत्य से आईपीसी की धारा 354 के तहत 'छेड़छाड़' होगी और ये पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत यौन शोषण नहीं होगा।

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को संशोधित करते हुए यह अवलोकन किया, जिसमें एक 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की से छेड़छाड़ करने और उसकी सलवार निकालने के लिए यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था।

इस मामले को चुनौती देते हुए यूथ बार एसोसिएशन ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एकल न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियां "अनुचित" हैं और एक बालिका के शील पर चिंता करने वाली हैं।

यह भी कहा गया है कि लागू किए गए फैसले को पारित करते समय, एकल न्यायाधीश ने पैरा संख्या 12 में पीड़ित बच्ची का नाम दर्ज किया जो हानिकारक है और आईपीसी की धारा 228 ए की भावना के खिलाफ है जो कुछ अपराधों के पीड़ितों के नामों के प्रकाशन को रोक देता है।

इसके अलावा, पैरा संख्या 26 में, एकल न्यायाधीश ने कहा है कि,

"प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क-यानी यौन प्रवेश के बिना त्वचा-से -त्वचा संपर्क यौन उत्पीड़न नहीं है।"

याचिकाकर्ता के अनुसार, इस तरह के तर्क से एक भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी और पूरे देश की प्रतिष्ठा कम होगी।

कुछ दिन पहले, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने घोषणा की थी कि वह यह कहते हुए इसे फैसले को चुनौती देगा कि महिलाओं की सुरक्षा और सामान्य संरक्षण के विभिन्न प्रावधानों पर न केवल इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा बल्कि ये सभी महिलाओं का उपहास होगा और महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विधायिका द्वारा प्रदान किए गए कानूनी प्रावधानों का तुच्छीकरण होगा।

इस बीच, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने महाराष्ट्र सरकार से इस फैसले के खिलाफ "तत्काल अपील" दायर करने को कहा है। एनसीपीसीआर प्रमुख ने अपने पत्र में रेखांकित किया कि ऐसा लगता है कि पीड़िता की पहचान का खुलासा किया गया है और आयोग का विचार है कि राज्य को इस पर ध्यान देना चाहिए और आवश्यक कदम उठाने चाहिए।

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